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Thursday, October 25, 2018

गुजरात में बाहरी श्रमिको विरुद्ध हिंसा के पीछे किस का ‘हाथ’?



(पांचजन्य, २८ अक्तूबर, २०१८ दिनांक के अंक में प्रसिद्ध आलेख)

गुजरात के साबरकांठा जिल्ले में हिंमतनगर के पास ढुंढर गाँव में पीछली 28 सितम्बर को केवल 14 वर्ष की बच्ची पर बलात्कार हुआ। बलात्कारी बिहार से आया हुआ श्रमिक था जो सिरामिक फॅक्टरी में काम करता था। इस अपराधी को पकड लिया गया और फास्ट ट्रॅक कॉर्ट द्वारा जल्द न्याय होने के लिए भी मुख्यमंत्री विजय रूपाणीने आश्वासन दिया है। लेकिन इस के बाद भी गुजरात में बहार से आये श्रमिको के उपर गुस्सा फूट नीकला। कहीं पर घर में घूस के तोडफोड की गई। तो कहीं पर मारमार के लूट लिया गया। तो कुछ जगह पर तो लडकियों को रोक के धमकी दी गई। कहीं पर महिलाओं की छेडखानी की गई।

गुजरात तो हंमेशां से बहार के लोगों का स्वागत कर के अपने में घूलमिला देनेवाला राज्य रहा है। पूरा विश्व जानता है कि इस्लामी आक्रांताओ से पीडित पारसी ईरान से सब से पहेले गुजरात के संजाण बंदर पर आए थे। और उन को यहां बसने की अनुमति मिली थी। पारसी भी दूध में सक्कर की तरह घूल मिल गये। तो गुजरात में भारत के अन्य राज्यो से आये हुए लोगों के प्रति झहर का तो प्रश्न ही नहीं उपस्थित होता। गुजरात में कई लोग है जो बहार से आये और गुजरात में जिस को सवाया गुजराती (गुजराती से बढ के गुजराती) बोला जाता है एसे बन गयें। जैसे कि काकासाहेब कालेलकर (गांधीजी के अनुयायी, साहित्यकार, मूलतः महाराष्ट्री), रूबिन डेविड (मूलतः यहूदी, अमदावाद के कांकरिया झू के स्थापक), एस्थर डेविड (मूलतः यहूदी, शिल्पकार, साहित्यकार), फाधर वालेस (मूलतः स्पैन, गणितज्ञ), गुलझारीलाल नंदा (दो बार अस्थायी प्रधानमंत्री बने), डॉ. वर्गीस कुरियन (श्वेत क्रांति के जनक) आदि। गुजरात में बहार से जो आता है वो यहीं रचबस जाता है। उस को यहां की शांति, समृद्धि, पारस्परिक सहयोग से विकास करना, भाईचारा रखना ये बातें इतनी भा जाती है कि वह फिर अपनी मातृभूमि वापिस जाने का कम ही सोचेगा।

तो फिर ये क्यों हुआ? किस के कारण हुआ?

दो कारण हैं। एक उत्तर गुजरात के ठाकोर समुदाय में (जो कि मत की दृष्टि से प्रभावी है) बहार से आये हुए श्रमिको के प्रति असंतोष थोडा बहोत था। क्योंकि ठाकोरों को लग रहा था कि उनकी जगह बाहरी श्रमिको को रोजगार मिल रहा है। ठाकोर समुदाय से निकले अल्पेश ठाकोर ने ये जान के इस को हवा देना शुरू किया। उन के टीवी चैनल पर दिये इन्टरव्यू या डिबेट में ये बातें स्पष्ट देखने को मिलती है। लेकिन 29 सितम्बर को अपने फेसबुक लाइव में उपर उल्लेखित बलात्कार कांड के बारे में बोलते हुए उन्होंने ठाकोरों को भडकाने की भरसक कोशिश की।

उन्होंने कहा, कब तक एसे लोगों को हम सह लेंगे? एसा बनाव गुजरात में कहीं पर भी बनता है तो एसे लोगों को मत छोडो। वह परप्रांतीय (बाहरी) युवान कोई भी हो, वह छूटनेवाला नहीं। वह नराधम यदि ठाकोर सेना के हाथों में सोंप दीया होता तो उस का हिसाब हो गया होता। इसी सेशन में वह उसका विरोध करनेवाले मनोज बारोट नाम के युवान को धमकी देते हैं कि मैं सिंहों की सेना का केप्टन हूं। वह अपनी ठाकोर सेना के लोगों को इस युवान को ढूंढने के लिए आदेश भी देतें हैं। (इस की लिंक ये रही : https://www.facebook.com/alpeshthakorektamanch/videos/320171978787448/?__xts__[0]=68.ARALUyDSrK5KNuVpykzQFqHkapsCHPDbWsBoSOw_48OTg3Cn-ahnJSphKwdVwwMgsQRJokNX6mOpVvorgDDmeC_gzFpgAJmBRdGtMeA7Pywqy-W5cANhIx2dTUFRFyW-KHYacfI6nWLj17kbZl3Kg7x4hxu935nqgj0Q_RB1HWW3g8l7WD3U&__tn__=-R)

अल्पेश ठाकोर के इस फेसबुक लाइव भाषण के बाद बाहरी लोगों के विरुद्ध हिंसा शुरू हो गई। पुलीस ने सख्ती से काम लिया। अब तक 533 लोगों की गिरफ्तारी हो चूकी है जिस में से 20 लोग कॉंग्रेस के नेता है। ठाकोर सेना के भी बहोत सारे लोग है। पुलीस ने कथित बाहरी श्रमिको में सुरक्षा की भावना के लिए उनसे बात की। जैसे ही कॉल आता, पुलीस तुरंत पहुंच जाती एसा गुजरात के बाहरी लोगों का कहना भी है। लेकिन डर का वातावरण बना दिया गया था। पुलीस की सख्त कार्यवाही के बाद अब वातावरण शांत हो गया है। फॅक्टरीयां भी फिर से चालु हो गई है। कुछ लोग फिर भी अपनी मातृभूमि वापिस गये। पुलीस का यह कहना है कि वे दिवाली और छठ्ठ के त्योहारो के बाद वापिस आयेंगे।

मुख्यमंत्री विजय रूपाणीने बाहरी लोगों को गुजरात वापिस आने की अपील की। वे लगातार इस मामले को लेकर चिंतित दिखें। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीशकुमारने रूपाणी से बात करने के बाद भरोसा जताया कि गुजरात में सरकार पूरी तरह से सक्रिय है।

लेकिन इस हिंसा के पीछे कॉंग्रेस का हाथ स्पष्ट रूप से दिख रहा है। राजनीति के विशेषज्ञ मानते है कि गुजरात में बहार से आये श्रमिको और अन्य वर्ग का मत भाजप को जाता था। इतना हीं नहीं, 2012 के धारासभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में ये वर्ग ने अपनी मातृभूमि में जा के नरेन्द्र मोदी के पक्ष में प्रचार भी किया था। तो ये मत काटने के लिए और उत्तर प्रदेश, बिहार तथा मध्यप्रदेश-राजस्थान जैसे राज्य जहां धारासभा चुनाव भी होने है, वहां भी भाजप के मत काटे जाये इस लिए यह षडयंत्र रचा गया। 2015 से हार्दिक पटेल के रूप में पाटीदार आरक्षण आंदोलन, जिज्ञेश मेवाणी का दलित आंदोलन और अल्पेश ठाकोर का पाटीदार आंदोलन के विरुद्ध ओबीसी आंदोलन- ये तीनो आंदोलन के पीछे कॉंग्रेस का समर्थन था। अल्पेश को कॉंग्रेस ने राधनपुर से लडवाया। जिज्ञेश मेवाणी को वडगाम में समर्थन देकर विधायक बनावाया। हार्दिक पटेल की राहुल गांधी से अमदावाद के हॉटल में गुप्त मुलाकात का रहस्य भी किसी से छूपा नहीं है। लेकिन ये तीनो आंदोलन का 2017 के गुजरात धारासभा चुनाव में मतों में परिवर्तन नहीं हुआ। इसी लिए अब गुजरात में मूल गुजराती विरुद्ध बाहरी एसा प्रांतवाद का मुद्दा खडा करने का प्रयास हो रहा है।

अल्पेश ठाकोर को कुछ महिने पहेले ही बिहार कॉंग्रेस का सहप्रभारी बनाया गया है। बिहार कॉंग्रेस के प्रभारी शक्तिसिंह गोहिल भी गुजरात से ही है।

कॉंग्रेस की एक नेता गेनीबहेन ठाकोर, जिस को कॉंग्रेस का हाइ कमान्ड टिकट दे इससे पहले अल्पेश ने वाव से प्रत्याशी घोषित कर दिया था, उन्हों ने तो अल्पेश से भी ज्यादा भडकानेवाला बयान दिया। उनको मिलने आई कुछ महिलाओं को उन्होंने हंसते हंसते कहा, एसे अपराधी को 50-100 का ग्रूप बना के पेट्रोल डाल के जिंदा जला देना चाहिए, तो पुलीस को सोंपने का प्रश्न ही नहीं आता।

गेनीबहेन इससे पहेले भी हिंसा फैलानेवाले बयान दे चूकी है। एक बार उन्हों ने कहा था कि ठाकोरों को बनियो ने ही पीछडा रखा है। तो किसानों की एक सभा में उन्होंने प्रदेश कॉंग्रेस प्रमुख अमित चावडा की उपस्थिति में कहा, किसानो के भले के लिए, उनकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार भाजप के सभी लोगों को मैं मार डालूं, भले ही इस के लिए मुझे जेल क्यों ना जाना पडे। शस्त्र हाथ में लेने पडे तो कॉंग्रेस का हर एक कार्यकर्ता शस्त्र उठाने के लिए तैयार है।

दूसरी तरफ बाहरी लोगों को हिंसा के लिए भडकाने की कोशिश भी हुई। एसी हरकत करनेवाला कॉंग्रेसी नेता ही है। वडोदरा के तोहिद आलमखान शरीफखान ने फेसबुक पर विडियो में कहा, युपी, बिहार और एमपी के लोगों को भगा रहे है, आप इन्सान हो या जानवर?...गुजरात में जितने भी असामाजिक लोग है उनको लेकर आओ और एक भी बाहरी व्यक्ति को गुजरात से हटा के दिखाओ, पता चल जायेगा। मैं अकेला ही पर्याप्त हूं। तो एक तरफ बाहरी लोगो के विरुद्ध हिंसा करके फिर बाहरी लोगों को गुजरात के लोगों के विरुद्ध हिंसा के लिए भडकाना इस दोनों बातों में कॉंग्रेस के लोगों की शामिलगीरी बहार आई है। गुजरात सरकार और केन्द्र की मोदी सरकार को आनेवाले दिनों में ओर सतर्क रहना होगा।

Friday, October 12, 2018

#MeToo Microfiction



In the morning, she screamed at the man standing in gallery far away from her block wing in Flats. She accused that the man used to stare her constantly day and night.  Neighbours and other residents reading #MeToo news in newspapers, got angry to hear this. They rushed to man's house. They started beating him. After their anger was poured, man asked them, "Why did you beat me?"

People said, "You are constantly harassing this woman. You patriarchal mindset man! You must be put behind bars!"

The man said with lot of (physical and emotional) pain, "I am blind. #YouToo?"

Friday, September 28, 2018

राजपाल यादव, सबरीमाला और काला: हिन्दू क्या मंदिर का घंटा बन गये है?


'हंगामा' फिल्म में राजपाल यादव का संवाद है

"हम को मारो सालो, हम को झिंदा मत छोडो, हम कोई मंदिर का घंटा है, जो हर कोई बजा के चला जाता है"।



आज कई हिन्दूओ को अपनी स्थिति एसी ही लगती है।  शनि सिंगळापुर हो या सबरीमाला, सर्वोच्च फटाक से निर्णय दे देती है। ट्रिपल तलाक हो या राममंदिर, सर्वोच्च  न्यायालय का आदेश सेक्युलर लगे इस लिए बॅन्च में हिन्दू इतर न्यायाधीश रखे जाते है लेकिन सबरीमाला केस में आज जो आदेश आया है उस में पीठ में एक पारसी न्यायाधीश है।

आज एक चेनल पर डिबेट चल रही है उस में एक पारसी महिला हिन्दू स्त्रीओ के हक में बोल रही है। लेकिन क्या पारसीओ के पंथ की मान्यता में कोई दखल देता है? पारसीओ के फायर टेम्पल में पारसी इतर पंथ के लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं है। लेकिन क्या कोई एनजीओने इस विषय में सर्वोच्च में अपील की?

जिस तरह से एनजीओ हिन्दू विषय में सर्वोच्च में अपील करने लगी है उस के पीछे कल्चरल मार्क्सवाद का एजन्डा साफ दिखाई देता है।

गुजरात में महत्त्व के मंदिर सरकार के अधीन है। क्यों मंदिर ही सरकार के अधीन? क्योंकि वहां दान इतना ज्यादा आता है? या हिन्दूओ के आस्था के केन्द्र है इस लिए? कोई मस्जिद, चर्च या पारसी धर्मस्थान क्यों नहीं?

हिन्दूओ के लिए नहेरु के झमाने से हिन्दू कोड बिल लाया गया, लेकिन किसी और पंथ को कोई कायदा क्यों लागु नहीं पडता? मंदिर है वो प्राइवेट एन्टिटी है। उस में किस को प्रवेश देना, या न देना वो अंगत विषय हो सकता है। हालांकि उस में सभी वर्ग (उच्च या दलित सभी) को प्रवेश होना चाहिए, सभी लिंग (पुरुष या स्त्री) को प्रवेश होना चाहिए ये मेरी दृढ मान्यता है। लेकिन, मेरी दलील यह है कि केवल हिन्दूओ के विषय में हस्तक्षेप क्यों? 



आज कोई भी अन्य पंथ का कोई व्यक्ति जो अपने आप को बिशप या मौलवी कहलाता है वह बलात्कार करता है तो भी मिडिया उस को महत्त्व नथी देता। और कई बार तो उस को भी हेडिंग में बाबा कह के संबोधित करता है। अभी हाल ही में आशु बाबा नाम का व्यक्ति मूल नाम से आसिफ निकला। लेकिन टीवी न्यूझ चेनल पर चर्चा में और स्क्रीन पर जो टेक्स्ट आता था उस में बाबा ही चल रहा था। साधु या शैतान एसा हेडिंग ही चल रहा था। अभी हाल में केरल में एक नन पर बलात्कार में जो जलंधर का बिशप पकडा गया उसे जब तक बिशप के पद से रोम के चर्चने हटाया नहीं तब तक पुलीस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया। ये सुविधा क्यों, भाई? ताकि रेकोर्ड पर वो बिशप है वो न आ सकें। और इस बिशप (और अन्य कई एसे केस, जिस में मधर टेरेसा के मिशन ऑफ चेरिटिझ की नन बच्चों  का व्यापार करते पकडी गई) जैसे केस को मिडिया में कितना वेइटेज मिला, उन पर कितनी डिबेट हुुई? आसाराम, निर्मल बाबा, बाबा राम रहीम के मुकाबले नहींवत्! हिन्दू बाबाओं पर अनेक सप्ताह और कई बार तो अनेक महिने तक डिबेट चली। लेकिन बिशप और नन पर क्यों नहींवत् डिबेट? मौलवीओ पर क्यों कोई डिबेट नहीं करता?



हाल ही में 'काला' फिल्म देखी। रजनीकांत की क्वचित पहली फिल्म होगी जो पसंद नहीं आयी। मुझे तो आश्चर्य होता है कि मोदी सरकार में यह फिल्म सेन्सर बॉर्ड से पास क्यों हो गई। स्पष्ट रूप से कल्चरल मार्क्सवाद के एजन्डे से यह फिल्म बनाई गई। दलित विरुद्ध सवर्ण को दिखाया गया। रजनीकांत दलित है। काले रंग का है। काले कपडें पहनता है। विलन नाना पाटेकर सफेद कपडें पहनता है। और उस के ध्वज भगवा रंग के है। बेनर पर मनुवाद लिखा है। नाना पाटेकर ब्राह्मण भी है। उन की पार्टी का नाम नवभारत नेशनलिस्ट पार्टी है। मतलब नेशनलिस्ट होना यानि अत्याचारी होना। दलित विरोधी होना। और आजकल तो राष्ट्रवाद का ठेका भारतीय जनता पक्षने ले रखा है। तो स्पष्ट रूप से संकेत है कि भाजप एन्टी दलित है। अत्याचारी है। और भाजप यानि भगवा, केसरिया यह भी मान्यता दृढ हो गई है। (हालांकि भाजप के ध्वज में हरा रंग भी है।) यह वर्ग संघर्ष को भडकाने का स्पष्ट प्रयास था। या तो यह फिल्म एक और हिन्दूवादी पक्ष शिव सेना के विरुद्ध थी क्योंकि नाना पाटेकर  'जय महाराष्ट्र' का सूत्र बोलते है। आश्चर्य है कि शिव सेना ने भी इस फिल्म का विरोध नहीं किया। रजनीकांत की प्रेमिका मुस्लिम है। यानि दलित-मुस्लिम भाई भाई का जो एजन्डा वामपंथी चला रहे है इस का यह स्पष्ट द्योतक है। रजनीकांत के पुत्र का नाम लेनिन है जो रशिया के साम्यवादी नेता का नाम था।  एक दृश्य में नाना पाटेकर की पोती उन को पूछती है कि क्या श्री राम ने सचमूच रावण को मारा था? नाना कहते है, "वाल्मीकि ने एसा लिखा है तो मारा ही होगा।" यानि एक तरह से राम दवारा रावण को मारे जाने पर संदेह उत्पन्न करने का प्रयास। नाना को कहना चाहिए था, कि हां मारा ही था। रामसेतु है और जगह जगह पर राम ने अयोध्या से जो रामेश्वरम् तक प्रवास किया उस के प्रमाण भी। इस  में एसा गोलमटोल उत्तर देना यानि संदेह उत्पन्न करना। एक दृश्य में जब रजनीकांत की धारावी झोंपडपट्टी में जब दलितों को मारा जा रहा होता है तब नाना पाटेकर रामायण का पाठ सून रहे होते है। ये भी रामायण को अत्याचार से जोडने का प्रयास है। एक दृश्य में रजनीकांत एनपीपी के नेता को कहते है कि "भगवान (कृष्ण) के आदेश पर अर्जुन ने लोगों की हत्याएें की। भगवान भी गलत है।" यहां पर भगवान कृष्ण को भी गलत ठहराने का प्रयास हुआ। पांडवो पर जो अत्याचार बाल्यावस्था से हुए यह दिखाए बिना अर्जुन ने लोगों को मारा, यह कहना अर्जुन और श्री कृष्ण को अत्याचारी साबित कर देता है। यहां लोगों शब्द पर भी ध्यान देना होगा। कौरवो या अत्याचारीओ को मारा एसा शब्द का प्रयोग नहीं हुआ।

एक रूप से अच्छा ही हुआ क्योंकि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लोप हो गई। लेकिन टीवी पर धडल्ले से दिखाई जाती है। और टीवी पर निःशुल्क देखनेवालों के मन में कल्चरल मार्क्सवाद का यह वर्ग संघर्ष पेदा करनेवाला एजन्डा घर करता ही होगा। 



रिलायन्स के मालिकी वाले चेनल कलर्स पर बिग बोस में एक तरफ तो सन्नी लियोन, राखी सावंत जैसी अभद्र कही जानेवाली महिलाओ को लाते है। घर में केवल झघडा, चूगली, निंदा आदि ही होती है। दूसरी तरफ, कहां से किसी नकली स्वामी ओम को लाते है।  इस बार अनुप जलोटा को लाया गया जिस की गर्लफ्रेन्ड की बात को हाइप दिया गया। यानि जो हिन्दू भजन गाता है उस की छबी छिछोरे और ठरकी की बनाई गई। अगर अनुप एसे है ही तो क्यों केवल हिन्दूओ मेें से एसे लोगों को चून चून के लाये जाते है? 

तो कहने का अर्थ यह है कि आजकल आस्थावान हिन्दूओ को स्पष्ट रूप से यह लगने लगा है कि हिन्दू कोई स्वामी के बिना की जमीन है जिस पर कोई भी कबजा कर लेता है। और संघ आदि हिन्दू संगठन चूपचाप ये सब देख रहे हैं।