Monday, October 21, 2019

भारत-पाकिस्तान युद्ध या पाकिस्तान में विद्रोह अनिवार्य!


या तो जल्द से जल्द भारत पाकिस्तान युद्ध अनिवार्य या पाकिस्तान में बेकाबू विद्रोह आवश्यक

आज चुनाव चर्चा में राष्ट्रवाद का मुद्दा, पाकिस्तान के आतंकी अड्डे पर एक ओर हमला यह मुद्दे छाये रहे। अभी हमें ओर राष्ट्रवाद के इसी तरह के मुद्दे के लिए तैयार रहना चाहिए। कारण यह है कि चीन इस्ट इन्डिया कंपनी के रस्ते चल कर साम्राज्यवाद तेजी से फैला रहा है। ताजा समाचार यह है कि उसने एक गुप्त सौदे में सोलोमन द्वीपसमूह का एक द्वीप तुलगी ७५ वर्ष तक लीझ पर लिया है। (https://www.express.co.uk/news/world/1192304/South-China-Sea-news-latest-World-War-3-solomon-islands-beijing-us-washington) जिस कंपनी ने लीझ पर लिया है उसका नाम चीन साम है। उसकी वेबसाइट पर लिखा है कि वह हंमेशां चीनी वाम पंथी दल के नेतृत्व की आज्ञा पालन करेगी।

इस घटनाक्रम से अमेरिका भी चौंक गया है क्योंकि यह प्रशांत महासागर में उसके प्रभुत्व को चुनौती देने जैसा है। चलिए, अभी हमारी इतनी भी औकात नहीं बढी कि हम इस बात से चिंतित हो, लेकिन हमारी चिंता यह होनी चाहिए कि बलोचिस्तान, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में अड्डे बनाने के बाद अब चीन ने गुजरात की हरामी नालेवाली सरहद पास ५५ वर्ग किमी जगह लीझ पर ली है। (https://www.newsnation.in/india/news/pakistan-gives-55-sq-km-land-to-chinese-firm-near-harami-nala-along-gujarat-border-report-241184.html)

वैसे तो बलोचिस्तान में अड्डा बनाया तब ही हमें सचेत होकर कुछ करना चाहिए था लेकिन तब कॉग्रेस नीत युपीए सरकार थी जो इस बारे में नीति बनाने की जगह घोटाले और हिन्दू आतंकवाद की झूठी थियरी को सच बनाने के प्रयास में लगी पडी थी।

लेकिन अभी नहीं तो कभी नहीं जैसी स्थिति है क्योंकि जैसी स्थिति पाकिस्तान की है, हो सकता है कि आगे चलकर राजस्थान और पंजाब सरहद पर भी पाकिस्तान में चीन कंपनी के नाम पर जमीन ले ले। फिर हमारी परेशानी दोनो ओर से बढ जायेगी।

यहां देखनेवाली बात यह भी है कि ब्रिटन इस्ट इन्डिया कंपनी द्वारा बढा या चीन अपनी अलग अलग कंपनियों द्वारा शनैः-शनैः आगे बढ रहा है वैसे क्या भारत सोच सकता है? क्या भारत में एसी राष्ट्रनिष्ठ कंपनियां है? भारत की ज्यादातर कंपनियां मुनाफे से आगे कुछ नहीं देखती। वैश्विक सुस्ती आयी तो मंदी का और कर्मचारियों को निकाल बहार करने का शोर मचाकर कॉर्पोरेट टेक्स घटवा लिया।



तो हल क्या है? हल है या तो भारत - पाकिस्‍तान युद्ध हो (इसके लिए आज जो वातावरण है उसमें हाफीझ सईद, मसूद अजहर और दाउद इब्राहिम जैसे निमित्त है ही) जिस से चीन की कंपनियों को भी भागना पडे या पाकिस्तान का आंतरिक विद्रोह इतना बेकाबू हो कि वह भारत में संमिलित होने की मांग करे। याद रहे कि चार टुकडे कर के बांग्लादेश की तरह ओर चार दूश्मन को जन्म देना मूर्खता ही होगी। वैसे शैख हसीना और मोदी के नेतृत्व में अभी तक बांग्लादेश भारत का दोस्त या प्यादा बना हुआ था लेकिन एनआरसी को क्रियान्वित करने के बाद या सोनिया-प्रियंका से शैख हसीना की मुलाकात के बाद बिना कोई कारण बांग्लादेश के बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) ने सीमा सुरक्षा बल के एक जवान की हत्या की। (मोदी सत्ता में आने के बाद विदेशी प्रमुख विपक्ष के नेता से मिले यह परंपरा बंध सी ही थी क्योंकि मोदी विरोधी दल के नेता को दिल्ली बहार ही बुलाने लगे हैं।)

तो इस स्थिति में दो ही उपाय है - पाकिस्‍तान से युद्ध या पाकिस्तान में विद्रोह।

युद्ध से किसी का भला नहीं होता, दोनों तरफ जानहानि होगी, पाकिस्तान के पास परमाणु शस्त्र है, चीन चूप नहीं बैठेगा आदि निर्माल्य दलील है क्योंकि यदि चीन युद्ध में कूदेगा तो अमरिका, जापान क्या चूप बैठेंगे?

(सभी तस्वीरें : इन्टरनेट) 

Tuesday, October 15, 2019

केवल नया कानून नहीं, वह चाहता है नया समाज




वो चाहता तो पहले के प्रधानमंत्रियों की तरह दिल्ली में अपने घर पर विदेशी प्रमुखों को मिल सकता था। वो चाहता तो पूर्व प्रधानमंत्रियों की तरह वह भी किसी नेता, उद्योगपति, मीडिया को दुश्मन बनाये बिना पांच-दस वर्ष राज्य कर के रिटायर हो सकता था। उसे भी पूर्व प्रधानमंत्री को मिलनेवाला बंगला दिल्ली में मिल जाता। उसको भी एसपीजी सुरक्षा मिल जाती। लेकिन अब वह जानता है कि चूं कि उसने मनमोहन की सुरक्षा अल्प कर दी तो विरोधी दल की सरकार रही तो ओर उस को भी अल्प सुरक्षा मिलेगी या सुरक्षा ही न मिले।

वह पूर्व सांसदो के बंगले खाली करवा रहा है। शेल कंपनीयो के विरुद्ध कार्रवाई कर रहा है। ओलमॉस्ट सारा मीडिया उसका दुश्मन है। और जो आज साथ दिखाई दे रहे है वह कल दूसरे दल की सरकार आते ही पलट सकते है।

फिर भी वह कोशिश कर रहा है, भारत बदलने की। वह चाहता है, भारत प्रमाणिक लोगों का देश हो, वह चाहता हो, कर्मचारी समय पर आये। परोपदेशे पांडित्यम् नहीं, वह अपने उदाहरण से बताता है कि देश के लिए १८ घंटे बिना थके काम किया जा सकता है। वह चाहता है कि देश स्वच्छ हो। देश की हवा शुद्ध हो। समुद्र किनारा शुद्ध हो। वह चाहता है कि देश की भाषाओं का महत्त्व बढें। वह विदेशी प्रमुखो के आगमन या उनसे मुलाकात के समय उनकी हिब्रू, फ्रेन्च में ट्वीट कर के विदेशी भाषाओं का भी गौरव गान कता है। वह प्रति प्रात: हमारे एसे महानुभाव विश्वेश्वरैया, वीर सावरकर, सुभाषचंद्र बोज आदि को याद करके ट्वीट करता है जिनके अमूल्य प्रदान को भूला दीया गया है।


वह वीर सावरकर की काल कोठरी की मुलाकात लेता है। वहां ध्यान करता है। वह आंदामान निकोबार द्वीपों का नाम सुभाषबाबु की याद में बदलता है। वह सुभाषबाबु द्वारा २१ अक्तूबर को स्वतंत्र भारत की प्रथम सरकार रचने की याद में लाल किल्ले पर ध्वजवंदन कर के नयी परंपरा स्थापित करता है। वहां सुभाषबाबु म्युजियम बनवाता है। भारत के लोग तो पंडित श्यामजी कृष्ण वर्मा को भूल गये थे। उनके दल के गुजरात के नेता भी इस वर्ष भूल गये थे। लेकिन गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में वह उनके अस्थि जीनेवा से ले आया। उसकी यात्रा निकाली ताकि सामान्य मानवी को क्रांतिकारी पंडितजी के बारे में पता चले। (वर्ना भारत में तो एक ही पंडित हुए थे - नहेरु) मुख्यमंत्री रहते उसने संविधान यात्रा निकलवाई। वह चाहता तो सचीन तेंडुलकर की तरह फरारी पर कर बाद करवा सकता था। किसी को पता भी न चलता। (उत्तर प्रदेश में आज तक मुख्यमंत्री और मंत्रियों का निजी कर सरकारी तिजोरी से भरा जाता था, किसीको पता था?) लेकिन उसने पत्र लिख कर कर कटवाया जिससे उदाहरण स्थापित हो।

उसने पुलीस मेमोरियल की अनेक वर्षो के रुके काम को पूरा करवा के शहीदों को श्रद्धांजलि दी।

एसे तो अनगिनत काम है। लेकिन उसकी बात नहीं है। वह केवल प्रशासनिक बदलाव नहीं चाहता। वह केवल नये कायदे कानून नहीं चाहता। वह चाहता है भारत का समाज अपनी आदतों को सुधारें। इस लिए वह अपना उदाहरण स्थापित करता है। राम लीला पर वह टिश्यू को फेंकने या सहायक को देने के स्थान पर अपनी जेब में डालता है। वह अमरिका में स्वागत बुके से गिर गये पुष्प को स्वयं उठाता है।

इस लिए वह चाहता तो जिनपिंग शिखर परिषद के समय प्रात: होटल में आराम या अपनी योग आदि दिनचर्या कर सकता था लेकिन वह समुद्र तट पर टहलने निकल पडता है। वहां छोड दिया हुआ प्लास्टिक का कचरा उठाता है। जिससे उसका काला टीशर्ट पसीने से भर जाता है। (अब तक तो समज गये ही होंगे कि बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की है।)

और आपने क्या किया? आपने सॉशियल मीडिया पे फॉरवर्डेड पॉस्ट फॉरवर्ड की। आप एसी पॉस्ट आते ही उसके अभी तक के पूरे जीवन को भूल जाते हो। उसके द्वारा किये गये चुनौतीपूर्ण कार्यो जैसे धारा ३७० समाप्त करना, तीन तलाक समाप्त करना, अंग्रेजो के समय के व्यर्थ कानूनो को रद्द करना, विदेश की धरती पर वहां के शक्तिशाली प्रमुखो की उपस्थिति में भारत के गुण गाना भूल जाते हो।

और वह पॉस्ट भी किसकी थी? कार्ति चिदम्बरम् की। जो एॅयरसेल-मेक्सिस में अभियुक्त है। जिसके पिता पी. चिदम्बरम स्वयं तिहाड जेल में आर्थिक अपराध के कारण बंध है। और कार्ति ने टॅ स्क्रीन (Tayscreen) नामक वेबसाइट से शूटिंग क्रू की तसवीर ली या उनकी टीमने या जहां से भी उनको मिली हो, ट्विटर पर डाली, यह दिखाने के लिए कि मोदी द्वारा प्लास्टिक का कचरा उठाना यह एक एड फिल्म जैसा शूटिंग था। अब यह तो आज का बच्चा भी जानता है कि विडियो बना है तो शूट भी हुआ ही होगा। मोदी विरोधीओ ने दूसरी तसवीर जो डाली उस में एक टीम को समुद्र तट साफ करते दिखाया गया। वह तसवीर गूगल रिवर्स इमेज सर्च करने पर 'हिन्दू' वृत्त पत्र की दिखती है जो आज से छ महिने पुरानी अर्थात् अप्रैल २०१९ की है। 'हिन्दू' हो सकता है, भविष्य में वह लिंक हटा दे इस लिए लिंक के साथ स्क्रीनशॉट भी यहां दे रहा हूं।


तो एसे महान संदेश देनेवाले विडियो का विरोध इस तरह फेक पॉस्ट से फैला के विरोधीओ ने मोदी को अपने प्रशंसको दृष्टि में ओर महान किया है। आप ने उसकी प्लास्टिक का कचरेवाला थेला उठानेवाली तसवीर को एक कबाडीवाली बच्ची की तसवीर से जोडकर भले उसका उपहास का आनंद लिया हो, इससे गरीब वर्ग में तो उसकी लोकप्रियता ओर बढी ही है। एसा नहीं है कि उसकी हर नीति सही है या उसकी हर बात सही है। इस लिए आगे से विरोध करिएगा तो मुद्दो पर, तर्क से और पूरी सच्चाई से करिएगा। क्योंकि वह भी सकरात्मक आलोचना और आलोचको को पसंद करता ही है। 

Wednesday, October 9, 2019

फुटबोल स्टार पत्नियां के बीच कलह का कारण बना इन्स्टाग्राम


अब सॉशियल मिडिया शब्दयुद्ध लडने का मंच नहीं, किन्तु युद्ध का कारणरूप मंच बन गया है।

जी हाँ, आपने सही सूना।

यह सब ब्रिटन की दो मानुनीओ के बीच हो रहा है। यह मानुनी है ब्रिटन के दो फुटबॉल खिलाडियों की पत्नियां ! एक का नाम है कोलीन रूनी और दूसरी का नाम है रेबेका वार्डी। कोलीन रूनी फरियादी है और रेबेका वार्डी प्रति वादी।

हुआ यूं कि कोलीन रूनी को शक था कि वह जो अपने इन्स्टाग्राम पर कुछ दोस्तो के लिए ही जो चीजें रखती थी वो कोई लिक कर देता था। अब ये तो सब जानते है कि आजकाल बहोत सारी न्यूझ स्टॉरियो का स्रोत ट्विटर, फेसबुक, इन्स्टाग्राम और टिकटॉक बन गया है। अब कुछ लोग अपनी निजी बातें केवल अपने दोस्तों के साथ बांटना चाहते हैं। तो फेसबुक आदि सॉशियल मिडिया ने ये विकल्प दिया हुआ है कि किसी भी पॉस्ट के सेटिंग में जा के उस को पब्लिक, फ्रेन्ड्स या ऑन्ली मी कर सकते है। तो कोलीन रूनीने कुछ एसा ही किया था।

जब उस की पॉस्ट पब्लिक सेटिंगवाली नहीं थी तो स्पष्ट था कि हर कोई युझर उस को देख नहीं सकता । हर कोई में मिडिया भी आ जाता है। तो फिर कौन लिक करता था उस की स्टॉरियां? यह प्रश्न कोलीन रूनी को सताने लगा। उसने अपने फ्रेन्ड को हटाना शुरू किया।  वैसे उस को शक तो एक पर ही था, वो थी रेबेका वार्डी, फूटबॉल खिलाडी जेम्स वार्डी की पत्नी! तो हटाते हटाते एक ही फ्रेन्ड बची थी। रेबेका वार्डी।

अब कोलीन रूनीने अपने ही बारे में काल्पनिक (फेक) स्टॉरियां लिखनी शुरू की जैसे उस के निवास के बेझमेन्ट में पानी भर गया था, आदि आदि...और यह स्टोरियां भी लिक होने लगी। तो कोलीन रूनी का शक पक्का हो गया कि वो रेबेका वार्डी ही है, जो 'ध सन' नामक टेब्लॉइड को स्टॉरियां बेच रही है। लेकिन रेबेका वार्डी का कहना है कि उसे पैसों की कोई आवश्यकता नहीं है। यह किसी ओर का ही काम है।

देखिये आगे क्या होता है? लेकिन यह पक्का है कि सॉशियल मिडिया पर आप की कोई भी बात प्राइवेट नहीं रहती। आप जितना भी प्राइवेट रखना चाहो, वह फैल ही जाएगी।

Tuesday, October 8, 2019

बिग बॉस: कला संस्कृति में चीन से भारत सरकार प्रेरणा ले





भारत में विदेशी शॉ की भद्दी नकल 'बिग बॉस', वेब सीरीज 'सेक्रैड गेम्स', 'लीला' आदि का बहोत विरोध है। इस से पहले बीबीसी की दिल्ली की पेरा मेडिकल विद्यार्थिनी पर सामूहिक बलात्कार और हत्या पर दस्तावेजी फिल्म पर प्रतिबंध रखा गया।
भारत एक बजार है। कला संस्कृति, आईटी, क्रिकेट और स्पेस सायन्स में सुपर पावर बनने के काफी नजदीक है। लेकिन भारत और हिन्दू संस्कृति को खराब दर्शाना तथा टीवी पर वल्गारिटी की हद करना इस बाबत में भारत की सरकारें उदासीन ही रहती है। बिग बॉस में सन्नी लियोनी और पॉल डान्स आया, तब सब चूप रहें। वीणा मलिक जो आजकल भारत को भरभर के कोस रही है वो आई तब सब चूप रहे। राखी सावंत, पामेला एन्डरसन आई तब सब चूप रहे। ओर तो ओर शाहरूख, सलमान चपल के साथ मंदिर (वो सेट ही क्यों न हो) दिखे तो थोडा विरोध हुआ। २०१५ में तो हद हो गई जब किश्वर नामक प्रतियोगी को कुत्तिया बना के उसको थर्मोकोल की ही सही, हड्डी लाने का कार्य सोंपा गया और पैसे के लिए उसने एसा किया। हिन्दू संतो को खराब दिखाने के लिए तथकथित बाबा ओम को लाया गया। इससे पहले वामपंथी एनडीटीवा के चैनल इमेजिन पर राखी का स्वयंवर, राखी का इन्साफ जैसे शॉ आये। स्टार पर सच का सामना जिस में सेलिब्रिटी सच के नाम पर गंदकी बताते थे आया।
लेकिन भारतीय संस्कृति पर इतने हमले पर सरकारे चूप रही। फिल्म सेन्सर बॉर्ड अवश्य है लेकिन फिल्मों में भी पीके, मिशन मंगल, लुका छुपी जैसी फिल्में हिन्दूओ को खराब दिखाती रही। इस्लाम और इसाइयत का प्रचार करती रही। पहली अवधि में सेन्सरशिप को लेकर बहोत आलोचना झेल चूकी मोदी सरकार दूसरी अवधि में उदार है। जब वेबसीरिझ या इन्टरनेट कन्टेन्ट की बात आती है तो सरकारों के पास बहाना है कि वह हमारे नियंत्रण में नहीं।
अब चीन को लीजिए। चीन की सरकार का क्रोध झेलना न पडे इस लिए होलिवूड के फिल्मकार विशेष ध्यान रखते है। इस की आलोचना करता हुआ एक एपिसोड 'बेन्ड इन चाइना' एडल्ट एनिमेटेड धारावाहिक 'साउथ पार्क' में दिखाया गया। चीन ने अपने देश में सब स्ट्रिमिंग सर्विस, सॉशियल मीडिया, अरे फैन पेजीस पर से भी हटा दिये। 'साउथ पार्क' के निर्माता ने व्यंग्य करते हूए क्षमा मागी कि हमें भी स्वतंत्रता और लोकतंत्र से ज्यादा धन पसंद है।

तो बात यह है। आप के देश में केवल सरकार चला के अपनी मनमानी करना यह आपका उद्देश्य बिलकुल नहीं हो सकता। यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहते है लेकिन जहां तक कला संस्कृति की बात आती है उनकी सरकार उदासीन ही दिखती है। केवल पाकिस्तान को झुकाना ही राष्ट्रवाद नहीं, नई पीढी की चिंता कर के कला संस्कृति में विकृति पर लगाम भी देशहित का ही काम है।
(तस्वीरें : इन्टरनेट)