Wednesday, March 19, 2014

नरेन्द्र की शादी में करशनदादा रूठ गए


Courtesy: http://indiancaricature.blogspot.in/
caricature: Rajendra Yadav

'नहीं...मैं नहीं आनेवाला।'
'एसा नहीं करते पप्पा। हमारे घर पे इतना बडा प्रसंग है, मेरे बेटे, अपने नरेन्द्र की शादी होनेवाली हो, और आप एसा करेंगे तो कैसे चलेगा?'
'एक बार बोल दिया ना कि मैं नहीं आनेवाला।'
'पप्पा, मान भी जाइए।'
'नहीं।'
'पप्पा...'
'नहीं...'
'लेकिन पप्पा, इस वक्त आप मेरे चचेरे भाई के घर पे रहे ये कैसे हो सकता है? समाज क्या कहेगा?'
'....'
Courtesy: http://rajeshartworld.blogspot.in/
 Caricature by: Rajesh Y Pujar
'हमारे घर शादी-ब्याह का माहोल है, मंडप सज चूका है, नरेन्द्र घोडी पे बैठने के लिए उत्साहित है, जो लोग हमारे साथ बात भी नहीं करते थे, वो भी अपनी तरक्की देखकर प्रसंग में आये हैं, और आप इसी वक्त शिवाभाई के घर जाकर बैठ गये...'
'मुझे वहां जंचता नहीं, नरेन्द्र बडा शरारती है।'
'और शिवाभाई भी तो आनेवाले है, नरेन्द्र की शादी में, तो आप भी आ जाईये ना।'
'मैंने ही नरेन्द्र को पढाया, लिखाया, इस काबिल बनाया, दुनियादारी शिखाई, लेकिन वो अब मेरी एक नहीं सुनता।'
'पप्पा....'
'पता है? उस दिन जब हमारे घर महेमान आये थे, तब नरेन्द्र बात कर रहा था, लेकिन जब मेरी बारी आई तो आप सब उठ के चल दिए थे। मुझे कितना बूरा लगा था, मालूम है? अब चूंकि नरेन्द्र अच्छी खासी कमाई कर लेता है तो आप लोगों को मेरी झरूरत रही नहीं. मैं तो ठहरा पेन्शनर।'
'पप्पा, एसा मत कहीए। वो तो उस दिन जो महेमान थे वो नई पीढी के थे। अब जमाना बदल गया है। आप जब बोलते है तो युवा पीढी की समज में नहीं आता। आप को नई पीढी के लोगों को समज में आए एसा बोलना चाहिए था ना।
'हा, ये बात सही कही तुमने। अब मैं बुढ्ढा जो हो गया हूं। तुझे पता है? हमारा घर कैसा था? हम लोग बहोत ही गरीब थे। दो वक्त की रोटी भी हम को नसीब नहीं थी। रूखी सूखी रोटी जो भी मिल जाए, खाते थे। साइकिल पे जाते थे। एक ही रूम था। सादा लिबास पहनते थे। आप लोगों की परवरिश कैसे की है, मेरा मन ही जानता है। समाज में भी खास कोई सन्मान नहीं। कही चले गये तो कोई ठीक तरीके से बुलाता भी नहीं था। लेकिन आप को क्या पता उस संघर्ष के बारे में। तुम को तो धूंधला सा कुछ कुछ याद भी होगा, लेकिन नरेन्द्र क्या जाने ईसके बारे में?'
'पप्पा, बीत गई सो बात गई। अब तो हमारे अच्छे दिन है ना नरेन्द्र की वजह से। अब तो हम प्राईवेट जेट और हेलिकोप्टर में घूमते फिरते हैं। आप को भी पहेले प्रमोद नामका भतीजा अच्छा लगता था, जब वो हमारे घर के लिए काफी सौगाद लाता था। आप ने तो एक बार कहा भी था, अब आदमी की जरूरियात रोटी, कपडा और मकान ही नहीं रही, बलकि मोबाइल भी हो गई है। प्रमोद ने धीरुकाका के साथ मोबाइल की 'सेटिंग' करके हम को समृद्ध बनाया था ना।'
'लेकिन बेटे राजु, तुम्हारी कोई बात चलती नहीं। तुम सिर्फ नाम के ही मुखिया हो, घर के। नरेन्द्र की मर्जी के मुताबिक ही सब कुछ हो रहा है, आजकल इस घर में। मेनु क्या रखा जाए, रसोइ कौन बनाएगा, फोटोग्राफर, विडियोग्राफर कौन हौगा, यहां तक कि, पत्रिका कैसी छापी जाए, कौन कैसे कपडे पहने, यहां तक कि, मैं कैसे कपडें पहनूं, कहां खडा रहूं, वो भी वो ही तय कर रहा है। किस को शादी में बुलाया जाए, किस को नहीं, सब वो ही तय कर रहा है। जैसे, मैं और तुम्हारे मुरलीकाका तो मर गए हैं ना। अटलदादा का तो समजे, बिचारे बीमार है।'
'पप्पा, वो अब छोटा बच्चा नहीं रहा। 30 साल का हो गया है। कब तक हम अपनी मनमानी करते रहेंगे? आपने जैसे चाहा, वैसे बरसों तक हमारा घर चला। तब हमारा परिवार संयुक्त था। आप, अटलदादा, मुरलीकाका, जैसे कहेते, वैसा होता।'
'तो क्या हुआ। अब भी होना चाहिए। मैं इस परिवार का मुखिया हूं। अगर आप लोग मेरी बात मानोगे तो आप लोग ही अच्छे दिखोगे। और अगर आप मेरी बात मानोगे तो वे लोग भी ईस शादी में आएंगे, जिन लोगों के साथ आपने नाता तोड दिया है। मसलन..नीतीश, ममता और नवीन जैसे लोग...मेरे नाम पे वे लोग आएंगे। अगर ज्यादा लोग होंगे तो शादी जचेगी।'
'उन लोगों की झरुरत नहीं है अब। नरेन्द्र की पहचान अब बहोत हो गई है, अमरिकावाले भी पूछते हैं,...और वो पासवानने संबंध तोड दिया था तब आप लोग भी नहीं रोक पाए थे, लेकिन नरेन्द्र ही उनको वापिस ले आया ना। और आप को अचानक शिवाभाई पर प्यार क्यों उमड आया?'
'ना, आप लोगों ने तो मेरी बच्ची सुषमा से भी किनारा कर लिया। जब वो हमारी पडोशन सोनिया हमसे झघडा करने आईं थी तब सुषमा ही थी, जिसने सोनिया को करारा जवाब दिया था। सुषमा बोलने में हुंशियार है। लेकिन जब से नरेन्द्र कमाने लगा है, तुम्हारे लिए सौगादे ला रहा है, तब से तुमको वो ही दिखता है, तुम को तुम्हारी बेटी की भी कोई फिक्र नहीं।'
'पप्पा, बेटी तो पराई होती है। कब तक हमारे घर रहेगी? हमारा घर, हमारा वंश तो नरेन्द्र की वजह से ही बढेगा ना।'
'आप लोगो पर तो नरेन्द्रने ना जाने क्या जादू कर दिया है। बेचारे मुरलीकाका! काशी से कुर्सी लाए थे अच्छी खासी, लेकिन नरेन्द्रने खाली करवा दी, अपने लिए। बस, उसकी जीद के आगे आप लोग झूकते ही जा रहे हो। लेकिन उसका ये दादा नहीं झूकनेवाला। कह देना उसे।'
'पप्पा, एसे प्रसंग बारबार नहीं आते। नरेन्द्र कहां बारबार शादी करनेवाला है? ये एक ही बार ना? आप को गुस्सा थूक देना चाहिए।'
'वाह भाई वाह। मुझे गुस्सा थूक देना चाहिए। नरेन्द्र एक ही बार घोडी चडेगा। तो क्या हमारे लिए एसे प्रसंग बारबार आनेवाले है क्या? मेरे लिए तो अब ये आखिरी प्रसंग है। और ये आप लोग जिस तरह की नौटंकी कर रहे हो ना, मैं तो रामजी से प्रार्थना करता हूं, मुझे जलदी उठा ले।'
'एसा मत कहिए, पप्पा। दुःख होता है।'
'और मुझे कितना दुःख होता है, ये सोचा है, कभी? वो येदी, पोलीस की जेल हो के आए हुए आदमी को पनाह दी आप लोगोंने। तुम अच्छी तरह से जानते हो कि सोनिया के परिवार से हमारी जरा भी नहीं बनती। लेकिन तेरा लाडला नरेन्द्र सोनिया के परिवार के लोगों भी न्योता दे आया है। ईतना ही नहीं, उनको शादी के काम भी सोंप रख्खे है, उसने। अपना प्रसंग भव्य दिखना चाहिए यही पागलपन सवार है उसके मन में, लेकिन उस को पता नहीं, सोनिया के परिवार के लोग हमारा अच्छा नहीं देख सकते। प्रसंग में कमी रख देंगे। आखिर अपने ही अपने होते है, और पराये लोग पराये ही रहेते है।'
'पप्पा, नरेन्द्र तो सोनियाबहेन को नीचा दिखाने के लिए ही उनके परिवारजनो को न्योता दे आया है। और उसको पता है, किस को क्या काम देने चाहिए। और जब ये प्रसंग समाप्त हो जाएगा, तो वो उन लोगो को निकाल देगा।'
'लेकिन वो अकेला ही सब कुछ कर रहा है, न मुझे, न तुझे कुछ पूछता है। कहता नहीं कि दादाजी, इतनी पत्रिका आप बांट आओ, रसोइ का आप देख लो।'
'आप अगर ऐसे रूठ के, मुंह फुला के बैठ जाएंगे तो आप को कैसे काम सोंप सकता है? बताईये तो। और आजकाल आप बात बात पे रो भी देते है। उस दिन सुषमाने आप का जरा सा बखान किया तो आप फूट फूट कर रोने लगे थें। ये क्या अच्छी बात है? समाजवाले क्या कहेंगे? यही ना कि नरेन्द्र और राजु उनके करशनदादा का खयाल नहीं रखते, अकेली सुषमा ही खयाल रखती है? मैं भी काम कर रहा हूं, लेकिन बहार का काम नरेन्द्र करता है, क्योंकि वो अभी जवान है। इस लिए एसा लगता है कि नरेन्द्र ही सब कुछ कर रहा है।'
'एसे तो बहोत सारे प्रसंग मैने देख लिए। लेकिन कोई प्रसंग में न तो मैंने अकेले कुछ किया, न तो अकेले यश लिया। सब कुछ तुम्हारे अटलदादा और मुरलीकाका को पूछ के ही किया। तभी तो ये हमारा संयुक्त परिवार टिका। लोगों में हमारी आबरू बढी। लेकिन ये नरेन्द्रने तो अडोशपडोश में झघडे कर के हमारे परिवार की आबरु मीट्टी में मिला दी।'
'तो पप्पा, क्या कोई सामने से झघडने आए तो मार खा लेना चाहिए? सहन कर लेना चाहिए?'
'उस वक्त मैं ही था, जिसने नरेन्द्र की तरफदारी की थी, उस को बचाया था।'
'तो अब क्या ऐतराज है, नरेन्द्र थोडी बदल गया है?'
'मुझे कुछ भी पूछ के वो करता नहीं, मेरा मशवरा नहीं लेता...'
'पप्पा, आप की सूई तो एक जगह अटक गई है, मैं तो आप को पूछता हूं ना...'
'नरेन्द्र नहीं पूछता ना...'
'लेकिन पप्पा, मैं आपका क्या कोई नहीं लगता? क्या मैं आपका बेटा नहीं? नरेन्द्र ही सब कुछ है, आपके लिए?'
'हा है तो। वो ब्याज है, सूद। मैंने उसे बडा किया, संस्कार दिए, जवाबदारी शीखाई। छोटे मोटे झघडे में उसकी तरफदारी की। अब वो ये सब कुछ भूल जाए एसा कैसे चलेगा?'
'लगता है, आप सिर्फ नरेन्द्र से ही मानोगे। मैं उसी को भेजता हूं, आपको मनाने...'
'अब तो नरेन्द्र आए तो भी मैं माननेवाला नहीं। कह देता हूं। बहोत दिल दुखाया है उसने मेरा'
'मुझे विश्वास है, पप्पा, आप मान जाएंगे। जब उसकी सगाई हुई थी, तब भी आप ऐसे ही रूठ गए थे, लेकिन जब वो आप को मनाने आया, तो कैसे मान गए थे? इस बार भी आप मान जाएंगे और प्रसंग अच्छी तरह से आयोजित होगा। हां, आप मान जाओगे, मुझे विश्वास है, आप मान जाओगे...आप मान जाओगे'

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