Monday, July 22, 2019

कर्णाटक: सत्ताभूख, विधानसभा अध्यक्ष और कानूनी दांवपेच का नंगा नाच

कर्णाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी बार बार रो रो कर कहते दिखाई दिये कि वह कॉंग्रेस की कठपूतली है
(तसवीर सौजन्य: गूगल)

कर्णाटक में जो पीछले २२ दिनों से हो रहा है, उस को क्या कहा जा सकता है? कॉंग्रेस के विधानसभा अध्यक्ष और कानूनी दांवपेच का नंगा नाच ही तो कहा जा सकता है। जो त्यागपत्र आये थे वह सिद्धरमैया ग्रूप के आये थे। और सिद्धरमैया जेडी(से) के पुराने नेता है। उनकी और कुमारस्वामी की पटती नहीं। रामलिंगा रेड्डी जैसे निष्ठावान कॉंग्रेसी ने क्यों त्यागपत्र दिया? कहा जा रहा है कि उप मुख्य मंत्री जी. परमेश्वर रामलिंगा रेड्डी को पूछे बिना निर्णय लेते थे। यही रामलिंगा रेड्डी की व्यथा है। सिद्धरमैया के गुट ने उन को मुख्यमंत्री बनाने को यह चाल चली, जिस का निःशंक भारतीय जनता पक्षने फायदा उठाया। मुंबई में उनको संरक्षण दिया। स्वस्थ विधायक हॉस्पिटल में बहाना कर के प्रवेश कर गये और अस्वास्थ्यप्रद पंजाबी खाने का आनंद उठाते दिखें।
लेकिन, जेडीएस और कॉंग्रेस की आपस की लड़ाई और कॉंग्रेस की अंदरुनी गुटबाजी का ठीकरा भारतीय जनता पक्ष के उपर फोडा जा रहा है। संसद में कॉंग्रेस ने इस को भाजप के नाम कर दिया कि भाजप इस सरकार को गिराना चाहती है। हकीकत तो ये है कि कुमारस्वामी स्वयं कई बार रो कर निवेदन दे चूके थे कि वह कॉंग्रेस के क्लर्क की तरह ही है। संसद परिसर में सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने धरना दे कर यह चित्र ओर मजबूत बनाया। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष और कानूनी दांवपेच के नंगे नाच के बारे में कोई मिडिया बात नहीं कर रहा। चुनाव के बाद कोई भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, उस समय कॉंग्रेस ने आधी रात सर्वोच्च में आवाज़ लगाई और सर्वोच्च खुल गई! येदियुरप्पा के वकील ने कितने दिन मांगे थे? १५ दिन! किन्तु सर्वोच्च ने येदियुरप्पा को केवल एक दिन का समय दिया था।
शंकरसिंह वाघेला को गुजरात के मु.मं. के रूप में शपथ दिलवा रहे राज्यपाल कृष्णपालसिंह
(तसवीर: गूगल)
याद है गुजरात का एसा ही घटनाक्रम?
अब जब जेडीएस और कॉंग्रेस की सरकार अल्प मत में है तो १५ दिन नहीं, २१ दिन बीत चूके है और आज मैं जब यह लिख रहा हूं, २२ जुलाई रात ८.२७ को, तब समाचार मिल रहे है कि अभी भी मोरचा सरकार के विधायक ओर ज्यादा समय विश्वास मत के लिए मांग रहे है! तब यह कानून व्यवस्था कहां गई? आप को क्वचित याद हो कि गुजरात विधानसभा में कॉंग्रेस के नेता जो उस समय विधानसभा के सभापति थे, चंदुभाई डाभी ने भाजप के विद्रोही विधायको के गूट को अलग दल की मान्यता दे दीं। विधानसभा में कॉंग्रेस के शक्तिसिंह गोहिल आदि ने तोडफोड की, माइक फेंके गये, कॉंग्रेस के नेता एसे राज्यपाल कृष्णपालसिंह ने जरा भी देरी नहीं कि और देवेगोवडा की कॉंग्रेस समर्थित तीसरे मोरचे की सरकार को रिपॉर्ट भेजा जिस के आधार पर राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने गुजरात में राष्ट्पति शासन लगा दिया।
उस समय शंकरसिंह वाघेला को बहुमत साबित करने के लिए सात दिन दिये गये थे जब कि उपर उल्लेखित किस्से में येदियुरप्पा को एक ही दिन मिला।
अब आईये एक दृष्टि करते है कि कैसे विधानसभा अध्यक्ष के. आर. रमेशकुमार और कानूनी दांवपेच से अल्प मत वाली कुमारस्वामी सरकार को विश्वास मत लेने के लिए लंबा समय मिलता चला गया।
विधानसभा अध्यक्ष के. आर. रमेशकुमार ने शकुनी चाल से कर्णाटक की मोरचा सरकार को बारबार जीवनदान दिया
(तसवीर: गूगल)

२२ दिनों का घटनाक्रम
१ जुलाई २०१९:  कॉंग्रेस के दो विधायको ने त्यागपत्र दिये।
६ जुलाई २०१९: मोरचा सरकार के ११ विधायको ने त्यागपत्र दिये।
६ जुलाई २०१९: कॉंग्रेस के धनिक विधायक डी. के. शिवकुमार (जिन के रिसॉर्ट में २०१७ में गुजरात में अहमद पटेल की प्रतिष्ठा पर बन आनेवाले राज्यसभा चुनाव में कॉंग्रेस के विधायको के जलसा (ऐसा गुजरात के बनासकांठा के विधायक गोवाभाई रबारी ने ही कहा था) करवाया गया था) ने कहा कि मैंने विद्रोही विधायको के त्यागपत्र फाड डालें है। इस के लिए मैं जैल जाने को तैयार हूं।
६ जुलाई २०१९: जेडीएस-कॉंग्रेस के विद्रोही विधायक मुंबई पहोंचे।
७ जुलाई २०१९: मुख्यमंत्री कुमारस्वामी अमरिका से लौटे।
७ जुलाई २०१९: त्यागपत्र देनेवाले विधायको की संख्या बढ के १३ हुई।
८ जुलाई २०१९: सरकार बचाने के लिए कॉंग्रेस के सभी ३१ मंत्रियों ने त्यागपत्र दिये। जेडीएस के मंत्रियो ने भी त्यागपत्र दिये।
८ जुलाई २०१९: (यहां आप नॉट कीजिएगा कि विद्रोहीओ के त्यागपत्र ६ जुलाई को आए थे, तब से अध्यक्ष छुट्टी पर थे) अध्यक्ष छुट्टी पर है, इस लिए त्यागपत्र को स्वीकारना, नहीं स्वीकारना इस का निर्णय टला।
९ जुलाई २०१९: अध्यक्ष छुट्टी से लौटे, लेकिन उन्हो ने कहा कि विद्रोही विधायक उन से नहीं मिले। १३ में से केवल ८ त्यागपत्र ही नियम अनुसार है। (अर्थात् ८ त्यागपत्र तो नियमानुसार थे उन्हों ने स्वीकारा था, किन्तु यह निर्णय भी उन्हों ने कैसे टाला, और इस में कानूनी दांवपेच का उन को कैसे साथ मिला यह आगे आप को पता चलेगा)
१० जुलाई २०१९: कॉंग्रेस के दो विद्रोही विधायकों ने अध्यक्ष को त्यागपत्र दिये। (अर्थात् अब तो नियमानुसार स्वीकार होना चाहिए था, लेकिन अब भी टालंटोल का खेल जारी रहा)
१० जुलाई २०१९: विद्रोही विधायक सर्वोच्च न्यायालय गये। उन्हो ने याचिका की कि हमारे त्यागपत्र विधानसभा अध्यक्ष नहीं स्वीकार कर रहे। आप आदेश दीजिए। लेकिन सर्वोच्च, जिस ने भाजप के येदियुरप्पा के केस में आधी रात को बैठ कर उन को केवल अगले दिन चार बजे तक अर्थात् ११ से ४ बजे तक पकडे तो केवल पांच घंटे का समय दिया था, उस ने सुनवाई अगले दिन अर्थात् ११ जुलाई तक टाल दी।
११ जुलाई २०१९: सर्वोच्च न्यायालय ने विधायको को अध्यक्ष को मिलने का आदेश दिया। अध्यक्ष ने भी सर्वोच्च में याचिका कर डाली। जिस पर सर्वोच्च ने १२ जुलाई सायं ६ बजे का समय दिया। अर्थात् फिर से येदियुरप्पा के मामले से तुलना करे तो दो घंटे ज्यादा समय दिया!
११ जुलाई २०१९: कॉंग्रेस की नेत्री सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने संसद परिसर में धरना कर के ऐसा चित्र बनाने का प्रयास किया जैसे भाजप कर्णाटक की जेडीएस-कॉंग्रेस सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर लोकतंत्र का गला घोंट रहा है। जब कि विधानसभा अध्यक्ष और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से मोरचा सरकार को ओर समय मिल रहा था कि वह विद्रोही विधायको को (अगर भाजप ने खरीदा है तो) वापस खरीद सकें।
१२ जुलाई २०१९: सर्वोच्च के निर्णय ने फिर से मोरचा सरकार का जीवनदान लंबा कर दिया। उस ने स्टॅटस क्वॉ अर्थात यथा परिस्थिति रखने का आदेश दिया! अर्थात् अध्यक्ष को त्यागपत्र स्वीकारना या उन को गेरलायक ठहराने का निर्णय नहीं लेना है। माना कि १२ जुलाई को शुक्रवार था, सो अगली सुनवाई १५ जुलाई को हो सकती थी, लेकिन सर्वोच्च ने सुनवाई १६ जुलाई तक टाल दिया जिस से मोरचा सरकार को अपनी बाज़ी संभालने का ओर समय मिल गया।
१२ जुलाई २०१९: विद्रोही विधायको के वकील ने दलील की थी कि विधानसभा अध्यक्ष मिडिया को संबोधित करने के लिए समय निकाल सकते है लेकिन विधायको के त्यागपत्र की दस लाइन पढने के लिए उनके पास समय नहीं है!
१२ जुलाई २०१९: अब आप देखिये कि कॉंग्रेस कैसे कानूनी दांवपेच में निपुण है और भाजप इसी क्षेत्र में मार खा जाता है। चाहे वह राममंदिर हो, चाहे वह धारा ३५-ए, धारा ३७० हो, या अहमद पटेल के समय राज्यसभा चुनाव के समय चुनाव आयोग के समक्ष जो प्रस्तुति करनी थी, वह हो, या २०१८ के कर्णाटक चुनाव के बाद येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने का केस हो, वह अपनी बात न्यायालय में ठीक से नहीं रख पाता। और रख पाता होगा तो क्वचित सूनी नहीं जाती होगी। तो १२ जुलाई २०१९ को कॉंग्रेस के एक-दो नहीं, किन्तु ४०० कार्यकरो ने कर्णाटक मामले में हस्तक्षेप की याचिका कर दी। और मांग की कि विद्रोही विधायको को गेरलायक ठहराये जाये।
१३ जुलाई २०१९: इस के सामने कॉंग्रेस-जेडीएस के पांच ओर विधायको ने सर्वोच्च में पहेले जो याचिका हुई थी उस में जुडने के लिए याचिका की।
१३ जुलाई २०१९: कॉंग्रेस के कुछ विधायक बातचीत के लिए मुंबई से कर्णाटक आये।
१४ जुलाई २०१९: लेकिन बात नहीं बनी। वे वापिस मुंबई चले गये।
१५ जुलाई २०१९: विद्रोही विधायको ने मुंबई पुलीस से कहा कि वे कॉंग्रेस के नेताओ से मिलना नहीं चाहते।
१६ जुलाई २०१९: विधानसभा अध्यक्ष ने त्यागपत्र पर विचार करने के लिए सर्वोच्च से ओर समय मांगा। (अर्थात् एक बार ओर मामला टाला और उसे न्याय व्यवस्था ने टलने दिया)
१७ जुलाई २०१९: सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि अध्यक्ष निर्णय कर सकते है कि उन्हें त्यागपत्र स्वीकारना है कि नहीं स्वीकारना। (यह स्पष्ट केस था कि सर्वोच्च निर्णय कर सकता था कि त्यागपत्र स्वीकारना चाहिए कि नहीं। लेकिन सर्वोच्च ने निर्णय नहीं किया) कॉंग्रेस को खुश करने के साथ भाजप को खुश करने के लिए सर्वोच्च ने ये भी कहा कि विद्रोही विधायकों को विधानसभा में उपस्थित रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। फिर भी सर्वोच्च ने येदियुरप्पा के केस के अनुसार बहुमत के लिए कोई समयसीमा नहीं रखी। (हो सकता है विद्रोही विधायको ने मांगी न हो)
१८ जुलाई २०१९: विधानसभा की कार्यवाही मिली। लेकिन जानबूज कर हंगामा किया गया। इस से दोपहर तीन बजे तक सदन स्थगित किया गया। एसी नीति ही चलती रही। दिन में दो बार सदन स्थगित हुआ। विपक्ष के नेता येदियुरप्पा ने कहा कि हम रात भर बैठने को तैयार है। लेकिन उन की एक न सूनी गई। राज्यपाल वजुभाई वाळा ने मुख्यमंत्री कुमारस्वामी और विधानसभा अध्यक्ष पत्र लिखकर सायं छ बजे तक की समयसीमा विश्वास मत के लिए दी थी। वह समय सीमा का भी उल्लंघन हुआ। अंत में राज्यपाल वजुभाई वाळा ने दूसरी बार हस्तक्षेप किया। उन्हों ने मुख्यमंत्री कुमारस्वामी और विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिख १९ जुलाई दोपहर १.३० तक विश्वास मत लेने को आदेश दिया। भाजप के विधायक रातभर सदन में ही धरने पर रहें।
१९ जुलाई २०१९: इस दिन भी विधानसभा नहीं चलने दी गई। अंत में यह २२ जुलाई तक कार्यवाही स्थगित की गई। अर्थात् ओर तीन दिन ले गये।
२१ जुलाई २०१९: बहुजन समाज पक्ष की सर्वोच्च नेत्री मायावती ने अपने विधायक को सदन में उपस्थित न रहेने को कहा। लेकिन बाद में निर्णय पलट दिया गया। स्पष्ट है कि इन का भी भावताल हो गया होगा।
२२ जुलाई २०१९: आज सदन मिला और आज भी हंगामा होता रहा। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष के मन में राम बसे। उन्होंने कहा आज शाम छ बजे तक विश्वास मत हो जाना चाहिए। लेकिन कॉंग्रेस-जेडीएस ने ‘संविधान बचावो’ के नारे लगाकर येदियुरप्पा को बोलने न दिया। आज भी रात नव बजे के करीब येदियुरप्पाने कहा था कि वे (अर्थात् भाजप के विधायक) रात १२ तक बैठने को तैयार है। समाचारसंस्था एएनआई ने कुमारस्वामी के टेबल पर उनका त्यागपत्र तैयार होने का समाचार तस्वीर के साथ ट्वीट किया। अर्थात् कुमारस्वामी जानते है कि उनका जाना निश्चित है। फिर भी समय अकारण व्यय कर रहे है। रात दस बजे समाचार आये कि विधानसभा अध्यक्ष ने विद्रोही विधायको को कल अर्थात् २३ जुलाई को ११ बजे तक उनसे मिलने के लिए नॉटिस प्रकाशित की है। रात ११.३८ को समाचार आया कि येदियुरप्पा फिर से कह रहे है कि हम रात बारह बजे तक बैठने को तैयार है। लेकिन रात ११.४९ को समाचार मिले कि अध्यक्ष ने कल अर्थात् २३ जुलाई सायं छ बजे तक विश्वास मत लेने की समयसीमा निश्चित की है। अर्थात् जेडीएस-कॉंग्रेस को सरकार बचाने के लिए एक पूरा दिन फिर से मिल गया। इसी समय ओर एक समाचार आया कि सदन स्थगित कर दिया गया है। अब कल सुबह दस बजे मिलेगा।....
(उपरोक्त सारा घटनाक्रम गणमान्य अंग्रेजी और हिन्दी अखबारों की वेबसाइट पर प्रतिदिन जो लाइव खबरें चलती है उससे लिया गया है। हो सकता है कि बाद में ये वेबसाइट पर से ‘उपरी’ आदेश के कारण कुछ खबरें हटा दे तो यह लेखक का दोष नहीं है)
आईएमए ज्वेल्स के मन्सूर खान पर रू. ५००० करोड के घोटाले का आरोप है
(तसवीर : गूगल)

मिडिया द्वारा बिलकुल अनदेखी
अब सोचिये, यही कहानी किसी भाजप शासित राज्य की होती तो? लेकिन आप टीवी पर प्रति दिन मोब लिंचिंग, हिन्दू-मुस्लिम, साक्षी मिश्रा का दलित युवक के साथ विवाह इसी ब्रेकिंग इन्डिया एजन्डे पर डिबेट देखते है। कर्णाटक में ५००० करोड का आईएमएलए ज्वेल्स घोटाला हुआ। इस का मालिक मन्सूर खान भाग गया था। लेकिन मोदी सरकार की सजगता से वह पकडा गया। इस में कर्णाटक के कॉंग्रेस के विधायक रोशन बेग पर रू. ४०० करोड की रिश्वत के आरोप है। उन की गिरफतारी हुई तो कुमारस्वामी ने मोदी सरकार पर दुर्भावना का आरोप लगाया। इस घोटाले में एक लाख से ज्यादा निवेशकारो जिस में बडी मात्रा में मुस्लिम थे क्योंकि इस को इस्लामिक सिद्धांत अनुसार निवेश कहा गया था, जिस के लिए मौलवीओने फतवा भी प्रगट किया था, तो ये मुस्लिम अब अपना पैसा डूबने के कारण रो रहे है। लेकिन जो कॉंग्रेस, टीवी चेनल और बुद्धिजीवी को चोर तबरेज़ अन्सारी की मोब लिंचिंग में मृत्यु से दुःख होता है उन को इस घोटाले में रो रहे मुस्लिमो के लिए कोई दु:ख नहीं होता।
 

Friday, July 5, 2019

बजेट २०१९ का अच्छा-बूरा

सौजन्य : इन्टरनेट
एक तरफ यह बहीखाता (#Budget2019) अंग्रेजो की निशानी समाप्त करने की ओर भाजप सरकार द्वारा तीसरा कदम है -१. शाम पांच बजे बजेट की परंपरा समाप्त करना। २. हर बार फरवरी के अंतिम दिन ही बजेट प्रस्तुत होने की ब्रिटिश परंपरा को समाप्त करना। ३. ब्रीफ केस में बजेट ले जाने की परंपरा समाप्त करना। बजेट का नाम खातावही करना।
गांव, गरीब, किसानो के लिए इस बजेट में काफी कुछ है। मध्यम वर्ग के लिए कुछ नहीं है, यह कहना ठीक नहीं होगा क्योंकि अंतरिम बजेट में ही मध्यम वर्ग के लिए आयकर छूट दी गई थी। छोटे व्यापारीओ के लिए पेन्शन, ५९ मिनिट में लॉन, उच्च शिक्षा के लिए रू. ४०० करोड, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, अनुसंधान पर जोर, इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर, मेट्रो रेलवे पर जोर, महिलाओ के लिए मुद्रा योजना में सहायता, अमीरों पर ज्यादा टॅक्स, लेकिन कंपनीओ के लिए कॉर्पोरेट टॅक्स में छूट आदि कई बातें अच्छी है।
लेकिन जो गंभीर बात है, वो यह है कि मिडिया में विदेशी निवेश को छूट दी गई है। इसी प्रकार बीमा में भी विदेशी निवेश को छूट दी गई है। मिडिया पर विदेशी कंट्रॉल हो यह तो पत्रकारों के लिए अच्छी बात ही होगी, क्योंकि वह ज्यादा वेतन देगा। लेकिन हम देखतें हैं कि ज्यादातर विदेशी मिडिया में जो भारत संदर्भ में खबर आती है, वह भारत के लिए नेगेटिव और ज्यादातर झूठी होती है। न्यू यॉर्क टाइम्स, टाइम्स, हफिंग्टन पॉस्ट, बीबीसी आदि इस के उदाहरण है।
इसी प्रकार बीमा हो या, अन्य क्षेत्र विदेशी निवेश का भाजप और संघ परिवार हंमेशां विरोध करता आया है। यह नीति उलट कर देना यह अच्छी बात नहीं है।

रेलवे का प्राइवेटाइझेशन की ओर कदम पीपीपी यह अच्छा होगा, या बूरा ये तो समय ही कहेगा। लेकिन अब तक रेलवे इतना बडा नेटवर्क होने के उपरांत अपना काम अच्छे ढंग से करते आया है। नरेन्द्र मोदीजी जैसे भारतीय चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव आयोजन करने का विश्व  के संदर्भ में प्रशंसा करते है और मानते है कि इसका पूरे विश्व में प्रचार करना चाहिए, उसी प्रकार रेलवे का भी प्रचार करने की आवश्यकता है।
एसा कहा जाता है कि नॉ लंच इझ फ्री। यह मानसिकता तभी काम करती है, जब सामने एसी सुविधा मिलती हो। आज हाइवे तो अच्छे है लेकिन टॉल टॅक्स कितना चुकाना पडता है? यह दलील कि जा सकती है कि हाइवे मेइनटेइन होने के कारण तेज गति से एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर बढा जा सकता है। जिस से समय और तेल दोनों का बचाव होता है। लेकिन यह टॉल टॅक्स भी तार्किक होना चाहिए। पीछली मोदी सरकार में वर्ष २०१५ में नीतिन गडकरी जी ने टॉल टॅक्स दूर करने की बात की थी, लेकिन हुआ नहीं। उन्हों ने ही २०१८ आते आते टॉल टॅक्स दूर करने की बात को नकार दिया। प्रश्न यह उठता है कि वाहन खरीदते समय रॉड टॅक्स दिया जाता है, पेट्रोल-डीझल पे टॅक्स लगता है, आयकर दिया जाता है, जीएसटी दिया जाता है, इतने सारे टॅक्स दिये जाते है फिर भी टॉल टॅक्स लगता है, स्टेच्यू ऑफ यूनिटी में इतनी फी देखने के लिए ली जाती है, तो भी आज मूलभूत सुविधा जैसे स्वच्छ पानी, स्वच्छ नदी, स्वच्छ शहर आदि क्यों नहीं मिलती? अमदावाद में पीराणा में कचरे का पहाड बन गया है, इस को हटाने की बात क्यों नहीं होती?
ठीक है कि पीछली मोदी सरकार में उस से पहेले की कॉंग्रेस सरकारो पर दोषारोपण किया जा सकता था, लेकिन अब एसा नहीं किया जा सकता। करेंगे तो लोग स्वीकारेंगे भी नहीं।
इसी प्रकार सरकारी इकाइयों का निजीकरण करना भी अच्छी बात नहीं है। नरेन्द्र मोदीजी ने तो गुजरात में घाटा कर रहे GSFC, GACL, GUVNL और GEB को मुनाफा करनेवाली कंपनियां बना दी थी और इसी मॉडल पे तो वे २०१४ का लोकसभा चुनाव जीते थे। सरकारी कर्मचारी अगर काम नहीं कर रहे है और कंपनीओ को घाटा करवा रहे है, तो hire and fire की नीति अपनाई जा सकती है। लेकिन इसी कारण इन का निजीकरण कर देना यह आलोचना को आमंत्रण देना होगा, जो एक समय भाजप करता था।
बॅन्क से वर्ष में १ करोड रकम निकालने पर २ % कर लगाना भी समज में नहीं आता। अपने पैसे निकालने पर क्यों कर देना पडे? हो सकता है यह तार्किक हो, लेकिन इस के लिए तर्क समजाना लोगों को जरूरी है।
उच्च शिक्षा पर रू.४०० करोड का प्रावधान करना अच्छा कदम है। नेशनल रीसर्च फाउन्डेशन का कदम भी अच्छा है। लेकिन साथ में प्राथमिक शिक्षको को जितना सरकारी चुनाव, मतदान, जनसंख्या गिनती, आदि कामों में दौडाया जाता है इस के सापेक्ष में प्रॉफेसरो को क्यों काम में नहीं लगाया जाता? उनका वेतन भी अच्छा खासा होता है। और सेमिनार, कॉलम राइटिंग, बुक ऑथरिंग जैसे अपने निजी लाभ वालें काम वे ज्यादा करते है। वे अपना काम जो कि विद्यार्थीओ को अच्छा शिक्षण देना है, वह भी अच्छा करते तो समज में आता भी। लेकिन वैश्विक स्तर पर उच्च शिक्षण में भी हम बहोत पीछे हैं। यह बताता है कि प्रॉफेसर समुदाय अपना काम ठीक से नहीं कर रहा है। मैं इस के लिए सारे प्रॉफेसरो की आलोचना नहीं कर रहा हूं। लेकिन एक गणनापात्र संख्या तो है हि जो अपना काम ठीक से नहीं करते।
इसी तरह, गंगा पर कार्गो चलाना भी, मेरी दृष्टि से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की बात होगी। इस से हो सकता है कि व्यापार में वृद्धि हो, लेकिन पर्यावरण और समुद्री/नदी में रहते जीवों का नुकसान होगा।

Tuesday, July 2, 2019

सोचों कभी एसा हो तो क्या हो?


विराट कोहली के नेतृत्व में भारत की टीम बूरा प्रदर्शन कर रही है।
विराट कोहली स्वयं दो चार रन बनाकर पेवेलियन लौट जाते है।
विराट बुमराह को ऑपनिंग में और रोहित शर्मा को बोलिंग में ऑपनिंग में भेजते है।
विराट महेन्द्रसिंह धोनी को बाउन्डरी पे फिल्डिंग करने खडा कर देते है। और स्वयं कीपिंग करते है।
लेकिन वो बीच बीच में इन्जर्ड हो कर पेवेलियन लौट जाते है।
दो तीन बैट्समेन एसे है जो बहोत धीमा खेलते है और सामनेवाले बैट्समेन को रन आउट करा देते है।
वे अपने साथीओ के साथ विरोधी टीम की प्रशंसा करते रहते है।
लेकिन विराट उन को चेतावनी देने की जगह उन को प्रमोट करते रहते है।
बहोत आलोचना हो तो उन को एक या दो मैच में विराम देकर फिर से दूसरी मैचों में खिलाते है।
मैच से पहले भारतीय टीम प्रेक्टिस करती दिखती नहीं।
मैच समाप्त होने के बाद विराट रिलैक्स होने थाइलेन्ड चले जाते है।
विराट कोहली हंमेशां मैच से पहले विरोधी टीम की आलोचना करते ट्वीट करते है।
अपने लिए वो रनर मंगाते है।
हर बार मैच हार जाने के बाद विराट डीआरएस की आलोचना करते है। वो कहते है कि हम डीआरएस के कारण हारें हैं।
मैच हारने के बाद विराट कहते है, "हम नहीं हारें, हिन्दूस्तान हार गया।"
विश्व कप श्रेणी समाप्त होने के बाद विराट अपने कप्तान पद से त्यागपत्र दे देते है।
उन की बहन और माता हार के लिए टीम को जिम्मेदार ठहराते है और कहते है, "आप लोग बराबर नहीं खेलें, इस लिए हम हार गयें, वर्ना मेरे भाई ने तो अच्छा ही खेला था।"
उनको पहेले अपनी टीम मनाने आती है तो वो कहते है, "नहीं, मैं कप्तान नहीं रहना चाहता।" टीम के सारे खिलाडी त्यागपत्र दे देते हैं।
फिर मैनेजर आते है तो भी वो कहते है, "नहीं, मैं कप्तान नहीं रहना चाहता।"
फिर कॉच आते है तो भी वो कहते है, "नहीं, मैं कप्तान नहीं रहना चाहता।"
फिर सिलेक्शन कमिटी आती है, तो भी वो कहते है, "नहीं, मैं कप्तान नहीं रहना चाहता।"
फिर बीसीसीआई की कमिटी आती है, तो भी वो कहते है, "नहीं, मैं कप्तान नहीं रहना चाहता।"
फिर उनका एक कथित फैन आत्महत्या की कोशिश करता है और वे कहते है, "ठीक है, आप कहते है तो मैं कप्तान पद पर चालु रहता हूं, लेकिन हार के लिए मुझे मत जिम्मेदार गिनयेगा।"
आज कल कॉंग्रेस में यही ड्रामा चल रहा है।
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