Showing posts with label sc. Show all posts
Showing posts with label sc. Show all posts

Thursday, August 9, 2018

एससी-एसटी कानून: नरेन्द्र मोदी का राजीव गांधी मॉमेन्ट?

सौजन्य: indiatvnews.com

क्या एससी एसटी संशोधन विधेयक पारित करवाना नरेंद्र मोदी का राजीव गांधी मॉमेन्ट है? यह प्रश्न बिल्कुल समयोचित है क्योंकि एससी-एसटी संशोधन विधेयक सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त करने के लिए मोदी सरकार द्वारा पारित किया गया है।

यह मोदी सरकार द्वारा दलित संगठनों द्वारा हो रहे आंदोलन के दबाव के कारण और आने वाले २०१९ के लोकसभा चुनाव में दलित मत को प्राप्त करने हेतु उठाया गया कदम है। हालांकि कॉंग्रेस और वामपंथी फिर भी इस कदम की आलोचना कर मोदी सरकार को दलित विरोधी प्रस्तुत कर रहे हैं। उनका कहना है कि भाजप द्वारा शासित राज्यों में दलित विरोधी अत्याचार बढ़े हैं।

हालाकि यह छवि इसलिए बन गई है क्योंकि भाजप द्वारा शासित राज्यों की संख्या बड़ी है। और मीडिया का फोकस भी भाजप शासित राज्य ज्यादा रहते हैं और कॉंग्रेस जिसका अभी एक ही राज्य पंजाब में शासन मुख्य रूप से बचा है वहां और वामपंथी द्वारा शासित केरल में हो रहे दलित पर अत्याचार मीडिया में जोरशोर से नहीं दिखाए जाते। इसी तरह से पश्चिम बंगाल में भी ममता बनर्जी के शासन में दलितों पर हो रहे अत्याचार दिखाई नहीं पड़ते। इसी कारण दलित संगठन तथा विपक्ष मोदी सरकार को दलित विरोधी पेश करने में सफल रहे हैं और इसी दबाव में मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को निरस्त करने हेतु एससी एसटी संशोधन विधेयक पारित करवाया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश क्यों दिया था? सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में गत २० मार्च को कहा था कि एससी एसटी कानून का राजकीय या व्यक्तिगत रूप से स्थापित हितों द्वारा दुरुपयोग हो रहा है ऐसी शिकायतें बढ़ गई है। यह पहली बार नहीं था कि किसी न्यायालय द्वारा ऐसा आदेश दिया गया था। इससे ५ वर्ष पूर्व १२ मार्च २०१३ को केरल उच्च न्यायालय द्वारा ऐसा आदेश दिया गया था कि किसी भी व्यक्ति को दलित या आदिवासी पर अत्याचार के लिए तब तक दोषित नहीं ठहराया जा सकता जब तक ऐसा साबित ना हो कि ऐसा वंशीय पूर्वाग्रह से किया गया था।

तमिलनाडु में पीएमके नाम का पक्ष दलित तरफी है और तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने इसके नेता रामदोस पर आरोप लगाया था कि दलितों को उकसाकर पीएमके के कार्यकरो ने गरीबों के झोपड़े जलाये थे। दलित तरफी कहे जाने वाले इसी रामदोस ने कहा था कि एट्रोसिटी कानून का काफी दुरुपयोग हो रहा है। अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी को खामोश करने के लिए इस कानून का सहारा गलत तरीके से लिया जा रहा है।

'Why I am not Hindu' नाम की किताब लिखने वाले दलित बुद्धिजीवी कांचा इलैया ने भी आरोप लगाया था कि भाजप ने अपने एक दलित सांसद के द्वारा उनके विरुद्ध एट्रोसिटी कानून के तहत झूठा केस करवाया था।

पिछले दिनों संसद में प्रस्तुत किए गए अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा के दरमियान रामविलास पासवान जो कि एक दलित नेता है और एनडीए में शामिल है उन्होंने कहा था कि मायावती जब उत्तर प्रदेश में शासन में थी तब उन्होंने आदेश दिया था कि एट्रोसिटी कानून के अंतर्गत हुई शिकायत पर जल्दी से कार्यवाही ना की जाए क्योंकि वह झूठी शिकायत हो सकती है। कोई ताकतवर व्यक्ति द्वारा दलित को उकसाकर ऐसी शिकायत करवाई जा सकती है। उन्होंने ऐसा आदेश भी दिया था कि बलात्कार की रिपोर्ट द्वारा पुष्टि होने पर ही एससी एसटी कानून तहत कार्यवाही हो।

अब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पिछले मार्च में दिए गए आदेश पर वापस चलते हैं। क्या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया आदेश अपनी मन मर्जी के मुताबिक था? नहीं। सर्वोच्च का आदेश एक संसदीय समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर था और इस समिति में भाजपा के १३ दलित और आदिवासी सांसद थे। इसमें कांग्रेस के भी पांच सांसद सदस्य थे। और तो और सीपीएम, असऊद्दीन ओवैसी तृणमूल कांग्रेस, बीएसपी, एनसीपी, शिवसेना आम आदमी पार्टी आदि सभी विपक्षी दल के भी सांसद उसमें थे। कुल ३० सदस्यों की इस समिति में १७ सांसद विपक्ष के थे यानी कि विपक्ष का बहुमत था!

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि समिति की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद २१ के तहत संवैधानिक गैरंटी के अमल के लिए सुरक्षात्मक उपाय जरूरी है जिससे आपखुद गिरफ्तारी या ग़लत involvement के सामने लोगों की सुरक्षा की जा सके।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के संबंध में विचार करने पर ज्ञात होता है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम में दर्ज ज़्यादातर मामले झूठे पाए गए।

न्यायालय द्वारा अपने फैसले में ऐसे कुछ मामलों को शामिल किया गया है जिसके अनुसार २०१६ की पुलिस जाँच में अनुसूचित जाति को प्रताड़ित किये जाने के ५३४७ झूठे मामले सामने आए, जबकि अनुसूचित जनजाति के कुल ९१२ मामले झूठे पाए गए।

लेकिन सभी पक्षों के सांसद जिसमें सदस्य थे ऐसी संसदीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय का जैसे ही आदेश आया कि कांग्रेस समेत विपक्षी दल ने इसे मुद्दा बना दिया और ऐसी हवा बना दी कि मोदी सरकार  सर्वोच्च के जरिए इस कानून को खत्म करना चाहती है। मोदी सरकार भी चुनाव को देखते हुए पीछे हट गई और संसद में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को पलटने के लिए संशोधन विधेयक पारित करवा दिया। यह ऐसी ही बात है जैसे राजीव गांधी सरकार ने कट्टरपंथी मुस्लिमों को खुश करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ६२ वर्षीय  मुस्लिम वृद्धा शाहबानो को उसके पूर्व पति द्वारा निर्वाह-व्यय के समान जीविका देने के आदेश को निरस्त करने के लिए संसद में संशोधन विधेयक पारित करवाया था। उस समय से लेकर आज तक भाजप इसे कांग्रेस द्वारा खेला गया वॉट बैंक पॉलिटिक्स बताती है। लेकिन प्रश्न तो अब भाजप के सामने भी उठेगा कि अभी जो उसने संशोधन विधेयक पारित करवाया उसे क्या वॉट बैंक पॉलिटिक्स नहीं कहा जाएगा?