Tuesday, August 14, 2018

यजुर्वेद में है दुनिया का सब से प्राचीन राष्ट्रगान

सौजन्यः आंतरजाल (इन्टरनेट)

आ ब्रह्मन्‌ ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायतामा राष्ट्रे
राजन्यः शूरऽइषव्योऽतिव्याधी महारथो जायतां
दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वानाशुः सप्तिः पुरन्धिर्योषा जिष्णू
रथेष्ठाः सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायतां
निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु फलवत्यो
नऽओषधयः पच्यन्तां योगक्षेमो नः कल्पताम्‌॥
-यजुर्वेद २२.२२

हम किसी और पंथ के  पवित्र ग्रंथ की बात नहीं कर रहे हैं। लेकिन यह तो कोई भी स्वीकार करेगा कि सनातन धर्म भारत में उत्पन्न हुआ और सनातनी यानि हिन्दू अपने आप को भारत की संतति मानते है। दुनिया के सब से प्राचीन पवित्र ग्रंथ जो स्वंय ब्रह्माजी द्वारा रचित है एसे वेदों में राष्ट्रगान दिया हुआ है। यजुर्वेद में दुनिया का सब से प्राचीन राष्ट्रगान मिलता है। यानि वंदे मातरम् से भी प्राचीन गान।  इस ऋचा से यह बात का भी खंडन होता है कि भारत मुस्लिम और इसाई (ब्रिटिश-पॉर्तुगली) आततायीयों के पहेलें एक राष्ट्र नहीं था।

यजुर्वेद में ऋषि प्रार्थना करता है कि

"हे भगवान! हमारे राष्ट्र में ब्रह्म तेज से तेजस्वी ब्राह्मण (अर्थात् जो ब्रह्मज्ञान को पाने का उत्सुक हो, ये जातिवाचक शब्द नहीं) उत्पन्न हो। हमारे राष्ट्र में शूरवीरो, धनुर्धारी, शत्रुओं को परास्त करनेवाले महारथी क्षत्रिय (फिर से, यह जातिवाचक नहीं, जो भी राष्ट्र की रक्षा करने को तत्पर हो) उत्पन्न हो। हमारे राष्ट्र में बहोत सारा दूध देनेवाली गायें हो, बैल बलवान हो, घोडें शीघ्रगामी हो। हमारे राष्ट्र में नारियां विनयशील व संस्कारी हो। हमारे राष्ट्र में रथ में बैठनेवाले वीर विजयशील हो। हमारे राष्ट्र में यजमान को वीर और सभा में बैठने योग्य पुत्र (ज्यादातर भारतीय भाषाओ में सरलता के लिए संतान, चाहे पुत्र हो या पुत्री हो, पुत्र और पुल्लिंग प्रयोजा जाता है) उत्पन्न हो।

हमारे राष्ट्र में जब जब हम प्रार्थना करे तब तब वर्षा हो। हमारे राष्ट्र में फल से भरपूर वनस्पति-औषधियां उत्पन्न हो। हम सब का योगक्षेम उत्तम स्वरूप से संपन्न हो।

यानि ऋषि अपने लिए कुछ न मांगकर, भारतवर्ष  राष्ट्र में रहनेवालों के लिए मांग रहे है। उन्हों ने प्रार्थना की है कि यहां ब्रह्म विद्या जाननेवाले तेजस्वी लोग हो। राष्ट्र की रक्षा आवश्यक है। इसी लिए शत्रुओ को परास्त करनेवाले शूरवीर भी मांगे है। हम कितने भी आध्यात्मिक हो, हमारी निम्नतम कुछ न कुछ भौतिक आवश्यकताएं रहती ही हैं। इस से ऋषि ने मुंह नहीं मोडा है। हां, यह सत्य है कि भौतिक आवश्यकताओ में रचे बसे रहना नहीं चाहिए। लेकिन कुछ तौ भौतिक आवश्यकताएं पूरी होनी ही चाहिए। इसी लिए ऋषि मांगते है कि भरपूर दूध देनेवाली गायें हो। कृषि भी भौतिक आवश्यकता है और प्राचीन समय में कृषि बैल के बिना कल्पित नहीं थी। इसी लिए बलवान बैल की कामना की गई है। वाहन व्यवहार भी अनिवार्य है। इस लिए तेज गति से दोड सकें एसे घोडें भी मांगे गये है।

इस के बाद नारियां विनयशील व संस्कारी हो एसी कामना की गई है। यहां कोई नारीवादी (फेमिनिस्ट) प्रश्न कर सकता है कि केवल नारियां ही क्यों? नर क्यों नहीं? इस का उत्तर यह है कि आगे जाकर नर के लिए भी मांगा ही गया है। लेकिन यह भी बात सत्य है कि कोई भी संतति हो, उस को संस्कार अपनी माता से ही मिलते है। अंग्रेजी में भी कहावत है कि The Hand That Rocks the Cradle Is the Hand That Rules the World। 

इस के आगे चलकर यजमान के घर वीर और सभा में बैठने योग्य पुत्र हो एसी ईश्वर से कामना की गई हैं। यहां पुत्र- पुत्र और पुत्री दोनों का प्रतिनिधित्व करता है। यजमान माने जो धर्म के अनुसार आचरण करनेवाला हो। जो यज्ञादि कर्म करता हो। करवाता हो। उस के घर में वीर संतति हो। और सभा में बैठने योग्य का तात्पर्य ये है कि प्राचीन समय में सभा में बैठने की योग्यता यही थी कि जो संस्कारी है, बुद्धिमान है, सभ्य है। तो सज्जनों के घर वीर, संस्कारी, सभ्य और बुद्धिमान संतति हो एसी ऋषि कामना करतें है। तो इस के पहेले के परिच्छेद में ऋषिने माताओं के लिए कामना की थी। यहां उनकी संतति के लिए कामना की हैं।

हम वेदों को भूल गये हैं। इसी लिए अशोक के बाद विजय की ईच्छा-महेच्छा भूल गये हैं। इस प्रार्थना में कहा गया है कि हमारे राष्ट्र में जिष्णू यानि जीतने की ईच्छा - विजय की ईच्छा रखनेवाले महारथी उत्पन्न हो। 

हमारे राष्ट्र में आवश्यकता अनुसार (न अल्प, न अति) बारिश हो। हमारे राष्ट्र में वनस्पति-औषधियां फल से भरपूर हों। इस तरह ऋषि औषधियों और अन्न के लिए किसी दूसरे राष्ट्र पर अवलंबित न रहना पडे, एसी कामना करतें है। 

अंत में ऋषि कामना करते हैं कि हमारे राष्ट्र में सब का योगक्षेम सुचारु रूप से संपन्न हो। यानि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी का  'सब का साथ सब का विकास' मंत्र तो वेदों में सब से पहले दे दिया था। सब का साथ सब का विकास मंत्र का मूल यहां छिपा हुआ है। 

इस प्रकार ११ कामना या सूत्र से ऋषि राष्ट्र के लिए प्रार्थना करतें हैं।

मेरे विचार से, इस राष्ट्रगान का उत्तम स्वरांकन कर के और इसे ही राष्ट्र गान के रूप में स्वीकार करने के बारे में चर्चा होनी चाहिए। 



3 comments:

  1. साधुवाद पण्ड्याजी । सुंदर आलेख ।
    शुक्ल यजुर्वेदी हूं, सो ज्यादा प्रसन्नता ।

    ReplyDelete