कर्णाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी बार बार रो रो कर कहते दिखाई दिये कि वह कॉंग्रेस की कठपूतली है
(तसवीर सौजन्य: गूगल)
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कर्णाटक में जो पीछले २२
दिनों से हो रहा है, उस को क्या कहा जा सकता है? कॉंग्रेस के विधानसभा अध्यक्ष और
कानूनी दांवपेच का नंगा नाच ही तो कहा जा सकता है। जो त्यागपत्र आये थे वह
सिद्धरमैया ग्रूप के आये थे। और सिद्धरमैया जेडी(से) के पुराने नेता है। उनकी और
कुमारस्वामी की पटती नहीं। रामलिंगा रेड्डी जैसे निष्ठावान कॉंग्रेसी ने क्यों
त्यागपत्र दिया? कहा जा रहा है कि उप मुख्य मंत्री जी. परमेश्वर रामलिंगा रेड्डी
को पूछे बिना निर्णय लेते थे। यही रामलिंगा रेड्डी की व्यथा है। सिद्धरमैया के गुट
ने उन को मुख्यमंत्री बनाने को यह चाल चली, जिस का निःशंक भारतीय जनता पक्षने
फायदा उठाया। मुंबई में उनको संरक्षण दिया। स्वस्थ विधायक हॉस्पिटल में बहाना कर
के प्रवेश कर गये और अस्वास्थ्यप्रद पंजाबी खाने का आनंद उठाते दिखें।
लेकिन, जेडीएस और कॉंग्रेस
की आपस की लड़ाई और कॉंग्रेस की अंदरुनी गुटबाजी का ठीकरा भारतीय जनता पक्ष के उपर
फोडा जा रहा है। संसद में कॉंग्रेस ने इस को भाजप के नाम कर दिया कि भाजप इस सरकार
को गिराना चाहती है। हकीकत तो ये है कि कुमारस्वामी स्वयं कई बार रो कर निवेदन दे
चूके थे कि वह कॉंग्रेस के क्लर्क की तरह ही है। संसद परिसर में सोनिया गांधी और
राहुल गांधी ने धरना दे कर यह चित्र ओर मजबूत बनाया। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष और
कानूनी दांवपेच के नंगे नाच के बारे में कोई मिडिया बात नहीं कर रहा। चुनाव के बाद
कोई भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, उस समय कॉंग्रेस ने आधी रात सर्वोच्च में
आवाज़ लगाई और सर्वोच्च खुल गई! येदियुरप्पा के वकील ने कितने दिन मांगे थे? १५
दिन! किन्तु सर्वोच्च ने येदियुरप्पा को केवल एक दिन का समय दिया था।
शंकरसिंह वाघेला को गुजरात के मु.मं. के रूप में शपथ दिलवा रहे राज्यपाल कृष्णपालसिंह
(तसवीर: गूगल)
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याद है गुजरात का एसा ही घटनाक्रम?
अब जब जेडीएस और कॉंग्रेस
की सरकार अल्प मत में है तो १५ दिन नहीं, २१ दिन बीत चूके है और आज मैं जब यह लिख
रहा हूं, २२ जुलाई रात ८.२७ को, तब समाचार मिल रहे है कि अभी भी मोरचा सरकार के
विधायक ओर ज्यादा समय विश्वास मत के लिए मांग रहे है! तब यह कानून व्यवस्था कहां
गई? आप को क्वचित याद हो कि गुजरात विधानसभा में कॉंग्रेस के नेता जो उस समय
विधानसभा के सभापति थे, चंदुभाई डाभी ने भाजप के विद्रोही विधायको के गूट को अलग
दल की मान्यता दे दीं। विधानसभा में कॉंग्रेस के शक्तिसिंह गोहिल आदि ने तोडफोड
की, माइक फेंके गये, कॉंग्रेस के नेता एसे राज्यपाल कृष्णपालसिंह ने जरा भी देरी
नहीं कि और देवेगोवडा की कॉंग्रेस समर्थित तीसरे मोरचे की सरकार को रिपॉर्ट भेजा
जिस के आधार पर राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने गुजरात में राष्ट्पति शासन लगा दिया।
उस समय शंकरसिंह वाघेला को
बहुमत साबित करने के लिए सात दिन दिये गये थे जब कि उपर उल्लेखित किस्से में
येदियुरप्पा को एक ही दिन मिला।
अब आईये एक दृष्टि करते है
कि कैसे विधानसभा अध्यक्ष के. आर. रमेशकुमार और कानूनी दांवपेच से अल्प मत वाली
कुमारस्वामी सरकार को विश्वास मत लेने के लिए लंबा समय मिलता चला गया।
विधानसभा अध्यक्ष के. आर. रमेशकुमार ने शकुनी चाल से कर्णाटक की मोरचा सरकार को बारबार जीवनदान दिया
(तसवीर: गूगल)
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२२ दिनों का घटनाक्रम
१ जुलाई २०१९: कॉंग्रेस के दो विधायको ने त्यागपत्र दिये।
६ जुलाई २०१९: मोरचा सरकार के ११ विधायको ने त्यागपत्र दिये।
६ जुलाई २०१९: कॉंग्रेस के धनिक विधायक डी. के. शिवकुमार (जिन के रिसॉर्ट में २०१७ में
गुजरात में अहमद पटेल की प्रतिष्ठा पर बन आनेवाले राज्यसभा चुनाव में कॉंग्रेस के
विधायको के जलसा (ऐसा गुजरात के बनासकांठा के विधायक गोवाभाई रबारी ने ही कहा था) करवाया
गया था) ने कहा कि मैंने विद्रोही विधायको के त्यागपत्र फाड डालें है। इस के लिए मैं
जैल जाने को तैयार हूं।
६ जुलाई २०१९: जेडीएस-कॉंग्रेस के विद्रोही विधायक मुंबई पहोंचे।
७ जुलाई २०१९: मुख्यमंत्री कुमारस्वामी अमरिका से लौटे।
७ जुलाई २०१९: त्यागपत्र देनेवाले विधायको की संख्या बढ के १३ हुई।
८ जुलाई २०१९: सरकार बचाने के लिए कॉंग्रेस के सभी ३१ मंत्रियों ने त्यागपत्र दिये। जेडीएस
के मंत्रियो ने भी त्यागपत्र दिये।
८ जुलाई २०१९: (यहां आप नॉट कीजिएगा कि विद्रोहीओ के त्यागपत्र ६ जुलाई को आए थे, तब से
अध्यक्ष छुट्टी पर थे) अध्यक्ष छुट्टी पर है, इस लिए त्यागपत्र को स्वीकारना, नहीं
स्वीकारना इस का निर्णय टला।
९ जुलाई २०१९: अध्यक्ष छुट्टी से लौटे, लेकिन उन्हो ने कहा कि विद्रोही विधायक उन से नहीं
मिले। १३ में से केवल ८ त्यागपत्र ही नियम अनुसार है। (अर्थात् ८ त्यागपत्र तो
नियमानुसार थे उन्हों ने स्वीकारा था, किन्तु यह निर्णय भी उन्हों ने कैसे टाला,
और इस में कानूनी दांवपेच का उन को कैसे साथ मिला यह आगे आप को पता चलेगा)
१० जुलाई २०१९: कॉंग्रेस के दो विद्रोही विधायकों ने अध्यक्ष को त्यागपत्र दिये। (अर्थात् अब
तो नियमानुसार स्वीकार होना चाहिए था, लेकिन अब भी टालंटोल का खेल जारी रहा)
१० जुलाई २०१९: विद्रोही विधायक सर्वोच्च न्यायालय गये। उन्हो ने याचिका की कि हमारे
त्यागपत्र विधानसभा अध्यक्ष नहीं स्वीकार कर रहे। आप आदेश दीजिए। लेकिन सर्वोच्च,
जिस ने भाजप के येदियुरप्पा के केस में आधी रात को बैठ कर उन को केवल अगले दिन चार
बजे तक अर्थात् ११ से ४ बजे तक पकडे तो केवल पांच घंटे का समय दिया था, उस ने
सुनवाई अगले दिन अर्थात् ११ जुलाई तक टाल दी।
११ जुलाई २०१९: सर्वोच्च न्यायालय ने विधायको को अध्यक्ष को मिलने का आदेश दिया। अध्यक्ष ने
भी सर्वोच्च में याचिका कर डाली। जिस पर सर्वोच्च ने १२ जुलाई सायं ६ बजे का समय
दिया। अर्थात् फिर से येदियुरप्पा के मामले से तुलना करे तो दो घंटे ज्यादा समय
दिया!
११ जुलाई २०१९: कॉंग्रेस की नेत्री सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने संसद परिसर में धरना कर के
ऐसा चित्र बनाने का प्रयास किया जैसे भाजप कर्णाटक की जेडीएस-कॉंग्रेस सरकार को
अस्थिर करने का प्रयास कर लोकतंत्र का गला घोंट रहा है। जब कि विधानसभा अध्यक्ष और
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से मोरचा सरकार को ओर समय मिल रहा था कि वह विद्रोही
विधायको को (अगर भाजप ने खरीदा है तो) वापस खरीद सकें।
१२ जुलाई २०१९: सर्वोच्च के निर्णय ने फिर से मोरचा सरकार का जीवनदान लंबा कर दिया। उस ने
स्टॅटस क्वॉ अर्थात यथा परिस्थिति रखने का आदेश दिया! अर्थात् अध्यक्ष को
त्यागपत्र स्वीकारना या उन को गेरलायक ठहराने का निर्णय नहीं लेना है। माना कि १२
जुलाई को शुक्रवार था, सो अगली सुनवाई १५ जुलाई को हो सकती थी, लेकिन सर्वोच्च ने
सुनवाई १६ जुलाई तक टाल दिया जिस से मोरचा सरकार को अपनी बाज़ी संभालने का ओर समय
मिल गया।
१२ जुलाई २०१९: विद्रोही विधायको के वकील ने दलील की थी कि विधानसभा अध्यक्ष मिडिया को संबोधित
करने के लिए समय निकाल सकते है लेकिन विधायको के त्यागपत्र की दस लाइन पढने के लिए
उनके पास समय नहीं है!
१२ जुलाई २०१९: अब आप देखिये कि कॉंग्रेस कैसे कानूनी दांवपेच में निपुण है और भाजप इसी
क्षेत्र में मार खा जाता है। चाहे वह राममंदिर हो, चाहे वह धारा ३५-ए, धारा ३७०
हो, या अहमद पटेल के समय राज्यसभा चुनाव के समय चुनाव आयोग के समक्ष जो प्रस्तुति
करनी थी, वह हो, या २०१८ के कर्णाटक चुनाव के बाद येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने
का केस हो, वह अपनी बात न्यायालय में ठीक से नहीं रख पाता। और रख पाता होगा तो
क्वचित सूनी नहीं जाती होगी। तो १२ जुलाई २०१९ को कॉंग्रेस के एक-दो नहीं, किन्तु
४०० कार्यकरो ने कर्णाटक मामले में हस्तक्षेप की याचिका कर दी। और मांग की कि
विद्रोही विधायको को गेरलायक ठहराये जाये।
१३ जुलाई २०१९: इस के सामने कॉंग्रेस-जेडीएस के पांच ओर विधायको ने सर्वोच्च में पहेले जो याचिका
हुई थी उस में जुडने के लिए याचिका की।
१३ जुलाई २०१९: कॉंग्रेस के कुछ विधायक बातचीत के लिए मुंबई से कर्णाटक आये।
१४ जुलाई २०१९: लेकिन बात नहीं बनी। वे वापिस मुंबई चले गये।
१५ जुलाई २०१९: विद्रोही विधायको ने मुंबई पुलीस से कहा कि वे कॉंग्रेस के नेताओ से मिलना
नहीं चाहते।
१६ जुलाई २०१९: विधानसभा अध्यक्ष ने त्यागपत्र पर विचार करने के लिए सर्वोच्च से ओर समय
मांगा। (अर्थात् एक बार ओर मामला टाला और उसे न्याय व्यवस्था ने टलने दिया)
१७ जुलाई २०१९: सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि अध्यक्ष निर्णय कर सकते है कि उन्हें
त्यागपत्र स्वीकारना है कि नहीं स्वीकारना। (यह स्पष्ट केस था कि सर्वोच्च निर्णय
कर सकता था कि त्यागपत्र स्वीकारना चाहिए कि नहीं। लेकिन सर्वोच्च ने निर्णय नहीं
किया) कॉंग्रेस को खुश करने के साथ भाजप को खुश करने के लिए सर्वोच्च ने ये भी कहा
कि विद्रोही विधायकों को विधानसभा में उपस्थित रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा
सकता। फिर भी सर्वोच्च ने येदियुरप्पा के केस के अनुसार बहुमत के लिए कोई समयसीमा
नहीं रखी। (हो सकता है विद्रोही विधायको ने मांगी न हो)
१८ जुलाई २०१९: विधानसभा की कार्यवाही मिली। लेकिन जानबूज कर हंगामा किया गया। इस से दोपहर
तीन बजे तक सदन स्थगित किया गया। एसी नीति ही चलती रही। दिन में दो बार सदन स्थगित
हुआ। विपक्ष के नेता येदियुरप्पा ने कहा कि हम रात भर बैठने को तैयार है। लेकिन उन
की एक न सूनी गई। राज्यपाल वजुभाई वाळा ने मुख्यमंत्री कुमारस्वामी और विधानसभा
अध्यक्ष पत्र लिखकर सायं छ बजे तक की समयसीमा विश्वास मत के लिए दी थी। वह समय
सीमा का भी उल्लंघन हुआ। अंत में राज्यपाल वजुभाई वाळा ने दूसरी बार हस्तक्षेप
किया। उन्हों ने मुख्यमंत्री कुमारस्वामी और विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिख १९ जुलाई
दोपहर १.३० तक विश्वास मत लेने को आदेश दिया। भाजप के विधायक रातभर सदन में ही
धरने पर रहें।
१९ जुलाई २०१९: इस दिन भी विधानसभा नहीं चलने दी गई। अंत में यह २२ जुलाई तक कार्यवाही
स्थगित की गई। अर्थात् ओर तीन दिन ले गये।
२१ जुलाई २०१९: बहुजन समाज पक्ष की सर्वोच्च नेत्री मायावती ने अपने विधायक को सदन में
उपस्थित न रहेने को कहा। लेकिन बाद में निर्णय पलट दिया गया। स्पष्ट है कि इन का
भी भावताल हो गया होगा।
२२ जुलाई २०१९: आज सदन मिला और आज भी हंगामा होता रहा। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष के मन में राम
बसे। उन्होंने कहा आज शाम छ बजे तक विश्वास मत हो जाना चाहिए। लेकिन
कॉंग्रेस-जेडीएस ने ‘संविधान बचावो’ के नारे लगाकर येदियुरप्पा को बोलने न दिया। आज
भी रात नव बजे के करीब येदियुरप्पाने कहा था कि वे (अर्थात् भाजप के विधायक) रात
१२ तक बैठने को तैयार है। समाचारसंस्था एएनआई ने कुमारस्वामी के टेबल पर उनका
त्यागपत्र तैयार होने का समाचार तस्वीर के साथ ट्वीट किया। अर्थात् कुमारस्वामी
जानते है कि उनका जाना निश्चित है। फिर भी समय अकारण व्यय कर रहे है। रात दस बजे समाचार
आये कि विधानसभा अध्यक्ष ने विद्रोही विधायको को कल अर्थात् २३ जुलाई को ११ बजे तक
उनसे मिलने के लिए नॉटिस प्रकाशित की है। रात ११.३८ को समाचार आया कि येदियुरप्पा फिर
से कह रहे है कि हम रात बारह बजे तक बैठने को तैयार है। लेकिन रात ११.४९ को समाचार
मिले कि अध्यक्ष ने कल अर्थात् २३ जुलाई सायं छ बजे तक विश्वास मत लेने की समयसीमा
निश्चित की है। अर्थात् जेडीएस-कॉंग्रेस को सरकार बचाने के लिए एक पूरा दिन फिर से
मिल गया। इसी समय ओर एक समाचार आया कि सदन स्थगित कर दिया गया है। अब कल सुबह दस
बजे मिलेगा।....
(उपरोक्त सारा घटनाक्रम गणमान्य अंग्रेजी और हिन्दी अखबारों की वेबसाइट पर प्रतिदिन
जो लाइव खबरें चलती है उससे लिया गया है। हो सकता है कि बाद में ये वेबसाइट पर से ‘उपरी’
आदेश के कारण कुछ खबरें हटा दे तो यह लेखक का दोष नहीं है)
आईएमए ज्वेल्स के मन्सूर खान पर रू. ५००० करोड के घोटाले का आरोप है
(तसवीर : गूगल)
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अब सोचिये, यही कहानी किसी भाजप शासित राज्य की होती तो? लेकिन आप टीवी पर प्रति
दिन मोब लिंचिंग, हिन्दू-मुस्लिम, साक्षी मिश्रा का दलित युवक के साथ विवाह इसी
ब्रेकिंग इन्डिया एजन्डे पर डिबेट देखते है। कर्णाटक में ५००० करोड का आईएमएलए
ज्वेल्स घोटाला हुआ। इस का मालिक मन्सूर खान भाग गया था। लेकिन मोदी सरकार की
सजगता से वह पकडा गया। इस में कर्णाटक के कॉंग्रेस के विधायक रोशन बेग पर रू. ४००
करोड की रिश्वत के आरोप है। उन की गिरफतारी हुई तो कुमारस्वामी ने मोदी सरकार पर
दुर्भावना का आरोप लगाया। इस घोटाले में एक लाख से ज्यादा निवेशकारो जिस में बडी
मात्रा में मुस्लिम थे क्योंकि इस को इस्लामिक सिद्धांत अनुसार निवेश कहा गया था,
जिस के लिए मौलवीओने फतवा भी प्रगट किया था, तो ये मुस्लिम अब अपना पैसा डूबने के
कारण रो रहे है। लेकिन जो कॉंग्रेस, टीवी चेनल और बुद्धिजीवी को चोर तबरेज़
अन्सारी की मोब लिंचिंग में मृत्यु से दुःख होता है उन को इस घोटाले में रो रहे
मुस्लिमो के लिए कोई दु:ख नहीं होता।