Friday, December 14, 2018

क्या राहुल गांधी सुपर कोन्स्टिट्यूशनल ओथोरिटी है?


न खाता न वही, सीताराम केसरी कहे वो ही सही
कोंग्रेस के कोषाध्यक्ष जब सीताराम केसरी थे तब एसा कहा जाता था लेकिन जिस तरह और जिस लहजे में राहुल गांधी ने राफेल पर सर्वोच्च न्यायालय का आदेश मानने से नकारा है इस से लगता है कि न फ्रान्स के प्रमुख सही न सर्वोच्च न्यायालय सही, राहुल कहे वो ही सही।

सीजेआई दीपक मिश्र के विरुद्ध जस्टिस लोया को लेकर चार जस्टिस ने सरेआम विद्रोह किया और कोंग्रेस उनके विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव लाने की धमकी देकर  मिश्र पर दबाव लाये। रंजन गोगोई जो कि उन चार विद्रोही जस्टिस में से थे, वे सीजेआई बने। लेकिन उनके द्वारा दिया गया जजमेंट राहुल को मंजूर नहीं । सोचो, मिश्र ने आदेश दिया होता तो तो राहुल कतई नहीं मानते।

कोंग्रेस द्वारा न्यायपालिका पर दबाव व उसके जजमेंट का अनादर नयी बात नहीं। 1973 में तीन वरिष्ठ जस्टिसो को ओवरटेक कर के इन्दिरा ने जस्टिस ए एन राय को सीजेआई बनाया था। इन तीन जस्टिस का कसूर ये था कि संविधान के मूलभूत ढांचे को बदल देनेवाले अमेंडमेन्ट को उन्होने नकार दिया था। लेकिन ए एन राय ने इस आदेश के विरुद्ध  अपना मत दिया था । इस का उन को इनाम मिला था।

इस के बाद आपातकाल दौरान जिस 18 जज ने 'मिसा' जैसे अत्याचारी कानून के अंतर्गत गिरफ्तारी का विरोध किया वे जजों का तबादला कर दिया गया। इस में से एक थे जस्टिस अगरवाल। उनको थोडे ही समय में परमेनन्ट बनाना था लेकिन उसको सजा के रूप में सेशन्स कोर्ट भेज दिया । कोंग्रेस ने बहाना दिया कि जस्टिस  अगरवाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक है। दूसरे जज का दिल्ली से असम तबादला कर दिया गया।

जस्टिस एच आर खन्ना ने हेबियस कोर्पस में इन्दिरा का कहा न माना। इस लिए उन को इन्दिरा ने मुख्य न्यायमूर्ति न बनाया।

शाहबानो केस का सर्वोच्च का आदेश राजीव गांधी सरकार ने कानून से पलट दिया। अपराधी सांसदो को चुनाव लडने से मना करनेवाले सर्वोच्च के आदेश को मनमोहन ने पलट दिया। चूं कि जन आक्रोश बढा और लोक सभा चुनाव नजदिक आ रहे थे, इस लिए राहुल गांधी ने सरेआम बिल फाड दिया जब प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह विदेश में थे। इस तरह राहुल सुपर कोन्स्टिट्यूशनल ओथोरिटी यानि संविधान से भी उपरी सत्ता की तरह बर्ते क्योंकि राहुल उस समय कोई संवैधानिक पद पर नहीं थे।

Thursday, October 25, 2018

गुजरात में बाहरी श्रमिको विरुद्ध हिंसा के पीछे किस का ‘हाथ’?



(पांचजन्य, २८ अक्तूबर, २०१८ दिनांक के अंक में प्रसिद्ध आलेख)

गुजरात के साबरकांठा जिल्ले में हिंमतनगर के पास ढुंढर गाँव में पीछली 28 सितम्बर को केवल 14 वर्ष की बच्ची पर बलात्कार हुआ। बलात्कारी बिहार से आया हुआ श्रमिक था जो सिरामिक फॅक्टरी में काम करता था। इस अपराधी को पकड लिया गया और फास्ट ट्रॅक कॉर्ट द्वारा जल्द न्याय होने के लिए भी मुख्यमंत्री विजय रूपाणीने आश्वासन दिया है। लेकिन इस के बाद भी गुजरात में बहार से आये श्रमिको के उपर गुस्सा फूट नीकला। कहीं पर घर में घूस के तोडफोड की गई। तो कहीं पर मारमार के लूट लिया गया। तो कुछ जगह पर तो लडकियों को रोक के धमकी दी गई। कहीं पर महिलाओं की छेडखानी की गई।

गुजरात तो हंमेशां से बहार के लोगों का स्वागत कर के अपने में घूलमिला देनेवाला राज्य रहा है। पूरा विश्व जानता है कि इस्लामी आक्रांताओ से पीडित पारसी ईरान से सब से पहेले गुजरात के संजाण बंदर पर आए थे। और उन को यहां बसने की अनुमति मिली थी। पारसी भी दूध में सक्कर की तरह घूल मिल गये। तो गुजरात में भारत के अन्य राज्यो से आये हुए लोगों के प्रति झहर का तो प्रश्न ही नहीं उपस्थित होता। गुजरात में कई लोग है जो बहार से आये और गुजरात में जिस को सवाया गुजराती (गुजराती से बढ के गुजराती) बोला जाता है एसे बन गयें। जैसे कि काकासाहेब कालेलकर (गांधीजी के अनुयायी, साहित्यकार, मूलतः महाराष्ट्री), रूबिन डेविड (मूलतः यहूदी, अमदावाद के कांकरिया झू के स्थापक), एस्थर डेविड (मूलतः यहूदी, शिल्पकार, साहित्यकार), फाधर वालेस (मूलतः स्पैन, गणितज्ञ), गुलझारीलाल नंदा (दो बार अस्थायी प्रधानमंत्री बने), डॉ. वर्गीस कुरियन (श्वेत क्रांति के जनक) आदि। गुजरात में बहार से जो आता है वो यहीं रचबस जाता है। उस को यहां की शांति, समृद्धि, पारस्परिक सहयोग से विकास करना, भाईचारा रखना ये बातें इतनी भा जाती है कि वह फिर अपनी मातृभूमि वापिस जाने का कम ही सोचेगा।

तो फिर ये क्यों हुआ? किस के कारण हुआ?

दो कारण हैं। एक उत्तर गुजरात के ठाकोर समुदाय में (जो कि मत की दृष्टि से प्रभावी है) बहार से आये हुए श्रमिको के प्रति असंतोष थोडा बहोत था। क्योंकि ठाकोरों को लग रहा था कि उनकी जगह बाहरी श्रमिको को रोजगार मिल रहा है। ठाकोर समुदाय से निकले अल्पेश ठाकोर ने ये जान के इस को हवा देना शुरू किया। उन के टीवी चैनल पर दिये इन्टरव्यू या डिबेट में ये बातें स्पष्ट देखने को मिलती है। लेकिन 29 सितम्बर को अपने फेसबुक लाइव में उपर उल्लेखित बलात्कार कांड के बारे में बोलते हुए उन्होंने ठाकोरों को भडकाने की भरसक कोशिश की।

उन्होंने कहा, कब तक एसे लोगों को हम सह लेंगे? एसा बनाव गुजरात में कहीं पर भी बनता है तो एसे लोगों को मत छोडो। वह परप्रांतीय (बाहरी) युवान कोई भी हो, वह छूटनेवाला नहीं। वह नराधम यदि ठाकोर सेना के हाथों में सोंप दीया होता तो उस का हिसाब हो गया होता। इसी सेशन में वह उसका विरोध करनेवाले मनोज बारोट नाम के युवान को धमकी देते हैं कि मैं सिंहों की सेना का केप्टन हूं। वह अपनी ठाकोर सेना के लोगों को इस युवान को ढूंढने के लिए आदेश भी देतें हैं। (इस की लिंक ये रही : https://www.facebook.com/alpeshthakorektamanch/videos/320171978787448/?__xts__[0]=68.ARALUyDSrK5KNuVpykzQFqHkapsCHPDbWsBoSOw_48OTg3Cn-ahnJSphKwdVwwMgsQRJokNX6mOpVvorgDDmeC_gzFpgAJmBRdGtMeA7Pywqy-W5cANhIx2dTUFRFyW-KHYacfI6nWLj17kbZl3Kg7x4hxu935nqgj0Q_RB1HWW3g8l7WD3U&__tn__=-R)

अल्पेश ठाकोर के इस फेसबुक लाइव भाषण के बाद बाहरी लोगों के विरुद्ध हिंसा शुरू हो गई। पुलीस ने सख्ती से काम लिया। अब तक 533 लोगों की गिरफ्तारी हो चूकी है जिस में से 20 लोग कॉंग्रेस के नेता है। ठाकोर सेना के भी बहोत सारे लोग है। पुलीस ने कथित बाहरी श्रमिको में सुरक्षा की भावना के लिए उनसे बात की। जैसे ही कॉल आता, पुलीस तुरंत पहुंच जाती एसा गुजरात के बाहरी लोगों का कहना भी है। लेकिन डर का वातावरण बना दिया गया था। पुलीस की सख्त कार्यवाही के बाद अब वातावरण शांत हो गया है। फॅक्टरीयां भी फिर से चालु हो गई है। कुछ लोग फिर भी अपनी मातृभूमि वापिस गये। पुलीस का यह कहना है कि वे दिवाली और छठ्ठ के त्योहारो के बाद वापिस आयेंगे।

मुख्यमंत्री विजय रूपाणीने बाहरी लोगों को गुजरात वापिस आने की अपील की। वे लगातार इस मामले को लेकर चिंतित दिखें। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीशकुमारने रूपाणी से बात करने के बाद भरोसा जताया कि गुजरात में सरकार पूरी तरह से सक्रिय है।

लेकिन इस हिंसा के पीछे कॉंग्रेस का हाथ स्पष्ट रूप से दिख रहा है। राजनीति के विशेषज्ञ मानते है कि गुजरात में बहार से आये श्रमिको और अन्य वर्ग का मत भाजप को जाता था। इतना हीं नहीं, 2012 के धारासभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव में ये वर्ग ने अपनी मातृभूमि में जा के नरेन्द्र मोदी के पक्ष में प्रचार भी किया था। तो ये मत काटने के लिए और उत्तर प्रदेश, बिहार तथा मध्यप्रदेश-राजस्थान जैसे राज्य जहां धारासभा चुनाव भी होने है, वहां भी भाजप के मत काटे जाये इस लिए यह षडयंत्र रचा गया। 2015 से हार्दिक पटेल के रूप में पाटीदार आरक्षण आंदोलन, जिज्ञेश मेवाणी का दलित आंदोलन और अल्पेश ठाकोर का पाटीदार आंदोलन के विरुद्ध ओबीसी आंदोलन- ये तीनो आंदोलन के पीछे कॉंग्रेस का समर्थन था। अल्पेश को कॉंग्रेस ने राधनपुर से लडवाया। जिज्ञेश मेवाणी को वडगाम में समर्थन देकर विधायक बनावाया। हार्दिक पटेल की राहुल गांधी से अमदावाद के हॉटल में गुप्त मुलाकात का रहस्य भी किसी से छूपा नहीं है। लेकिन ये तीनो आंदोलन का 2017 के गुजरात धारासभा चुनाव में मतों में परिवर्तन नहीं हुआ। इसी लिए अब गुजरात में मूल गुजराती विरुद्ध बाहरी एसा प्रांतवाद का मुद्दा खडा करने का प्रयास हो रहा है।

अल्पेश ठाकोर को कुछ महिने पहेले ही बिहार कॉंग्रेस का सहप्रभारी बनाया गया है। बिहार कॉंग्रेस के प्रभारी शक्तिसिंह गोहिल भी गुजरात से ही है।

कॉंग्रेस की एक नेता गेनीबहेन ठाकोर, जिस को कॉंग्रेस का हाइ कमान्ड टिकट दे इससे पहले अल्पेश ने वाव से प्रत्याशी घोषित कर दिया था, उन्हों ने तो अल्पेश से भी ज्यादा भडकानेवाला बयान दिया। उनको मिलने आई कुछ महिलाओं को उन्होंने हंसते हंसते कहा, एसे अपराधी को 50-100 का ग्रूप बना के पेट्रोल डाल के जिंदा जला देना चाहिए, तो पुलीस को सोंपने का प्रश्न ही नहीं आता।

गेनीबहेन इससे पहेले भी हिंसा फैलानेवाले बयान दे चूकी है। एक बार उन्हों ने कहा था कि ठाकोरों को बनियो ने ही पीछडा रखा है। तो किसानों की एक सभा में उन्होंने प्रदेश कॉंग्रेस प्रमुख अमित चावडा की उपस्थिति में कहा, किसानो के भले के लिए, उनकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार भाजप के सभी लोगों को मैं मार डालूं, भले ही इस के लिए मुझे जेल क्यों ना जाना पडे। शस्त्र हाथ में लेने पडे तो कॉंग्रेस का हर एक कार्यकर्ता शस्त्र उठाने के लिए तैयार है।

दूसरी तरफ बाहरी लोगों को हिंसा के लिए भडकाने की कोशिश भी हुई। एसी हरकत करनेवाला कॉंग्रेसी नेता ही है। वडोदरा के तोहिद आलमखान शरीफखान ने फेसबुक पर विडियो में कहा, युपी, बिहार और एमपी के लोगों को भगा रहे है, आप इन्सान हो या जानवर?...गुजरात में जितने भी असामाजिक लोग है उनको लेकर आओ और एक भी बाहरी व्यक्ति को गुजरात से हटा के दिखाओ, पता चल जायेगा। मैं अकेला ही पर्याप्त हूं। तो एक तरफ बाहरी लोगो के विरुद्ध हिंसा करके फिर बाहरी लोगों को गुजरात के लोगों के विरुद्ध हिंसा के लिए भडकाना इस दोनों बातों में कॉंग्रेस के लोगों की शामिलगीरी बहार आई है। गुजरात सरकार और केन्द्र की मोदी सरकार को आनेवाले दिनों में ओर सतर्क रहना होगा।

Thursday, October 18, 2018

Now, Gujarati VS Non Gujarati Politics


Jaywant Pandya from Karnawati


Gujarat is in a new kind of turmoil. It is for the first time that the state is being defamed for attacking non-Gujaratis. Gujaratis are known for their assimilating nature. They live in various parts of Bharat and also the world. They are also known for their hospitality. Then, why is there a series of attacks on innocent labours, who have come from Uttar Pradesh, Bihar, Madhya Pradesh, Jharkhand, Rajasthan, etc.? How are such defaming incidents happening?

On September 28, a 14 month old girl child was raped and the accused was from Bihar. He was a labourer in a ceramic factory at Dhundhar located near Himmatnagar in Sabarkantha District. Then attacks on migrant workers in North Gujarat started. Violence spread to six districts. Thousands of non-Gujaratis started going back to their native states due to the threats from alleged Kshatriya Thakor Sena. Their stories of fleeing overnight are very traumatic. However, the police worked swiftly and arrested the accused. Then, why is violence taking place?
 
The prime suspect in the violence is said to be the Congress MLA Alpesh Thakor, who has incidentally been made co-incharge of Bihar Congress just two months back. He delivered a provocative speech on Facebook live on September 29, just a day after the rape. He said, “..Kyan sudhi aava lokone aapne sahan karya rakheeshun? (How long we will tolerate them?)..aavo banav Gujaratman kyanya pan banto hoy to eva lokone chhodava naheen. (If such incident happens in any corner of Gujarat, don’t let them go.)… E parpranteeya yuvan je koi chhe e kyarey chhutavano nathee. (This migrant boy won’t be freed.) E naradham jo kadach thakor senane sonpee deedho hot to teno hisab karee nakhyo hot. (If that rapist had been given to Thakor Sena, it would have settled account.”

This was not first time that Alpesh spoke against migrant workers. He has been speaking against them since he started OBC agitation against Patidar Reservation movement started by Hardik Patel. But, on September 17, he spoke against the migrants at ‘Berojgar Mahasammelan’ at Becharaji organised by his Kshatriya Thakor Sena. He said in the programme: “Outsiders commit crime here and go back to their places. They beat up common people in villages…Companies truck will be stopped and their gates will be broken…How many people are ready to fight?” (Link: ?” https://www.facebook.com/alpeshthakormla/videos/534890716961206/)
)

On the side of government, it only worked silently giving safety and assurance to migrant workers. Police did its duty fully. Whenever, police got call, it would rush to caller’s place within few minutes. Migrant workers seemed happy with police action but fear gripped migrant workers as migrant girls was also targeted by stopping them on road and there was another reason too. Diwali and Chhathth holidays were near. So, they continued leaving Gujarat.

Meanwhile, Mumbai Congress leader Sanjay Nirupam jumped into this and threatened Prime Minister Narendra Modi.  He stated, ““PM ke gruh rajya (Gujarat) mein agar UP, Bihar aur MP ke logon ko maar-maar ke bhagaya jaayega toh ek din PM ko bhi Varanasi jana hai, yeh yaad rakhna. Varanasi ke logon ne unhe gale lagaya aur PM banaya tha (If people of UP, Bihar and MP will be beaten up in PM’s home state then PM must remember that one day he has to go Varanasi. The people of Varanasi had hugged him and made the Prime Minister),” ANI quoted Nirupam  as saying. Then it was turn of Congress president Rahul Gandhi.

He tweeted about this violence. Now CM Vijay Rupani gave him back that “Congress first incites violence against Migrants. Congress President tweets to condemn this violence. Does the Congress President not have any shame?” In second tweet, Rupani said, “If the Congress President is against the violence in Gujarat, he needs to take action against its own members who incited violence against the migrants in Gujarat. Tweeting is not the solution, taking action is! But will he act?”

Deputy chief minister Nitin Patel clearly alleged that Alpesh Thakor’s Thakor Sena was behind these attacks. And many videos of alleged members of Thakor Sena threatening migrants were evident to this. Messages of inciting for violence against migrants were being circulated on social media. Police arrested 533 people so far of which 20 are Congress leaders. Many are Thakor Sena leaders/members too.

Calculation behind the violent agitation can be easily understood. This violent agitation is beneficial only to the Congress as vote share of migrant workers to BJP in Gujarat might fall. And consequently, this violence would have severe effect on votes in Uttar Pradesh, Madhya Pradesh, Rajasthan, Bihar and Jharkhand in Lok Sabha 2019 elections as well as in Assembly elections. Gujarat will suffer economically in a major way as factories work, Ahmedabad Metro train work etc might be affected severely.
 
It is to be recalled that in 2014 Shri Narendra Modi won on the development plank, and since then Gujarat has been on the target. Various agitations such as Patidar reservation by Hardik, Dalit agitation by Jignesh Mevani and OBC agitation by Alpesh Thakor were pointing to the failure of development model of Gujarat. All three agitations had subsidiary target of defeating the BJP in Assembly elections of 2017. But unfortunately (on the part of Congress) all three got exposed that they were Congress supported. Alpesh Thakor joined the Congress and got elected as Congress MLA, while Congress supported Jignesh Mevani in his election. Hardik’s support to Congress and his secret visit to Rahul Gandhi in Ahmedabad hotel is not unknown. So, it is speculated that now there is conspiracy to start new agitation for dividing Gujarati vs non-Gujarati.
 
Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath and Bihar CM Nitish Kumar spoke to Shri Rupani and appealed him to see that there are no attacks on non-Gujaratis. They expressed satisfaction over Gujarat government’s actions. Shri Rupani appealed to the migrant workers to return back to Gujarat.
 
After being exposed, Alpesh Thakor claimed with tears in eyes that he couldn’t support violence and he was going to sit on fast on October 11. Bihar Congress and Gujarat Congress leaders are not happy with Raj Thackeray kind of politics by Alpesh, but the Congress top leadership seems to be backing Alpesh. Senior Congress leader Ahmed Patel gave a clean chit to Alpesh alleging that the BJP was trying to politicise the issue. 

Sunday, October 14, 2018

#MeToo Micro Fiction-2

Symbolic image

One 'page-3' woman met other. Second one asked, "Oh my gosh! You are looking ugly and sad. No make up! Why?"

First one said, "Nowadays, no man looks at me with fear of #MeToo.Then why make up?"

Friday, October 12, 2018

#MeToo Microfiction



In the morning, she screamed at the man standing in gallery far away from her block wing in Flats. She accused that the man used to stare her constantly day and night.  Neighbours and other residents reading #MeToo news in newspapers, got angry to hear this. They rushed to man's house. They started beating him. After their anger was poured, man asked them, "Why did you beat me?"

People said, "You are constantly harassing this woman. You patriarchal mindset man! You must be put behind bars!"

The man said with lot of (physical and emotional) pain, "I am blind. #YouToo?"

Friday, September 28, 2018

राजपाल यादव, सबरीमाला और काला: हिन्दू क्या मंदिर का घंटा बन गये है?


'हंगामा' फिल्म में राजपाल यादव का संवाद है

"हम को मारो सालो, हम को झिंदा मत छोडो, हम कोई मंदिर का घंटा है, जो हर कोई बजा के चला जाता है"।



आज कई हिन्दूओ को अपनी स्थिति एसी ही लगती है।  शनि सिंगळापुर हो या सबरीमाला, सर्वोच्च फटाक से निर्णय दे देती है। ट्रिपल तलाक हो या राममंदिर, सर्वोच्च  न्यायालय का आदेश सेक्युलर लगे इस लिए बॅन्च में हिन्दू इतर न्यायाधीश रखे जाते है लेकिन सबरीमाला केस में आज जो आदेश आया है उस में पीठ में एक पारसी न्यायाधीश है।

आज एक चेनल पर डिबेट चल रही है उस में एक पारसी महिला हिन्दू स्त्रीओ के हक में बोल रही है। लेकिन क्या पारसीओ के पंथ की मान्यता में कोई दखल देता है? पारसीओ के फायर टेम्पल में पारसी इतर पंथ के लोगों को प्रवेश की अनुमति नहीं है। लेकिन क्या कोई एनजीओने इस विषय में सर्वोच्च में अपील की?

जिस तरह से एनजीओ हिन्दू विषय में सर्वोच्च में अपील करने लगी है उस के पीछे कल्चरल मार्क्सवाद का एजन्डा साफ दिखाई देता है।

गुजरात में महत्त्व के मंदिर सरकार के अधीन है। क्यों मंदिर ही सरकार के अधीन? क्योंकि वहां दान इतना ज्यादा आता है? या हिन्दूओ के आस्था के केन्द्र है इस लिए? कोई मस्जिद, चर्च या पारसी धर्मस्थान क्यों नहीं?

हिन्दूओ के लिए नहेरु के झमाने से हिन्दू कोड बिल लाया गया, लेकिन किसी और पंथ को कोई कायदा क्यों लागु नहीं पडता? मंदिर है वो प्राइवेट एन्टिटी है। उस में किस को प्रवेश देना, या न देना वो अंगत विषय हो सकता है। हालांकि उस में सभी वर्ग (उच्च या दलित सभी) को प्रवेश होना चाहिए, सभी लिंग (पुरुष या स्त्री) को प्रवेश होना चाहिए ये मेरी दृढ मान्यता है। लेकिन, मेरी दलील यह है कि केवल हिन्दूओ के विषय में हस्तक्षेप क्यों? 



आज कोई भी अन्य पंथ का कोई व्यक्ति जो अपने आप को बिशप या मौलवी कहलाता है वह बलात्कार करता है तो भी मिडिया उस को महत्त्व नथी देता। और कई बार तो उस को भी हेडिंग में बाबा कह के संबोधित करता है। अभी हाल ही में आशु बाबा नाम का व्यक्ति मूल नाम से आसिफ निकला। लेकिन टीवी न्यूझ चेनल पर चर्चा में और स्क्रीन पर जो टेक्स्ट आता था उस में बाबा ही चल रहा था। साधु या शैतान एसा हेडिंग ही चल रहा था। अभी हाल में केरल में एक नन पर बलात्कार में जो जलंधर का बिशप पकडा गया उसे जब तक बिशप के पद से रोम के चर्चने हटाया नहीं तब तक पुलीस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया। ये सुविधा क्यों, भाई? ताकि रेकोर्ड पर वो बिशप है वो न आ सकें। और इस बिशप (और अन्य कई एसे केस, जिस में मधर टेरेसा के मिशन ऑफ चेरिटिझ की नन बच्चों  का व्यापार करते पकडी गई) जैसे केस को मिडिया में कितना वेइटेज मिला, उन पर कितनी डिबेट हुुई? आसाराम, निर्मल बाबा, बाबा राम रहीम के मुकाबले नहींवत्! हिन्दू बाबाओं पर अनेक सप्ताह और कई बार तो अनेक महिने तक डिबेट चली। लेकिन बिशप और नन पर क्यों नहींवत् डिबेट? मौलवीओ पर क्यों कोई डिबेट नहीं करता?



हाल ही में 'काला' फिल्म देखी। रजनीकांत की क्वचित पहली फिल्म होगी जो पसंद नहीं आयी। मुझे तो आश्चर्य होता है कि मोदी सरकार में यह फिल्म सेन्सर बॉर्ड से पास क्यों हो गई। स्पष्ट रूप से कल्चरल मार्क्सवाद के एजन्डे से यह फिल्म बनाई गई। दलित विरुद्ध सवर्ण को दिखाया गया। रजनीकांत दलित है। काले रंग का है। काले कपडें पहनता है। विलन नाना पाटेकर सफेद कपडें पहनता है। और उस के ध्वज भगवा रंग के है। बेनर पर मनुवाद लिखा है। नाना पाटेकर ब्राह्मण भी है। उन की पार्टी का नाम नवभारत नेशनलिस्ट पार्टी है। मतलब नेशनलिस्ट होना यानि अत्याचारी होना। दलित विरोधी होना। और आजकल तो राष्ट्रवाद का ठेका भारतीय जनता पक्षने ले रखा है। तो स्पष्ट रूप से संकेत है कि भाजप एन्टी दलित है। अत्याचारी है। और भाजप यानि भगवा, केसरिया यह भी मान्यता दृढ हो गई है। (हालांकि भाजप के ध्वज में हरा रंग भी है।) यह वर्ग संघर्ष को भडकाने का स्पष्ट प्रयास था। या तो यह फिल्म एक और हिन्दूवादी पक्ष शिव सेना के विरुद्ध थी क्योंकि नाना पाटेकर  'जय महाराष्ट्र' का सूत्र बोलते है। आश्चर्य है कि शिव सेना ने भी इस फिल्म का विरोध नहीं किया। रजनीकांत की प्रेमिका मुस्लिम है। यानि दलित-मुस्लिम भाई भाई का जो एजन्डा वामपंथी चला रहे है इस का यह स्पष्ट द्योतक है। रजनीकांत के पुत्र का नाम लेनिन है जो रशिया के साम्यवादी नेता का नाम था।  एक दृश्य में नाना पाटेकर की पोती उन को पूछती है कि क्या श्री राम ने सचमूच रावण को मारा था? नाना कहते है, "वाल्मीकि ने एसा लिखा है तो मारा ही होगा।" यानि एक तरह से राम दवारा रावण को मारे जाने पर संदेह उत्पन्न करने का प्रयास। नाना को कहना चाहिए था, कि हां मारा ही था। रामसेतु है और जगह जगह पर राम ने अयोध्या से जो रामेश्वरम् तक प्रवास किया उस के प्रमाण भी। इस  में एसा गोलमटोल उत्तर देना यानि संदेह उत्पन्न करना। एक दृश्य में जब रजनीकांत की धारावी झोंपडपट्टी में जब दलितों को मारा जा रहा होता है तब नाना पाटेकर रामायण का पाठ सून रहे होते है। ये भी रामायण को अत्याचार से जोडने का प्रयास है। एक दृश्य में रजनीकांत एनपीपी के नेता को कहते है कि "भगवान (कृष्ण) के आदेश पर अर्जुन ने लोगों की हत्याएें की। भगवान भी गलत है।" यहां पर भगवान कृष्ण को भी गलत ठहराने का प्रयास हुआ। पांडवो पर जो अत्याचार बाल्यावस्था से हुए यह दिखाए बिना अर्जुन ने लोगों को मारा, यह कहना अर्जुन और श्री कृष्ण को अत्याचारी साबित कर देता है। यहां लोगों शब्द पर भी ध्यान देना होगा। कौरवो या अत्याचारीओ को मारा एसा शब्द का प्रयोग नहीं हुआ।

एक रूप से अच्छा ही हुआ क्योंकि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर फ्लोप हो गई। लेकिन टीवी पर धडल्ले से दिखाई जाती है। और टीवी पर निःशुल्क देखनेवालों के मन में कल्चरल मार्क्सवाद का यह वर्ग संघर्ष पेदा करनेवाला एजन्डा घर करता ही होगा। 



रिलायन्स के मालिकी वाले चेनल कलर्स पर बिग बोस में एक तरफ तो सन्नी लियोन, राखी सावंत जैसी अभद्र कही जानेवाली महिलाओ को लाते है। घर में केवल झघडा, चूगली, निंदा आदि ही होती है। दूसरी तरफ, कहां से किसी नकली स्वामी ओम को लाते है।  इस बार अनुप जलोटा को लाया गया जिस की गर्लफ्रेन्ड की बात को हाइप दिया गया। यानि जो हिन्दू भजन गाता है उस की छबी छिछोरे और ठरकी की बनाई गई। अगर अनुप एसे है ही तो क्यों केवल हिन्दूओ मेें से एसे लोगों को चून चून के लाये जाते है? 

तो कहने का अर्थ यह है कि आजकल आस्थावान हिन्दूओ को स्पष्ट रूप से यह लगने लगा है कि हिन्दू कोई स्वामी के बिना की जमीन है जिस पर कोई भी कबजा कर लेता है। और संघ आदि हिन्दू संगठन चूपचाप ये सब देख रहे हैं। 

Wednesday, August 29, 2018

वामपंथी को मिटा दोगे, लेकिन विचार को कैसे मिटाओगे?


जयवंत पंड्या 
संघ और भाजप अर्बन नक्सल का रोना रो रहे है किन्तु वह आये कहां से? विचार का प्रसार कैसे हुआ? क्या ये चिंतन हुआ? इस की काट क्या होगी? कितनो को जैल में डालोगे? इस विचार की जड तक जाना होगा।

संघ जिस वृक्ष की भाजप-विहिप-वनवासी कल्याण आश्रम-मजदूर संघ आदि शाखाएं हैं उसने और उसमें से जन्मे पारिवारिक संगठनो ने शारीरिक और बौद्धिक कौशल्यो के विकास पर तो बल दिया किन्तु चार सब से अधिक महत्वपूर्ण क्षेत्रों के प्रति उदासीनता बरती। यह चार क्षेत्र हैं - मिडिया, अध्यापन, साहित्य, और कला (फिल्म, टीवी, चित्र, नृत्य, संगीत, नाटक इत्यादि) और अभी भी यह उदासीनताने उसका घेरा नहीं छोडा, या यूँ कहिए, संघ  परिवार छोडना नहीं चाहता।

वामपंथी-माओवादी-नक्सली अपने वैचारिक जन्म से ही समुचे विश्व में इस क्षेत्र में मूल जमाये हुए हैं। एक तरह से पूरा विश्व दो धडो में बंटा हुआ है - वामपंथी या उसके विरुद्ध। किसी देश में उसका सामना मूडीवाद और ईसाई विचारो से है तो कहीं समाजवाद, मूडीवाद या हिन्दूवाद से है। हां, यह भी मजेदार सत्य है कि उनका सामना इस्लामिक कट्टरता या आतंकवाद से नहीं है। क्योंकि जहां पर उनका शासन है वहां वे दूसरी किसी भी विचारधारा को पनपने ही नहीं देते। उदाहरण - रशिया, चीन, उत्तर कोरिया। और जहां पर इस्लाम शासन में है वहां भी ऎसा ही है।

इसी कारण से अमरिका हो या भारत, वहां वे राजनैतिक रूप से शून्यवत होने के बावज़ूद खूब होहल्ला मचा पाते है। यह बात इस्लामी कट्टरता पे भी लागु होती है। याद कीजिए सीरिया के बच्चे की वो तस्वीर जिसकी कहानी बाद में गढी़ हुई कहानी साबित हुई। (https://www.express.co.uk/comment/expresscomment/604590/Migrant-crisis-the-truth-about-the-boy-the-beach-Aylan-Kurdi) इससे विपरीत अमरिका, पाकिस्तान, बांग्लादेश में हिन्दूओं पर क्या क्या नहीं बीती! यहां तक कि भारत में कश्मीर में हिन्दू का षड्यंत्रपूर्वक निष्कासन हुआ, यातनाएं दी गई लेकिन क्या उनकी कहानी भारत से इतर कोई जानता भी है? क्या उनकी कोई तस्वीर ने पूरे विश्व को झकझोर के रख दिया? गांधीनगर में अपनेआप को हिन्दूवादी कहनेवाली भाजप सरकार के नाक के नीचे एक ईसाई स्कूल में एक शिक्षक हिन्दू विद्यार्थी को बहनने स्नेह से बांधी हुइ राखी निकालने पर विवश करता है। और कहीं और जगह बिंदी निकलवाता है तो कहीं चूड़ी। सोचिए, यदि पंद्रह में से किसी भी भाजप शासित राज्य में सरकारी शाला में यदि हिन्दू शिक्षक ने किसी इसाई बच्चे का क्रॉस या किसी मुस्लिम बच्ची का बुर्का निकलवाया होता तो अंतरराष्ट्रीय सुर्खि बन गई होती। सिख और बौद्ध की परिस्थिति अलग नहीं है। अमरिका में सिखों विरुद्ध कम हिंसा नहीं होती। उनकी पघडी उतरवाइ जाती है। लेकिन उनकी कौन सूने। म्यांमार और श्रीलंका में बौद्ध पीडित है लेकिन विश्व तो रोहिंग्या और श्रीलंकाई मुस्लिमों को ही पीडित मानता है। यहां तक कि सीरिया जैसे देश में तो मुस्लिम ही मुस्लिम से लड रहा है फिर भी वहां से भागे हुए लोगों के प्रति सहानुभूति ब्रिटेन को छोड पूरे युरोप में है लेकिन उनको भी अनुभूति हो रही है जब फ्रान्स और जर्मनी में फिदायीन हमले होने लगे, नारियों पर यौन हमले (sexual assault) और बलात्कार होने लगे। अमरिका भी इस बात को ट्रम्प और वहां के सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से समज रहा है।


बात संघ खेमे और वामपन्थी - अर्बन नक्सलियों खेमे थी। उसी पर पुनः चलते हैं। करुणा यह है कि भारत में जिस दल के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंहने भी नक्सलवाद को गंभीर खतरा बताया था, वर्तमान घटनाक्रम में आरोपी में से कईयों की गिरफ्तारी कॉग्रेस की केन्द्र और महाराष्ट्र सरकारों में हुई थी उसी दल का अध्यक्ष (राहुल गांधी) आज इसी नक्सल समर्थक के साथ खड़े दिखते हैं। जिस प्रकार से नेहरूजी मार्क्सवाद से प्रभावित हुए और उनको वामपंथियोंने घेरे रखा था (ब्रिटिश दस्तावेज अनुसार नेताजी सुभाषचंद्र बोस के डिप्टी, जो पंडित नेहरू के गाढ मित्र भी थे ऎसे एसीएन नाम्बियार सोवियत जासूस थे जिनको जर्मनी ने अपने देश से निकाल दिया था। नेहरूजी ने उन्हें भारतीय राजदूत बना दिया था।) कम्युनिस्ट नेता  पी सी जोशी ने वामपंथी पत्रिका मेनस्ट्रीम वीकली में नेहरूजी के विषय में यह लिखा,
"Nehru was the one non-Communist leader who drew most avidly from the ideological treasury of Marxism-Leninism as embodied in the victory of the Russian Revolution, the foundation of the first Socialist State and the existence and growth of a World Communist Movement. He respectfully studied the ideas of scientific Socialism as best as he could and with his own limitations."

हालांकि इसी पी सी जोशी को महात्मा गांधी ने ११ जून १९४४ को लिखे अपने पत्र में कई चुभनेवाले प्रश्न पूछे थे।
 उदाहरणार्थ -
१. कम्युनिस्ट पार्टी जिनका आप प्रतिनिधित्व कर रहें है उसका पैसा कहाँ से आता हैॽ क्या उसके जनता द्वारा जांच की अनुमति है?
२. ऎसा कहा जाता है कि कम्युनिस्ट पार्टी ने बीते दो वर्ष में श्रमिकों की हड़ताल के नेताओं और आयोजकों की गिरफ्तारी करने में अंग्रेजों की सहायता की है।

सब से महत्वपूर्ण बात जो महात्मा गांधी लिखते है
३. कहा जाता है कि कम्युनिस्ट पार्टी ने शत्रु भाव से कॉग्रेस संगठन में घूसने की नीति अपनाई हैं।
४. बहार से (अर्थात रशिया और चीन से) आदेश लेना यह कम्युनिस्ट पार्टी की नीति नहीं है?
 नेहरूजी के बाद जब कॉग्रेस का विभाजन हुआ तब इन्दिरा गाँधीजी की कॉग्रेस ने सीपीआई का समर्थन लिया। इन्दिराजी द्वारा लागु आपातकाल का सीपीआई ने समर्थन किया था! जो अब वाणी स्वातंत्र्य और फ्रीडम अॉफ प्रेस की बारबार दुहाई देतें हैं। इसी सीपीआई (जिसके ऊपर उल्लेखित पी सी जोशी नेता थे) के डी राजा सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति चेलमेश्वर से मिलने गये थे और यही चेलमेश्वर ने तीन न्यायमूर्तियों के साथ मिल के न्यायतंत्र में अविश्वास जगाने के लिए बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस करके विद्रोह जैसा काम किया था।

राजीव गांधी और नरसिंह राव कदाचित वामपंथियों से खास प्रभावित नहीं रहे। हालांकि भाजपा ने १९८९ में वामपंथियों के साथ वी पी सिंह सरकार को समर्थन जरूर दिया। और २०१२ में भाजपने मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में वामपंथियों के साथ मिल के रिटेल में एफडीआई का विरोध भी किया। (Precisely on 20 September 2012)

१९९७ में प्रधानमंत्री रहे आई के गुजराल जनता दल से पहले कॉग्रेस में और उससे पहले विद्यार्थी काल में सीपीआई के सदस्य रहे।

मनमोहनसिंह की युपीए प्रथम सरकार को वामपंथियों का समर्थन था। लेकिन जब अमेरिका के साथ परमाणु समझौते पर वामपंथियों ने समर्थन वापस लिया तब पहली (और कदाचित अंतिम बार)  मनमोहन ने वीरता का परिचय देते हुए सोनिया गांधी को भी दृढ़तापूर्वक ना बोलते हुए कहा कि सत्ता जाती है तो जाए किन्तु वामपंथियों से इस पर कोई समझौता नहीं होगा।

सोनिया जी ने युपीए प्रथम के शासन काल में  राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) बनाई थी जो नीति निर्धारण करने में इनपुट देती थी। उसमें वामपंथियों का वर्चस्व था। और वर्तमान राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने पीछले वर्ष ९ जनवरी को ७१० फाइलें पब्लिक के सामने रखी वो दर्शाता है कि वास्तव में एनएसी की ही चलती थी।

कॉग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी भी वामपंथी विचारधारा से प्रभावित हैं। हालांकि राजदीप सरदेसाई जो कि विचारधारा से भाजप के धुर विरोधी माने जाते हैं और कॉग्रेस की विचारधारा के निकट, वह अपनी किताब '२०१४ चुनाव जिसने भारत को बदल दिया' में लिखते हैं, " हालांकि कि स्पष्ट लग रहा था कि राहुल दोहरी जिंदगी जी रहे हैं। दिन में वह विचारकों और कार्यकर्ताओं के साथ व्यस्त रहते थे लेकिन रात में ऐसा लगता था कि वह पेज तीन के चर्चित मित्रों के साथ खुद को सहज महसूस करते थे। ...'

राजदीप ने इसी पुस्तक में लिखा है,
"राहुल गांधी ने अपने 'राजनैतिक प्रशिक्षण' की प्रक्रिया में वामपंथ की ओर झुकाव वाले। शिक्षाविदों का भी सहयोग मांगा था।... जेएनयू की प्रो.सुधा ऐसी ही एक शिक्षाविद थी। राहुल गांधी ने १९९० में जेएनयू में एक सेमिनार में भी हिस्सा लिया था। ब्राह्मण वाद विरोधी दृष्टिकोण के लिए हंमेशा चर्चित दलित बहुजन विद्वान कांचा इलैया भी उनसे जुड़े थे।"

वामपंथ की ओर झुकाव रखने वाले जयराम रमेश भी राहुल को प्रभावित करने वालो में से है। बकौल राजदीप,"मैने राहुल के साथ उनके तालमेल के बारे में जयराम से पूछा कि क्या उन्होंने राहुल के सामाजिक और आर्थिक दर्शन को आकार दिया? उन्होंने कहा, "मैं उनका सलाहकार नहीं था। जब भी उन्हें मदद की जरूरत होती थी तो मैं उनके लिए उपलब्ध था। "

आम आदमी पार्टी की स्थापना काल से प्रशांत भूषण जैसे नक्सलाइट सिम्पेथाइझर जुड़े। आआप को कई neo left मानते है।

तो, संघ परिवार की विफलता यहां भी दिखती है। उपर दर्शाये हुए चार क्षेत्र - मिडिया, अध्यापन, साहित्य और कला के उपरांत उसकी विचारधारा पूरे राजनैतिक क्षेत्र को, खास कर जो सत्ता में रहे, उनको प्रभावित न कर सकी। कर भी कैसे पाती? गांधी परिवार संघ परिवार के और संघ परिवार गांधी परिवार के विरोधी छोर पर ही खडा रहा। और जो संघ परिवार की विचारधारा के निकट थे, चाहे सरदार पटेल हो या मोरारजी देसाई, सत्ता में या तो प्रथम स्थान पर नहीं रहे, रहे तो अल्पकाल के लिए। एक अपवाद नरसिंह राव जी का अवश्य रहा। जिनके बारे में कहा जाता है कि वह धोती के नीचे संघ की खाखी चड्डी पहनते थे ।

और एसा मत मानीए कि कम्युनिस्टो ने केवल कांग्रेस और जनता दल के प्रधानमंत्रीओ को ही प्रभावित किया। सुधीन्द्र  कुलकर्णी जो पहले सीपीएम के कार्ड हॉल्डर सदस्य थे वह १९९६ में भाजप सत्ता के एकदम निकट आ गई तो भाजप में जुड गये। और तो और वह पहले अटलबिहारी वाजपेयीजी  और बाद में लालकृष्ण आडवाणी के निकट के सलाहकार बन गये और दोनो नेताओ की लुटिया डूबो दी।

तो फिर से प्रश्न यह ही आता है कि नक्सल समर्थक वामपंथियों की गिरफ्तारी तो अस्थाई उपाय है। क्या संघ परिवार अपनी विचारधारा को इतना फैला सकेगा जिससे भाजप (उसमें बहोत से सुधीन्द्र कुलकर्णी जैसे लोग होंगे ही)या गेरभाजप दलों को, मिडिया, अध्यापन, साहित्य और कला कोई भी क्षेत्र अछूता न रह पाये?

Tuesday, August 14, 2018

यजुर्वेद में है दुनिया का सब से प्राचीन राष्ट्रगान

सौजन्यः आंतरजाल (इन्टरनेट)

आ ब्रह्मन्‌ ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामा राष्ट्रे
राजन्यः शूरऽइषव्योऽतिव्याधी महारथो जायतां
दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णू
रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां
निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो
नऽओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम्‌॥
-यजुर्वेद २२.२२

हम किसी और पंथ के  पवित्र ग्रंथ की बात नहीं कर रहे हैं। लेकिन यह तो कोई भी स्वीकार करेगा कि सनातन धर्म भारत में उत्पन्न हुआ और सनातनी यानि हिन्दू अपने आप को भारत की संतति मानते है। दुनिया के सब से प्राचीन पवित्र ग्रंथ जो स्वंय ब्रह्माजी द्वारा रचित है एसे वेदों में राष्ट्रगान दिया हुआ है। यजुर्वेद में दुनिया का सब से प्राचीन राष्ट्रगान मिलता है। यानि वंदे मातरम् से भी प्राचीन गान।  इस ऋचा से यह बात का भी खंडन होता है कि भारत मुस्लिम और इसाई (ब्रिटिश-पॉर्तुगली) आततायीयों के पहेलें एक राष्ट्र नहीं था।

यजुर्वेद में ऋषि प्रार्थना करता है कि

"हे भगवान! हमारे राष्ट्र में ब्रह्म तेज से तेजस्वी ब्राह्मण (अर्थात् जो ब्रह्मज्ञान को पाने का उत्सुक हो, ये जातिवाचक शब्द नहीं) उत्पन्न हो। हमारे राष्ट्र में शूरवीरो, धनुर्धारी, शत्रुओं को परास्त करनेवाले महारथी क्षत्रिय (फिर से, यह जातिवाचक नहीं, जो भी राष्ट्र की रक्षा करने को तत्पर हो) उत्पन्न हो। हमारे राष्ट्र में बहोत सारा दूध देनेवाली गायें हो, बैल बलवान हो, घोडें शीघ्रगामी हो। हमारे राष्ट्र में नारियां विनयशील व संस्कारी हो। हमारे राष्ट्र में रथ में बैठनेवाले वीर विजयशील हो। हमारे राष्ट्र में यजमान को वीर और सभा में बैठने योग्य पुत्र (ज्यादातर भारतीय भाषाओ में सरलता के लिए संतान, चाहे पुत्र हो या पुत्री हो, पुत्र और पुल्लिंग प्रयोजा जाता है) उत्पन्न हो।

हमारे राष्ट्र में जब जब हम प्रार्थना करे तब तब वर्षा हो। हमारे राष्ट्र में फल से भरपूर वनस्पति-औषधियां उत्पन्न हो। हम सब का योगक्षेम उत्तम स्वरूप से संपन्न हो।

यानि ऋषि अपने लिए कुछ न मांगकर, भारतवर्ष  राष्ट्र में रहनेवालों के लिए मांग रहे है। उन्हों ने प्रार्थना की है कि यहां ब्रह्म विद्या जाननेवाले तेजस्वी लोग हो। राष्ट्र की रक्षा आवश्यक है। इसी लिए शत्रुओ को परास्त करनेवाले शूरवीर भी मांगे है। हम कितने भी आध्यात्मिक हो, हमारी निम्नतम कुछ न कुछ भौतिक आवश्यकताएं रहती ही हैं। इस से ऋषि ने मुंह नहीं मोडा है। हां, यह सत्य है कि भौतिक आवश्यकताओ में रचे बसे रहना नहीं चाहिए। लेकिन कुछ तौ भौतिक आवश्यकताएं पूरी होनी ही चाहिए। इसी लिए ऋषि मांगते है कि भरपूर दूध देनेवाली गायें हो। कृषि भी भौतिक आवश्यकता है और प्राचीन समय में कृषि बैल के बिना कल्पित नहीं थी। इसी लिए बलवान बैल की कामना की गई है। वाहन व्यवहार भी अनिवार्य है। इस लिए तेज गति से दोड सकें एसे घोडें भी मांगे गये है।

इस के बाद नारियां विनयशील व संस्कारी हो एसी कामना की गई है। यहां कोई नारीवादी (फेमिनिस्ट) प्रश्न कर सकता है कि केवल नारियां ही क्यों? नर क्यों नहीं? इस का उत्तर यह है कि आगे जाकर नर के लिए भी मांगा ही गया है। लेकिन यह भी बात सत्य है कि कोई भी संतति हो, उस को संस्कार अपनी माता से ही मिलते है। अंग्रेजी में भी कहावत है कि The Hand That Rocks the Cradle Is the Hand That Rules the World। 

इस के आगे चलकर यजमान के घर वीर और सभा में बैठने योग्य पुत्र हो एसी ईश्वर से कामना की गई हैं। यहां पुत्र- पुत्र और पुत्री दोनों का प्रतिनिधित्व करता है। यजमान माने जो धर्म के अनुसार आचरण करनेवाला हो। जो यज्ञादि कर्म करता हो। करवाता हो। उस के घर में वीर संतति हो। और सभा में बैठने योग्य का तात्पर्य ये है कि प्राचीन समय में सभा में बैठने की योग्यता यही थी कि जो संस्कारी है, बुद्धिमान है, सभ्य है। तो सज्जनों के घर वीर, संस्कारी, सभ्य और बुद्धिमान संतति हो एसी ऋषि कामना करतें है। तो इस के पहेले के परिच्छेद में ऋषिने माताओं के लिए कामना की थी। यहां उनकी संतति के लिए कामना की हैं।

हम वेदों को भूल गये हैं। इसी लिए अशोक के बाद विजय की ईच्छा-महेच्छा भूल गये हैं। इस प्रार्थना में कहा गया है कि हमारे राष्ट्र में जिष्णू यानि जीतने की ईच्छा - विजय की ईच्छा रखनेवाले महारथी उत्पन्न हो। 

हमारे राष्ट्र में आवश्यकता अनुसार (न अल्प, न अति) बारिश हो। हमारे राष्ट्र में वनस्पति-औषधियां फल से भरपूर हों। इस तरह ऋषि औषधियों और अन्न के लिए किसी दूसरे राष्ट्र पर अवलंबित न रहना पडे, एसी कामना करतें है। 

अंत में ऋषि कामना करते हैं कि हमारे राष्ट्र में सब का योगक्षेम सुचारु रूप से संपन्न हो। यानि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी का  'सब का साथ सब का विकास' मंत्र तो वेदों में सब से पहले दे दिया था। सब का साथ सब का विकास मंत्र का मूल यहां छिपा हुआ है। 

इस प्रकार ११ कामना या सूत्र से ऋषि राष्ट्र के लिए प्रार्थना करतें हैं।

मेरे विचार से, इस राष्ट्रगान का उत्तम स्वरांकन कर के और इसे ही राष्ट्र गान के रूप में स्वीकार करने के बारे में चर्चा होनी चाहिए। 



Thursday, August 9, 2018

एससी-एसटी कानून: नरेन्द्र मोदी का राजीव गांधी मॉमेन्ट?

सौजन्य: indiatvnews.com

क्या एससी एसटी संशोधन विधेयक पारित करवाना नरेंद्र मोदी का राजीव गांधी मॉमेन्ट है? यह प्रश्न बिल्कुल समयोचित है क्योंकि एससी-एसटी संशोधन विधेयक सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त करने के लिए मोदी सरकार द्वारा पारित किया गया है।

यह मोदी सरकार द्वारा दलित संगठनों द्वारा हो रहे आंदोलन के दबाव के कारण और आने वाले २०१९ के लोकसभा चुनाव में दलित मत को प्राप्त करने हेतु उठाया गया कदम है। हालांकि कॉंग्रेस और वामपंथी फिर भी इस कदम की आलोचना कर मोदी सरकार को दलित विरोधी प्रस्तुत कर रहे हैं। उनका कहना है कि भाजप द्वारा शासित राज्यों में दलित विरोधी अत्याचार बढ़े हैं।

हालाकि यह छवि इसलिए बन गई है क्योंकि भाजप द्वारा शासित राज्यों की संख्या बड़ी है। और मीडिया का फोकस भी भाजप शासित राज्य ज्यादा रहते हैं और कॉंग्रेस जिसका अभी एक ही राज्य पंजाब में शासन मुख्य रूप से बचा है वहां और वामपंथी द्वारा शासित केरल में हो रहे दलित पर अत्याचार मीडिया में जोरशोर से नहीं दिखाए जाते। इसी तरह से पश्चिम बंगाल में भी ममता बनर्जी के शासन में दलितों पर हो रहे अत्याचार दिखाई नहीं पड़ते। इसी कारण दलित संगठन तथा विपक्ष मोदी सरकार को दलित विरोधी पेश करने में सफल रहे हैं और इसी दबाव में मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश को निरस्त करने हेतु एससी एसटी संशोधन विधेयक पारित करवाया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने यह आदेश क्यों दिया था? सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में गत २० मार्च को कहा था कि एससी एसटी कानून का राजकीय या व्यक्तिगत रूप से स्थापित हितों द्वारा दुरुपयोग हो रहा है ऐसी शिकायतें बढ़ गई है। यह पहली बार नहीं था कि किसी न्यायालय द्वारा ऐसा आदेश दिया गया था। इससे ५ वर्ष पूर्व १२ मार्च २०१३ को केरल उच्च न्यायालय द्वारा ऐसा आदेश दिया गया था कि किसी भी व्यक्ति को दलित या आदिवासी पर अत्याचार के लिए तब तक दोषित नहीं ठहराया जा सकता जब तक ऐसा साबित ना हो कि ऐसा वंशीय पूर्वाग्रह से किया गया था।

तमिलनाडु में पीएमके नाम का पक्ष दलित तरफी है और तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने इसके नेता रामदोस पर आरोप लगाया था कि दलितों को उकसाकर पीएमके के कार्यकरो ने गरीबों के झोपड़े जलाये थे। दलित तरफी कहे जाने वाले इसी रामदोस ने कहा था कि एट्रोसिटी कानून का काफी दुरुपयोग हो रहा है। अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी को खामोश करने के लिए इस कानून का सहारा गलत तरीके से लिया जा रहा है।

'Why I am not Hindu' नाम की किताब लिखने वाले दलित बुद्धिजीवी कांचा इलैया ने भी आरोप लगाया था कि भाजप ने अपने एक दलित सांसद के द्वारा उनके विरुद्ध एट्रोसिटी कानून के तहत झूठा केस करवाया था।

पिछले दिनों संसद में प्रस्तुत किए गए अविश्वास प्रस्ताव पर हुई चर्चा के दरमियान रामविलास पासवान जो कि एक दलित नेता है और एनडीए में शामिल है उन्होंने कहा था कि मायावती जब उत्तर प्रदेश में शासन में थी तब उन्होंने आदेश दिया था कि एट्रोसिटी कानून के अंतर्गत हुई शिकायत पर जल्दी से कार्यवाही ना की जाए क्योंकि वह झूठी शिकायत हो सकती है। कोई ताकतवर व्यक्ति द्वारा दलित को उकसाकर ऐसी शिकायत करवाई जा सकती है। उन्होंने ऐसा आदेश भी दिया था कि बलात्कार की रिपोर्ट द्वारा पुष्टि होने पर ही एससी एसटी कानून तहत कार्यवाही हो।

अब सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पिछले मार्च में दिए गए आदेश पर वापस चलते हैं। क्या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिया गया आदेश अपनी मन मर्जी के मुताबिक था? नहीं। सर्वोच्च का आदेश एक संसदीय समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर था और इस समिति में भाजपा के १३ दलित और आदिवासी सांसद थे। इसमें कांग्रेस के भी पांच सांसद सदस्य थे। और तो और सीपीएम, असऊद्दीन ओवैसी तृणमूल कांग्रेस, बीएसपी, एनसीपी, शिवसेना आम आदमी पार्टी आदि सभी विपक्षी दल के भी सांसद उसमें थे। कुल ३० सदस्यों की इस समिति में १७ सांसद विपक्ष के थे यानी कि विपक्ष का बहुमत था!

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि समिति की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद २१ के तहत संवैधानिक गैरंटी के अमल के लिए सुरक्षात्मक उपाय जरूरी है जिससे आपखुद गिरफ्तारी या ग़लत involvement के सामने लोगों की सुरक्षा की जा सके।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के संबंध में विचार करने पर ज्ञात होता है कि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम में दर्ज ज़्यादातर मामले झूठे पाए गए।

न्यायालय द्वारा अपने फैसले में ऐसे कुछ मामलों को शामिल किया गया है जिसके अनुसार २०१६ की पुलिस जाँच में अनुसूचित जाति को प्रताड़ित किये जाने के ५३४७ झूठे मामले सामने आए, जबकि अनुसूचित जनजाति के कुल ९१२ मामले झूठे पाए गए।

लेकिन सभी पक्षों के सांसद जिसमें सदस्य थे ऐसी संसदीय समिति की रिपोर्ट के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय का जैसे ही आदेश आया कि कांग्रेस समेत विपक्षी दल ने इसे मुद्दा बना दिया और ऐसी हवा बना दी कि मोदी सरकार  सर्वोच्च के जरिए इस कानून को खत्म करना चाहती है। मोदी सरकार भी चुनाव को देखते हुए पीछे हट गई और संसद में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को पलटने के लिए संशोधन विधेयक पारित करवा दिया। यह ऐसी ही बात है जैसे राजीव गांधी सरकार ने कट्टरपंथी मुस्लिमों को खुश करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ६२ वर्षीय  मुस्लिम वृद्धा शाहबानो को उसके पूर्व पति द्वारा निर्वाह-व्यय के समान जीविका देने के आदेश को निरस्त करने के लिए संसद में संशोधन विधेयक पारित करवाया था। उस समय से लेकर आज तक भाजप इसे कांग्रेस द्वारा खेला गया वॉट बैंक पॉलिटिक्स बताती है। लेकिन प्रश्न तो अब भाजप के सामने भी उठेगा कि अभी जो उसने संशोधन विधेयक पारित करवाया उसे क्या वॉट बैंक पॉलिटिक्स नहीं कहा जाएगा?

Thursday, May 31, 2018

कैराना व अन्य उपचुनाव के परिणाम क्या दर्शाते हैंॽ

जयवंत पंड्या
आज कल पूर्व हिन्दू हृदय सम्राट और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रमजान की उर्दू में शुभकामना दे रहे है। (शुभकामना का विरोध नहीं है, भाषा का है), प्रेमचंद मुन्शी की ईदगाह का उल्लेख करने लगे है। गुजरात सरकार ने भी हिन्दूवादी का थप्पा न लगे इस लिए पर्जन्य यज्ञ करने का निर्णय वापस लिया। अजान के समय अपना भाषण रोक देना ये भी मोदी-शाह करने लगे है। ये सभी का विरोध नहीं है। विरोध इस बात का है कि जब कॉंग्रेस या अन्य विपक्ष के लोग करते थे तो भाजपवाले इसे अल्पसंख्यको का तुष्टिकरण बताते थे।

कर्णाटक में प्रशांत पूजारी समेत २३ हिन्दूओ की हत्या का मुद्दा न चला क्योंकि चुनाव  के समय ही उठाया, पहले उठाया नहीं। चुनाव के लिए बाकी रखा।(पश्चिम बंगाल और केरल में भी यही हो रहा है)
कैराना में भी हिन्दूओ के पलायन का मुद्दा जोरशोर से उठाने के बाद पीछे  हट गये।

क्या हिन्दू ये नहीं समजते होगेॽ भाजप भूल रहा है कि २००४ में आडवाणी ने भी सेक्युलर होने की कोशिश की थी। इन्डिया शाइनिंग के नाम पर विकास के प्रचार की आंधी थी। विकास सचमुच अच्छा हुआ था। (सडक, जीडीपी,  पोखरण जैसे अनेक मुद्देसभाजप के पक्ष  में थे।) २००२ में महंत फरमहंस रामचंद्र और विहिप के विरुद्ध सुरक्षा दल खडे कर दिये थे। परिणाम क्या हुआॽ २००४ में हार गये। २०१९ में भी एसा हो सकता है।

पीछली २० मई को दिल्ली की मेरी एक दिवसीय यात्रा से मैं लौट रहा था। पहाडगंज स्टेशन की ओर से प्रवेश कर रहा था। वहां एस्केलेटर की अच्छी सुविधा है। प्लेटफॉर्म १ का सुधारकाम चल रहा था। गाडी प्लेटफॉर्म ३ पर आनेवाली थी। एस्केलेटर से जाने के लिए गया। लेकिन एस्केलेटर उपर जाने के लिए बंद! नीचे आनेवाला एस्केलेटर शुरू। एक मुस्लिम बुजुर्ग मुश्किल से एस्केलेटर पर सामान के साथ चड रहे थे। मैने सोचा, बुजुर्ग है, रमजान भी है। चलो सहाय की जाये। मैने चाचा से कहा,  लाओ ये थैला मैं उठा लूं। चाचा स्वावलंबी थे। बोले, शुक्रिया बेटा। मैं उठा लूंगा। ये कर्णाटक में हार का गुस्सा है।

ये एक सामान्य मुसलमान की सोच है। १९ मई को कर्णाटक विधानसभा में हार हुई इस लिऐ नई दिल्ली का चडनेवाला एस्केलेटर बंध रखा जाये एसा कोई सरकार क्यों करेगीॽ हालांकि एसी सोच बनाने में मिडिया का भी प्रदान है। कर्णाटक चुनाव के बाद पेट्रोल-डीजल के दाम बढने के समाचार का शीर्षक एक गुजराती पत्र में एसा था- कर्णाटक की हार का गुस्सा। एसा गुस्सा सरकार क्यों करेगी भलाॽ क्या वो नहीं जानती होगी कि हमारे इस कदम से हमारे मतदाता हम से रूठ जायेंगेॽ

दूसरा ये भी कि भाजप कांग्रेस की राह पर चल रहा है। कर्णाटक के चुनाव के समय पेट्रोल - डीजल के दाम बढने नहीं दीये। ये बूमरेंग हुआ। कर्णाटक का चुनाव तो हो गया और अपेक्षाकृत परिणाम नहीं  आये। लेकिन इस के बाद कई दिनों तक दाम निरंतर बढने दीये। नतीजा ये हुआ  कि मोदी सरकार के चार वर्ष के मूल्यांकन पर पेट्रोल - डीजल के बढे हुए दाम छाये रहे।

तात्पर्य ये कि भाजप चाहे जितना सेक्युलर हो ले, सामान्य मुसलमान के मन में अभी भी टीस या नफरत है ही। वो कभी भाजप को मत नहीं देंगे। सेक्युलर होने के चक्कर में भाजप हिन्दू मतदाता को भी गंवा देगा। हिन्दू मध्यम वर्गीय मतदाता  वैसे भी अपनेआप को ठगा अनुभव करता है। २०१४ के चुनाव में भले भाजप या मोदी ने सीधेसीधे वचन न दीया हो, लेकिन बाबा रामदेव का 'आप की अदालत'वाला विडियो जो आज वाइरल है उस में रामदेव दर्शको से पूछते है कि आप को कैसा प्रधानमंत्री चाहिएॽ पेट्रोल के दाम ३५ कर दें एसा या ७२ कर दे एसाॽ रामदेव ने आय कर समाप्त करने की भी बात की थी। काला धन वापस लाने का भी कहा था। ये सब छोडो, आय कर सीमा कुछ विशेष नहीं बढ़ी।एफडी,  स्मोल सेविंग स्कीम पर ब्याज दर निरंतर घट रहे हैं। नौकरी कर रहे लोगो के वेतन में विशेष बढौती नहीं हुई। और अब, हिन्दूत्व को भी भाजप हांसिये पर कर रहा है।

परिणाम ये हो सकता है कि हिन्दू के मत भी न मिले और अन्य पंथ के भी न मिले। अर्थात् कर्णाटक का पुनरावर्तन  समूचे देश में हो सकता है।