Monday, September 28, 2015

एक कहानी: नहीं ये तो लोलिपोप है


एक घर के बहार एक स्कोर्पियो आ के रूकी।

आवाज सून के घर की मालकिन ने दरवाजा खोला। उस में से एक व्यक्ति बहार आया। अतिथि देवो भवः की मान्यता अनुसार उसे घर में बिठाया। चाय पानी दिया। फिर आने का कारण पूछा। आगंतुक ने कहा फोईबा मैं कुछ लेने आया हूं। खाना देगी? 

"ओहो तो तुम भिक्षुक हो?" मालकिन ने भीखारी कहने का टाला। "नहीं मैं हक लेने आया हूं। आप मंदिर के बहार बैठे भीखारी को भिक्षा देती है तो मुजे क्यों नहीं?"

मालकिन ने कहा, "वो भीखारी तो सही में गरीब है लेकिन तुम तो स्कोर्पियो में..."

"लेकिन मेरे परिवारवाले भी गरीब है" व्यक्ति तीखी आवाज में बोला, "यदि नहीं दिया तो छिन लेंगे।" और उसने घर में तोडफोड शुरू की। मालकिन ने सिक्योरिटी को बुलाया लेकिन वो व्यक्ति उसे भी मारने लगा। अंततः सिक्योरिटी ने भी जमकर धुलाई की।

बूरे हाल में वो व्यक्ति बहार गया और पूरी सोसायटीवालो को इकट्ठा कर चिल्लाने लगा कि मुजे मारा।

सोसायटीने मालकिन से कहा, "क्यों एसा करती हो? हमें उसकी आवाज से परेशानी हो रही है। बेचारे को दे दो न भिक्षा"

मालकिन ने कहा, " ठीक है मैं अभी लाई।"

मालकिन घर में जा के रोटी, सब्जी, चावल ले आई।

सोसायटीवालो ने कहा, "भाई अब तो संतुष्ट हो ना"

वो व्यक्ति बोला, "नहीं इस में आचार, सलाद, दहीं, छाश, मीठाई कुछ नहीं है। ये तो लोलिपोप है"

वो व्यक्ति कौन है वो तो समज ही गयें होगे।

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