Thursday, August 29, 2019

मंदी मन की

प्रतीकात्मक तसवीर
सौजन्य : इन्टरनेट 

भारत में मंदी की बात मिडिया में जोरशोर से कब से होने लगी? जुलाई में खातावही में सुपर रिच टेक्स २५ प्रतिशत करने और कॉर्पोरेट टेक्स नहीं घटाने के निर्णय के बाद।

वैसे भी अमरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध और वैश्विक मंदी के चलते भारत को थोडीबहोत तो असर होनेवाली ही थी, किन्तु एक मानसिकता भी होती है। एसे मोके का फायदा उठाकर 'मंदी है, मंदी है' एसा शोर मचाकर अपना मुनाफा यथावत रखने के लिए अपनी कंपनी से कर्मचारियों को निकालने की या उनकी सेलरी घटाने की कसरत होती है। यह एक संक्रमण जैसा होता है। देखादेखी में यह आगे बढता है।

कुछ कंपनियाँ (जैसे पार्ले जी) नोकरी में से निकालेंगे एसी हवा फैलाती है। जिसका एक उद्देश्य सरकार लाभ घोषित करे तो पाना होता है और दूसरा, कर्मचारी निकाले जाने के डर से पगार बढाने की बात न करे, मंदी के बहाने उसको यदि और कोई काम सोंपा जाये तो वह करें। कदाचित इन्हीं सब कारणों के चलते इन बडी मछलीओने शॅयर बाजार में भी मंदी बनाकर रखी है।

जहां तक ओटो मोबाइल की मंदी की बात विशेष रूप से की जा रही है, इस के पीछे दो कारण है। पीछले कुछ वर्षो से कार और टु व्हीलर लॉन उपलब्ध होने के कारण लोग अपने घर में प्रति सभ्य एक टु व्हीलर और प्रति फेमिली एक कार (यदि परिवार की कमाई अच्छी है तो दो कार) खरीदने लगे थे। लेकिन उसका कोई चरम बिंदु तो आनेवाला ही था। पेट्रोल-डीझल के बढते दाम और बढते ट्राफिक से कुछ लोग एसे भी होंगे जिन्होंने कार खरीदने की योजना टाल दी हो। तीसरा कुछ ही अमीरचंद एसे होंगे जो नई कार मार्केट में आने पर खरीद लेते होंगे।

दूसरा कारण, मोदी सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों पर जोर दे रही है। इसके पीछे वैश्विक पर्यावरण में परिवर्तन है जिस में भारत नेतृत्व करे एसी संभावना है। पेट्रोलियम पर इस्लामिक देशों की दादागीरी समाप्त करके इस्लामिक आतंकवाद की शबपेटी की किल ठोकना भी है और इससे विदेशी मुद्रा बचाकर रूपिये को मजबूत करना भी हो सकता है।

अब जब कि ओटो मोबाइल के लिए वाहन प्रदूषण की डेडलाइन हटा दी गई है, सरकार ने अर्थतंत्र को प्रोत्साहन देने के लिए कुछ कदमों की घोषणा की है तो  आशा है कि मंदी मंदी की बूमाबूम कुछ हद तक घटेगी। वैश्विक मंदी का तो जो प्रभाव होगा, वो तो होगा ही।

मंदी का एक कारण पीछले वर्ष अच्छी बारिश न होना भी हो सकता है। इस वर्ष बहोत अच्छी बारिश हुई है तो आनेवाले महिनों में इसका असर दिखेगा।

अगर मंदी ही है तो लोगों की खरीदी क्यों अभी भी ज्यादा है। अभी मैं पूणे गया था। वहां  की मार्केट में अभी जन्माष्टमी के बाद भी बहोत भीड थी। अमदावाद हो या कोई और शहर, होटल, रेस्टोरन्ट या सस्ते खोराक की दुकान, ठेलेवाला, भीड तो रहती ही है। ओनलाइन खरीदी और ओनलाइन भोजन के आदेश में कोई कमी दिखती नहीं है। तो जो लोग मंदी की बूमाबूम कर रहे है वह व्यापारी कहीं ओनलाइन खरीदी की कंपनियों के चलते तो बूमाबूम नहीं कर रहे है ना? यह सोचने की आवश्यकता है। कदाचित बिजनेस मोडल तो नहीं बदल रहा? क्यों न एसे व्यापारी मिल के अपनी एमेझोन जैसी कंपनी न बनाये? सरकार को भी ओनलाइन कंपनियों पर कर डालने की आवश्यकता है।

और जहां तक भारत की अॉटो मोबाईल कंपनियां मंदी के नाम पर स्टिम्युलस पेकेज मांग रही है, मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने ठीक ही कहा कि मुनाफा हो तो अपना, लेकिन नुकसान हो तो पूरे देश का यह मानसिकता सही नहीं है।

मैं तो यह कहना चाहूंगा कि पेकेज देना है तो उन कर्मचारियों को दीजिए जिनको यह बडी बडी कंपनियां अपनी जेब भरी की भरी रहे इसके लिए निकाल रही है। इस के कारण अब उनको दूसरी जगह भी कम वेतन में नौकरी मिलेगी। कंपनियां अपने सीइओ का वेतन क्यों नहीं कम करती? किसी कंपनी के सीएमडी ने मानवता को ध्यान में रखकर क्या यह घोषणा की कि वह अपना वेतन कम करेंगे जिससे सभी नहीं तो ना सही, कुछ कर्मचारियों की नौकरी तो बच जायेगी।

इस मानसिक मंदी के वातावरण में सरकार को दूध-सब्जी, चाय, हॅयर कटिंग सलून, स्कूल-कॉलेज, हॉस्पिटल जैसी आवश्यक सेवाओं के दाम भी कम करवाने चाहिए। मेडिक्लेम प्रिमियम भी घटाना चाहिए। इस मानसिक मंदी में सब से ज्यादा कोई पीडित होता है तो वह मध्यम वर्गीय व्यक्ति ही होता है क्योंकि उद्योगपतियों से राजनीतिक दलों को चंदा चाहिए इस लिए उनकी हंमेशां चलती है। गरीबों की मत बॅन्क है। उनके लिए सरकारी योजनाएं भी है। लेकिन मध्यम वर्गीय स्वावलंबी भी है और स्वाभिमानी भी। वह किसी के पास हाथ फैलाना नहीं चाहता, सिवाय कि उसके पास ओर कोई चारा न हो। 

Tuesday, August 6, 2019

विरोधियों को जीतनेवाली बहुभाषी, ज्ञाता तथा कार्यदक्ष सुषमाजी


स्मितसभर चहेरा, बहुभाषी (सम्स्कृत, हिन्दी, उर्दू, अंग्रेज़ी), ज्ञानी एसी भाजप नेत्री सुषमा स्वराज हमारे बीच नहीं रहीं। जातेजाते वह संतोष लेकर गई कि जीवनभर जिसकी प्रतीक्षा की वह धारा ३७० प्रधानमंत्री मोदी ने समाप्त कर दी।

अपनी कभी मधुर, कभी तीखी तो कभी व्यंग्यसभर वाणी से वह हर किसी का मन जीत लेती थी। तो विरोधियों का मुंह बंध भी करा सकती थी, किन्तु विरोधी से कटुता नहीं होती थी। अधिवक्ता होने के कारण अपनी बात तर्क व उदाहरण से प्रस्तुत करना कोई उनके अब विडियो देख सीखे। १९९६ या १९९७ में संसद में अविश्वास प्रस्ताव के समय उनका भाषण कौन भूला होगा?

सब से अल्प आयु में हरियाणा सरकार में मंत्री से लेकर दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री, संसदीय मंत्री, सूचना व प्रसारण मंत्री, लोक सभा में विपक्ष नेता और गत सरकार में विदेश मंत्री। उन्होंनें फिल्म जगत को विधिवत उद्योग का दरज्जा देकर काले धन और दाउद के चंगुल से निकालने का प्रयास किया। संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान को चारो खाने चित्त करा देनेवाला उनका भाषण, या इस्लामिक देशो के संगठन ओआईसी में जाकर उन्ही के बीच पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद पर करारा हमला कौन भूला सकता है। मोदीजी की विदेश नीति में उनकी सहभागिता भी उल्लेखनीय है। मोदीजी के विदेश जाने से पहले वह वहां जाकर सानुकूल पृष्ठभूमि वह सजा देती थी। सुरेश प्रभु ने रेलवे मंत्री के रूप में ट्वीट पर संज्ञान लेकर जो सहायता और काम शुरू किया तो सुषमाजी ने भी विदेश मंत्री के रुप में विदेश में बसे अनेक भारतीयो की सहायता की।

एक समय जिसको प्रतिस्पर्धी माना, नहीं स्वीकारा एसे मोदीजी प्रधानमंत्री बने और  मोदीजी ने भी सुषमाजी का अनुभव व निपुणता देखकटुता भूल उन्हें इन्दिराजी के बाद दूसरी महिला विदेश मंत्री बनाया तो फिर वह शिस्तबद्ध कार्यकर्ता बन अपने दायित्व को कुशलतापूर्वक निभाया। स्वास्थ्य खराब हुआ तो चुनाव न लडने की घोषणा करने की हिंमत भी दीखाई।

प्रभु उनकी आत्मा को शांति दे।