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Sunday, November 8, 2015

एनडीए की 2014 में बिहार में जीत और 2015 में हार, ये है कारण



1. 2014 में भाजप-रामविलास पासवान-कुशवाहा का गठबंधन था, सामने नीतीश, लालु, कॉंग्रेस अलग-अलग थे
2. 2014 में प्रजा कॉंग्रेस के शासन से अति त्रस्त थी। लेकिन बिहार में नीतीश के सुशासन से नाराज नहीं थी। लेकिन चूं कि नीतीश केन्द्र में सरकार नहीं बना सकते थे इस लिए उन्होने भाजप को मत दिया।
3. 2015 में नीतीश-लालु-कॉंग्रेस एक हो गये। उनके वोट नहीं बंटे।
4. 2015 में भाजप ने जीतनराम मांझी का साथ लिया। जिस तरह गुजरात की जनताने भाजप के साथ सत्ता के लिए द्रोह करने वाले शंकरसिंह-कॉंग्रेस को हराया वैसे बिहार की जनता मांझी के नीतीस द्रोह से नाराझ थी।
5. 2014 में नरेन्र मोदी के मिडिया स्ट्रेटेजिस्ट रहे प्रशांत किशोर को 2015 में नीतीशकुमारने अपने पास बुला लिया।
6. नरेन्द्र मोदी दिल्लीवाली गलती फिर से दोहरा गये। जिस तरह कॉंग्रेस उन पे व्यक्तिगत हमला करती थी और वो गुजरात में हरदम जितते थे वैसे उन्होने और भाजपने 2014 में केजरीवाल पे व्यक्तिगत प्रहार किये। 2015 में भी उन्होने नीतीश पे प्रहार किये। लालु पे प्रहार से कोई फर्क नहीं पडा लेकिन नीतीश की छबि काफी स्वच्छ है। इसी लिए जनताने ये बरदास्त नहीं किया।
7. ये लडाई मोदी वर्सिस ओल जैसी हो गई। इसमें लालु-नीतीश के अलावा साहित्यकार, फिल्मकार, इतिहासकार, वैज्ञानिक सभी कूद पडे। यहां तक कि शाहरुख खान भी। मोदी के समर्थन में ये सभी क्षेत्र के लोग आये लेकिन तब जब परिणाम को आने में एक ही दिन बाकी था। चुनाव के वक्त इन समर्थको को आ जाना चाहिए था।
8. दाल की महंगाई भारी पड गई।
9. दादरी कांड से ज्यादा हरियाणा में दलित हत्या भाजप के लिए नुकसानदेह साबित हुई। दलित हत्या को मिडिया ने जमकर कवरेज दिया। और उस पे वी. के. सिंह मिडिया के ट्रेप में आ गये। मिडिया का बहोत बडा वर्ग मोदी शासन के विरुद्ध था और रहेगा।
10. अपने भी विरुद्ध थे। अडवाणी खेमा पूरी तरह से मोदी का अश्वमेघ रथ बिहार में फिर से रूके एसा कर रहे थे। अडवाणी, अरुण शौरी, शत्रुघ्नसिंहा, सुधीन्द्र कुलकर्णी, सुशील मोदी आदि सबने कहीं ना कहीं ये चाहा कि बिहार में या पराजय हो या कम सीट मिले।
संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के इन्टरव्यू को ट्विस्ट कर के मिडिया में पेश किया गया। लालु-नीतीश ने इस का जम के फायदा उठाया। मोदी को इस की सफाई देते देते नाक में दम आ गया । मोदी अपने गुजरात में ही हार्दिक पटेल के नेतृत्व में पटेल अनामत आंदोलन हुआ। जो कथित तौर पे अरविंद केजरीवाल और  कॉंग्रेस के ईशारो पे हुआ। हार्दिक पटेलने गुजरात के विकास मोडल के विरोध किया जिस से विरोधीओ को मौका मिल गया।