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Monday, November 27, 2017

गुजरात विधानसभा चुनाव - २०१७ -हारेगा जातिवाद जीतेगा राष्ट्रवाद

(मेरा यह लेख पांचजन्य के २६-११-१७ के अंक में प्रकाशित हुआ)

कर्णावती से जयवंत पंड्या,  साथ में दिल्ली ब्यूरो
गुजरात में चुनावी सरगर्मी जोरों पर है। दोनों ही मुख्य दलों (भाजपा और कांग्रेस) के दिग्गज चुनाव प्रचार में लगे हैं। जहां भाजपा अपनी सरकार के विकास कार्यों और गुजराती अस्मिता के  नाम पर वोट मांग रही है, वहीं कांगे्रस जाति के नाम पर लोगोें को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है और हिंदुओं को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि अब वह मुस्लिम तुष्टीकरण की राह पर नहीं है। इस सोच को पुख्ता करने के लिए राहुल गांधी आश्रमों, मठों और मंदिरों के चक्कर लगा रहे हैं। लेकिन गुजरात के लोगों का मानना है कि इन सबसे कांग्रेस के पाप नहीं धुलेंगे। उसने पूरे देश में तुष्टीकरण की राजनीति करके अनगिनत पाप किए हैं। गुजरात के लोग कांग्रेस के इन पापों से कई दशक तक परेशान रहे हैं। कर्णावती के मयंक व्यास कहते हैं, ‘‘एक समय कांग्रेस ने तुष्टीकरण की राजनीति करके गुजरात को कर्फ्यू प्रदेश बना दिया था। आए दिन कहीं न कहीं कर्फ्यू लगता था। भाजपा ने इस प्रदेश को कर्फ्यू से बाहर निकालकर विकास के पथ पर आगे बढ़ाया है।’’ 

ऐसी सोच रखने वालों की कोई कमी नहीं है। गांधीनगर के सुरेश पटेल कहते हैं, ‘‘कांग्रेस ने गुजरात को पीछे धकेलने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यही नहीं, जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे तब कांग्रेस ने गुजरात के विकास में रोड़ा अटकाने में कोई हिचक नहीं दिखाई थी। उसने बड़ी बेशर्मी के साथ विकास योजनाओं को रोकने का काम  किया था। इसका ज्वलंत उदाहरण है नर्मदा योजना।’’ उल्लेखनीय है कि तत्कालीन केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सैफुद्दीन सोज ने अनुचित हस्तक्षेप कर नर्मदा नदी पर बनने वाले सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने का काम अटका दिया था। इस मामले में कांग्रेस के नेता अभी भी झूठ बोल रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह गुजरात में थे। उन्होंने खुलेआम कहा कि तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी नर्मदा के मुद्दे पर कभी उनसे मिले ही नहीं। इस झूठ से भी गुजरात के लोग नाराज हैं, क्योंकि इस बात के साक्ष्य हैं कि मोदी ने 2006 और 2013 में नर्मदा मुद्दे पर मनमोहन सिंह से बातचीत की थी। लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी। जब मोदी खुद प्रधानमंत्री बने तब उन्होंने नर्मदा बांध की ऊंचाई को बढ़ाने की अनुमति दी थी। आज उस बांध के पानी से गुजरात में विकास के नए अध्याय लिखे जा रहे हैं। मोदी ने महाराष्टÑ और दिल्ली के बराबर गुजरात को गैस के दाम न देने के लिए भी मनमोहन सिंह के समक्ष अपना विरोध जताया था। उस समय महाराष्ट्र और दिल्ली दोनों जगहों पर कॉंग्रेस की सरकारें थीं। 

तत्कालीन केंद्र सरकार के विरोध और बाधाओं के बावजूद गुजरात सरकार ने राज्य के विकास के लिए अनेक काम किए हैं। जनता भी इस बात को महसूस करती है। सौराष्ट्र-कच्छ में नर्मदा का पानी पहुंचाया गया, दाहोद में एशिया का सबसे बड़ा पेट्रोकेमिकल्स संयंत्र लगाया गया, भरुच के पास भारत का सबसे बड़ा केबल ब्रिज बना, घोघा-दाहोद के बीच रॉ-रॉ फेरी सेवा शुरू की गई, लोगों को 24 घंटे बिजली मिल रही है, गांवों से लेकर शहर तक अच्छी सड़कें बनी हैं, और सबसे बड़ी बात है गुजरात में कानून-व्यवस्था का अच्छा होना। अपराधी तत्वों और आतंकवादियों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की गई है। वडोदरा में रहने वाले 60 वर्षीय जीतू भाई कहते हैं, ‘‘कांग्रेस के काल में माफिया और तस्कर पुलिस पर भारी पड़ते थे। उन तत्वों की पहुंच मुख्यमंत्री आवास तक होती थी। ये तत्व व्यापारियों को निशाना बनाते थे। इसलिए उन दिनों सैकड़ों व्यापारी गुजरात छोड़कर मुंबई चले गए थे। भाजपा सरकार ने इन तत्वों को खत्म किया है। इसलिए गुजरात में शांति है।’’ 

गुजरात के लोगों को 2002 के दंगों से पहले के दंगे भी अच्छी तरह याद हैं। कांग्रेस के मुस्लिम तुष्टीकरण ने राज्य को पूरी तरह अशांत बना दिया था। साल के 365 दिन में से लगभग 200 दिन कहीं न कहीं कर्फ्यू लगा रहता था। यह भी कहा जाता था कि गुजरात के बच्चे ‘मां’ बोलना सीखने से पहले ‘कर्फ्यू’ बोलना सीख जाते थे। यहां छबीलदास महेता की सरकार (जो कि गुजरात में कांग्रेस की अंतिम सरकार थी) के समय की एक घटना का उल्लेख करना जरूरी है। चर्चित पुलिस अधिकारी डी. जी. वणझारा ने उस समय के कुख्यात तस्कर इभला शेठ को पकड़ा था। लेकिन गांधीनगर के आदेश के बाद उसे छोड़ दिया गया था और बतौर सजा वणझारा का स्थानांतरण कर दिया गया था। महेता सरकार के तत्कालीन गृह मंत्री नरेश रावल ने सार्वजनिक रूप से कहा था, ‘‘यह सरकार असामाजिक तत्वों द्वारा चलाई जा रही है।’’

गुजरात की जनता काफी चतुर और समाधानवादी मानी जाती है। लेकिन अगर कोई उसे छेड़ता है तो वह उसे छोड़ती भी नहीं है। 2002 में गोधरा नरसंहार के बाद भड़के दंगों को लेकर गुजरातियों को पूरी दुनिया में बदनाम कर दिया गया। ऐसा कहा गया कि दंगों में केवल और केवल मुसलमान मारे गए, जबकि मरने वालों में हिंदू भी थे। कुछ तथाकथित समाजसेवियों ने दुनिया के अनेक देशों में घूम-घूमकर गुजरात के हिंदुओं को ‘मानवभक्षी’ तक कहा था। गोधरा में जिंदा जलाए गए हिंदुओं के बारे में तो पूरी तरह चुप्पी साध ली गई थी। उसी तरह 2007 में अपराधी सोहराबुद्दीन की मुठभेड़ में हुई हत्या को लेकर भी गुजरात को बदनाम किया गया। उसे ‘बेचारा’ बताकर सर्वोच्च न्यायालय तक लड़ाई लड़ी गई। किसी ने उसके आतंक को जानने की कोशिश नहीं की। आतंकी इशरत जहां के मामले में भी गुजरात को बदनाम किया गया। खुफिया एजेंसियों की रपटों को दरकिनार कर उसे ‘निर्दोष’ बताया गया। 

इन सबसे गुजरात के लोगों में गुस्सा बढ़ा और उन्होंने बदनाम करने वालों को पंचायत से लेकर विधानसभा चुनावों तक में पटखनी दी। गुजरातियों की एकता को तोड़ने के लिए ही कांग्रेस ने इस बार जातिवाद की राजनीति शुरू की है। इसी के तहत उसने पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, पिछड़े वर्ग के नेता अल्पेश ठाकोर और वंचित समाज से आने वाले और सोच से वामपंथी जिग्नेश मेवाणी को अपने साथ लिया है। लोगों का मानना है कि ये तीनों कांगे्रस की शह पर ही पिछले कुछ साल से गुजरात की भाजपा सरकार के विरुद्ध आंदोलन कर रहे हैं। अब यह स्पष्ट दिखने भी लगा है। इसलिए गुजरातियों को सब कुछ समझ में आने लगा है। तूफानी चुनावी प्रचार के साथ ही गुजरातियों की यह समझ और परिपक्व होती जा रही है। इसलिए लोग कहने लगे हैं कि जातिवाद हारेगा और राष्टÑवाद जीतेगा।