भारत के प्रधानमंत्री के लिए सच्ची रेस आज (मंगलवार को) शुरू हुई है। अब तक प्रचार माध्यमोने ऐसा चित्र बना कर रखा है कि ईस बार का चुनाव मानो जैसे विभिन्न पक्ष के बीच नहीं, व्यक्ति के बीच में ही लडा जायेगा। जैसे मोदी, राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल में से कोई एक ही प्रधान मंत्री बननेवाला हो। इस में हालांकि थोडी सी सच्चाई भी है क्योंकि मोदी सब से बडे विपक्ष भाजप और उसके मोरचे 'राजग' यानि की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का नेतृत्व कर रहे है तो दूसरी और राहुल गांधी भी काॅग्रेस गठबंधन - 'संप्रग' यानि संयुक्त प्रगतिवादी गठबंधन का नेतृत्व करते दिख रहे है। लेकिन केजरीवाल का हौवा तो मिडियाने ही बनाया है। लेकिन और लोगों को कम दावेदार नहीं समजना चाहिए।
जयललिताने मध्यम और गरीब वर्ग रिजे ऐसे वादे किए है। देखा जाये तो ईस बार की मुद्दत्त (टर्म) में जयाम्मा का शासन अच्छा और कम विवादास्पद रहा है। आयकर की मर्यादा सिर्फ दो लाख ही हो और पेट्रोल- डीजल के दाम तेल कंपनीयां बिना रोकटोक बढाते ही रहे ये दोनो तरफ से मध्यम वर्ग और गरीब वर्ग पर भयंकर मार है जो ये ये दोनो वर्ग पीछले दस साल से झेल रहै है (2009 का चुनाव ही काॅग्रेस इस वादे के साथ जीती कि उनकी सरकार 100 दिन में महंगाई खतम कर देगी। 100 दिन तो क्या 365 x 5 = 1725 दिन में कम करने की तो दूर, उलटा और बढा दी।)
लेकिन बेचारे मध्यम वर्ग की सूने कौन। कई सालों तक मध्यम वर्ग के माने जानेवाले पक्ष भाजप को पीछले कुछ सालों से धनिक और गरीब ये दो वर्ग ही दिख रहे है। वैसे ये दोनो ही वर्ग उतने प्रतिबद्ध मतदाता वर्ग नहीं, जितना कि मध्यम वर्ग। हां एक बात ये भी है कि मध्यम वर्ग मतदान में कभी कभी उदासीन हो जाता है और ईसकी वजह यह भी है कि उसकी जायज जरुरतों को लंबे समय तक नजरअंदाज किया जा रहा है।
इस चुनाव में अब तक एसा ही माहोल था। काॅग्रेस, भाजप गरीब की ही बात कर रहे है। हालांकि गरीब को लेकर या मध्यम वर्ग को लेकर दोनों की नीतियां काफी हद तक समान है। गरीबी की व्याख्या को लेकर भी समान। उलटा मोदी सरकार ने तो 11 रू कमानेवाले को गरीब गिनने से मना कर दिया।
एसे में जयललिताने आज जो चुनाव घोषनापत्र जारी किया वो मध्यम वर्ग के लिए लुभावना है। आयकर मर्यादा अगर पांच लाख हो जाये और पेट्रोल-डीजल के निरंकुश दामों पर रोक लग जाये तो महंगाई काफी हद तक नियंत्रित हो सकती है।
मोदी के लिए रामदेव बाबाने ये अवसर दिया था। बाबाने तो अपनी मांगे रखते समय यहां तक कह डाला था कि आयकर ही समाप्त कर दिया जाये। बाबाने कहा कि जो पक्ष उनकी शर्त मानेंगे उनको ही वे समर्थन देंगे। उस समय मोदीने गोलमोल जवाब दे दिया। अगर उस वक्त उन्होने आयकर मर्यादा बढाने की बात भी होती तो भी वो मैदान मार लेते। लेकिन अफसोस! ये बाजी जयललिता के नाम रही। यहां तक दिल्ली में सिर्फ 28 बैठके जीतकर मुख्यमंत्री बनकर सत्ता का स्वाद चख चूके और अब जिनके मनमें दिल्ली की ही तर्ज पर प्रधानमंत्री बनने की लालसा जग चूकी है एसे केजरीवाल को भी यह बात नहीं सूजी। सूजे भी कैसे। उन्हें तो एसे ही मुद्दो में रस है जिसमें मिडिया और लोगों का ध्यान ज्यादा से ज्यादा बटोरा जा सके। उन्हे कुदरती गेस की चिंता है लेकिन पेट्रोल-डीजल के लगातार बढतें दामों की बिलकुल परवा नहीं। आज तक इस विषय में मैंने उनका या उनके पक्ष का कोई निवेदन नहीं देखा।अगर एसा करते तो वे और भी जनप्रिय हो जातें।
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