Friday, July 5, 2019

बजेट २०१९ का अच्छा-बूरा

सौजन्य : इन्टरनेट
एक तरफ यह बहीखाता (#Budget2019) अंग्रेजो की निशानी समाप्त करने की ओर भाजप सरकार द्वारा तीसरा कदम है -१. शाम पांच बजे बजेट की परंपरा समाप्त करना। २. हर बार फरवरी के अंतिम दिन ही बजेट प्रस्तुत होने की ब्रिटिश परंपरा को समाप्त करना। ३. ब्रीफ केस में बजेट ले जाने की परंपरा समाप्त करना। बजेट का नाम खातावही करना।
गांव, गरीब, किसानो के लिए इस बजेट में काफी कुछ है। मध्यम वर्ग के लिए कुछ नहीं है, यह कहना ठीक नहीं होगा क्योंकि अंतरिम बजेट में ही मध्यम वर्ग के लिए आयकर छूट दी गई थी। छोटे व्यापारीओ के लिए पेन्शन, ५९ मिनिट में लॉन, उच्च शिक्षा के लिए रू. ४०० करोड, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, अनुसंधान पर जोर, इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर, मेट्रो रेलवे पर जोर, महिलाओ के लिए मुद्रा योजना में सहायता, अमीरों पर ज्यादा टॅक्स, लेकिन कंपनीओ के लिए कॉर्पोरेट टॅक्स में छूट आदि कई बातें अच्छी है।
लेकिन जो गंभीर बात है, वो यह है कि मिडिया में विदेशी निवेश को छूट दी गई है। इसी प्रकार बीमा में भी विदेशी निवेश को छूट दी गई है। मिडिया पर विदेशी कंट्रॉल हो यह तो पत्रकारों के लिए अच्छी बात ही होगी, क्योंकि वह ज्यादा वेतन देगा। लेकिन हम देखतें हैं कि ज्यादातर विदेशी मिडिया में जो भारत संदर्भ में खबर आती है, वह भारत के लिए नेगेटिव और ज्यादातर झूठी होती है। न्यू यॉर्क टाइम्स, टाइम्स, हफिंग्टन पॉस्ट, बीबीसी आदि इस के उदाहरण है।
इसी प्रकार बीमा हो या, अन्य क्षेत्र विदेशी निवेश का भाजप और संघ परिवार हंमेशां विरोध करता आया है। यह नीति उलट कर देना यह अच्छी बात नहीं है।

रेलवे का प्राइवेटाइझेशन की ओर कदम पीपीपी यह अच्छा होगा, या बूरा ये तो समय ही कहेगा। लेकिन अब तक रेलवे इतना बडा नेटवर्क होने के उपरांत अपना काम अच्छे ढंग से करते आया है। नरेन्द्र मोदीजी जैसे भारतीय चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव आयोजन करने का विश्व  के संदर्भ में प्रशंसा करते है और मानते है कि इसका पूरे विश्व में प्रचार करना चाहिए, उसी प्रकार रेलवे का भी प्रचार करने की आवश्यकता है।
एसा कहा जाता है कि नॉ लंच इझ फ्री। यह मानसिकता तभी काम करती है, जब सामने एसी सुविधा मिलती हो। आज हाइवे तो अच्छे है लेकिन टॉल टॅक्स कितना चुकाना पडता है? यह दलील कि जा सकती है कि हाइवे मेइनटेइन होने के कारण तेज गति से एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर बढा जा सकता है। जिस से समय और तेल दोनों का बचाव होता है। लेकिन यह टॉल टॅक्स भी तार्किक होना चाहिए। पीछली मोदी सरकार में वर्ष २०१५ में नीतिन गडकरी जी ने टॉल टॅक्स दूर करने की बात की थी, लेकिन हुआ नहीं। उन्हों ने ही २०१८ आते आते टॉल टॅक्स दूर करने की बात को नकार दिया। प्रश्न यह उठता है कि वाहन खरीदते समय रॉड टॅक्स दिया जाता है, पेट्रोल-डीझल पे टॅक्स लगता है, आयकर दिया जाता है, जीएसटी दिया जाता है, इतने सारे टॅक्स दिये जाते है फिर भी टॉल टॅक्स लगता है, स्टेच्यू ऑफ यूनिटी में इतनी फी देखने के लिए ली जाती है, तो भी आज मूलभूत सुविधा जैसे स्वच्छ पानी, स्वच्छ नदी, स्वच्छ शहर आदि क्यों नहीं मिलती? अमदावाद में पीराणा में कचरे का पहाड बन गया है, इस को हटाने की बात क्यों नहीं होती?
ठीक है कि पीछली मोदी सरकार में उस से पहेले की कॉंग्रेस सरकारो पर दोषारोपण किया जा सकता था, लेकिन अब एसा नहीं किया जा सकता। करेंगे तो लोग स्वीकारेंगे भी नहीं।
इसी प्रकार सरकारी इकाइयों का निजीकरण करना भी अच्छी बात नहीं है। नरेन्द्र मोदीजी ने तो गुजरात में घाटा कर रहे GSFC, GACL, GUVNL और GEB को मुनाफा करनेवाली कंपनियां बना दी थी और इसी मॉडल पे तो वे २०१४ का लोकसभा चुनाव जीते थे। सरकारी कर्मचारी अगर काम नहीं कर रहे है और कंपनीओ को घाटा करवा रहे है, तो hire and fire की नीति अपनाई जा सकती है। लेकिन इसी कारण इन का निजीकरण कर देना यह आलोचना को आमंत्रण देना होगा, जो एक समय भाजप करता था।
बॅन्क से वर्ष में १ करोड रकम निकालने पर २ % कर लगाना भी समज में नहीं आता। अपने पैसे निकालने पर क्यों कर देना पडे? हो सकता है यह तार्किक हो, लेकिन इस के लिए तर्क समजाना लोगों को जरूरी है।
उच्च शिक्षा पर रू.४०० करोड का प्रावधान करना अच्छा कदम है। नेशनल रीसर्च फाउन्डेशन का कदम भी अच्छा है। लेकिन साथ में प्राथमिक शिक्षको को जितना सरकारी चुनाव, मतदान, जनसंख्या गिनती, आदि कामों में दौडाया जाता है इस के सापेक्ष में प्रॉफेसरो को क्यों काम में नहीं लगाया जाता? उनका वेतन भी अच्छा खासा होता है। और सेमिनार, कॉलम राइटिंग, बुक ऑथरिंग जैसे अपने निजी लाभ वालें काम वे ज्यादा करते है। वे अपना काम जो कि विद्यार्थीओ को अच्छा शिक्षण देना है, वह भी अच्छा करते तो समज में आता भी। लेकिन वैश्विक स्तर पर उच्च शिक्षण में भी हम बहोत पीछे हैं। यह बताता है कि प्रॉफेसर समुदाय अपना काम ठीक से नहीं कर रहा है। मैं इस के लिए सारे प्रॉफेसरो की आलोचना नहीं कर रहा हूं। लेकिन एक गणनापात्र संख्या तो है हि जो अपना काम ठीक से नहीं करते।
इसी तरह, गंगा पर कार्गो चलाना भी, मेरी दृष्टि से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने की बात होगी। इस से हो सकता है कि व्यापार में वृद्धि हो, लेकिन पर्यावरण और समुद्री/नदी में रहते जीवों का नुकसान होगा।

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